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Mon, Dec 15, 2025

क्या बच्चों को चॉकलेट, आइसक्रीम और खिलौने का लालच देकर भक्ति करवाना सही है? जानें प्रेमानंद जी महाराज का उत्तर

Written by:Bhawna Choubey
बच्चों में भक्ति और संस्कार कैसे डाले जाए? ये सवाल तो आपके मन में भी अक्सर आता होगा, क्या बच्चों को चोकलेट खिलौने और ईनाम के सहारे भगवान से जोड़ना सही है, जानिए इस बारे में क्या कहते हैं प्रेमानंद जी महाराज।
क्या बच्चों को चॉकलेट, आइसक्रीम और खिलौने का लालच देकर भक्ति करवाना सही है? जानें प्रेमानंद जी महाराज का उत्तर

आज के समय में माता-पिता बच्चों को मोबाइल, कार्टून और चॉकलेट के बीच भक्ति से जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। कई घरों में यह आम दृश्य है कि बच्चों को मंदिर ले जाने या फिर भगवान का नाम जपवाने के बदले उसे चॉकलेट या खिलौने का लालच दिया जाता है। लेकिन क्या यह तरीक़ा सच में सही है? ये सवाल अक्सर कई लोगों के मन में आता है, अगर आपके भी मन में इस तरह के सवाल आते रहते हैं तो यह लेख आपके लिए है।

इसी सवाल पर प्रसिद्ध संत प्रेमानंद जी महाराज ने गहरी और सोचने पर मजबूर कर देने वाली बात कही है। प्रेमानंद जी महाराज को सुनने के लिए दूर दूर से लोग आते हैं, जो लोग उनके पास नहीं पहुँच पाते हैं, वे घर बैठकर वीडियो के ज़रिए उनकी बातों को सुनते हैं, उनकी बातों को सुनने से मन की उलझन सुलझ जाती है, आज इसी के चलते हम जानेंगे कि इस सवाल का प्रेमानंद जी महाराज ने क्या उत्तर दिया।

चॉकलेट और खिलौने का लालच देकर भक्ति करवाना सही है?

एक सत्संग के दौरान एक भक्त ने जब प्रेमानंद जी महाराज से सीधा सवाल किया कि महाराज जी आजकल बच्चे भगवान का नाम नहीं लेते। अगर हम उन्हें चॉकलेट, आइसक्रीम, खिलौने या फिर किसी इनाम का लालच देकर भक्ति कराएं या माला जप करवाएं, तो क्या यह ग़लत है? इसका जवाब देते हुए प्रेमानंद जी महाराज ने कहा कि हम अपनी एकांतिक भाषा में कहते हैं कि आपको बाल भोग कराएंगे, उसी तरह बच्चों से भी कहा जा सकता है कि अगर वे भगवान का नाम जप करेंगे, तो उन्हें चॉकलेट आइसक्रीम या फिर उनकी मनपसंद चीज़ मिलेगी। उन्होंने कहा कि आप बच्चों से बिलकुल कहिये है कि दो माला जप करो, 16 बार नाम जप करके दिखाइए, फिर हम आपको आइसक्रीम या चॉकलेट खिलाएंगे। ऐसा करने में कुछ गलत नहीं है।

क्या यही भक्ति की पहली सीढ़ी है?

अब आप सोच रहे होंगे कि यह तो लालच हुआ? लेकिन प्रेमानंद जी महाराज के अनुसार यह बिलकुल भी लालच नहीं है, बच्चा अच्छा बुरा का फ़र्क अनुभवों से सीखता है। जैसे हम उसे पढ़ाई के लिए प्रेरित करते हैं, होम वर्क करोगे तो बाहर खेलने देंगे उसी तरह भक्ति की आदत डालने के लिए शुरुआत से प्रोत्साहन ज़रूरी है, महाराज का मानना है कि शुरुआत भले ही लालच से हो, लेकिन धीरे-धीरे वहीं बच्चा भगवान नाम के रस को समझने लगेगा।

नाम जप से बच्चों को क्या फायदा मिलता है?

प्रेमानंद जी महाराज कहते हैं कि भगवान के नाम की आवृत्ति बच्चे की बुद्धि को परम पवित्र कर देती है। यह सिर्फ़ धार्मिक बात नहीं बल्कि जीवन निर्माण की प्रक्रिया है। महाराज जी के अनुसार नाम जप करने से बच्चे का मन शांत होता है, संस्कार बचपन से ही मज़बूत बन जाते हैं, आगे चलकर वहीं बच्चा अच्छा इंसान बनता है, समाज को सुख देने वाला एक नागरिक बनकर उभरता है। इतना ही नहीं महाराज जी ने यह तक कहा कि ऐसे बच्चे आगे चलकर महाभागवत गृहस्थ बनते हैं, यानी गृहस्थ जीवन में रहते हुए भी उच्च आध्यात्मिक स्तर को छूते हैं।