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Sun, Dec 14, 2025

क्या सिर्फ अपने भले के लिए नाम जपना स्वार्थ कहलाता है? प्रेमानंद महाराज ने दिया उत्तर

Written by:Bhawna Choubey
मोक्ष, मुक्ति और नाम जप को लेकर लोगों के मन में अक्सर सवाल उठते हैं। क्या ईश्वर का नाम सिर्फ अपने कल्याण के लिए लेना स्वार्थ है? प्रेमानंद महाराज ने इस सवाल का ऐसा उत्तर दिया, जो भक्ति की पूरी सोच को नया अर्थ देता है।
क्या सिर्फ अपने भले के लिए नाम जपना स्वार्थ कहलाता है? प्रेमानंद महाराज ने दिया उत्तर

प्रेमानंद महाराज (Premanand Maharaj) को आज देश और दुनिया में लाखों लोग सुनते और मानते हैं। महाराज हमेशा जीवन की गहरी बातों को भी बहुत सरल भाषा में समझाते हैं। महाराज से अक्सर लोग पूछते हैं कि मुक्ति या मोक्ष पाने के लिए भगवान का नाम जपना कहीं स्वार्थ तो नहीं है? क्या सिर्फ़ अपने भले के लिए नाम जपना सही है? इस बड़े सवाल पर महाराज ने बहुत ही सच्चा और आसान जवाब दिया है। महाराज बताते हैं कि हम सब इस दुनिया में दुख और परेशानियों के बंधन में फँसे हुए हैं। नाम जपने से हम अंदर से शांत होते हैं और इन दुखों से थोड़े मुक्त हो जाते हैं। विस्तार से जानें प्रेमानदं जी महाराज का उत्तर।

प्रेमानंद महाराज का साफ जवाब

प्रेमानंद महाराज ने बहुत सीधे शब्दों में कहा कि नाम जप करना स्वार्थ नहीं है। उन्होंने बताया कि नाम जप से आत्मा भगवान से जुड़ती है और मन को शांति मिलती है। जब इंसान भगवान का नाम लेता है, तो उसके अंदर का डर, बेचैनी और गुस्सा धीरे-धीरे कम होने लगता है।

महाराज ने समझाया कि भक्ति की शुरुआत कई बार स्वार्थ से होती है। कोई दुख में भगवान को याद करता है, कोई डर में और कोई मोक्ष की चाह में। लेकिन भगवान का नाम अमृत जैसा है। स्वार्थ में भी अगर नाम जप किया जाए, तो वह इंसान के लिए अच्छा ही होता है।

भक्ति कैसे बनती है निस्वार्थ

प्रेमानंद महाराज ने कहा कि जब नाम जप से मन साफ होता है, तो इंसान की सोच बदलने लगती है। धीरे-धीरे भक्ति स्वार्थ से ऊपर उठ जाती है। फिर भगवान को पाने की चाह ही सबसे बड़ी चाह बन जाती है और बाकी इच्छाएं अपने आप कमजोर हो जाती हैं। महाराज ने बताया कि जब तक भगवान नहीं मिलते, तब तक मन में इच्छा रहती है। लेकिन जब भगवान की अनुभूति हो जाती है, तो फिर कुछ भी मांगने की जरूरत नहीं रहती। वही स्थिति मोक्ष कहलाती है, जहां मन पूरी तरह शांत और मुक्त हो जाता है।