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Sat, Dec 6, 2025

MP के इस गांव में नहीं खेली जाती होली, सदियों से निभाई जा रही ये अनोखी परंपरा

Written by:Sanjucta Pandit
सदियों पुरानी इस परंपरा को गांव के सभी लोग निभाते हैं। यहां होलिका दहन के बाद अगले दिन कोई रंग नहीं खेलता, बल्कि उसके भी अगले दिन होली खेली जाती है। जिस दिन पूरा गांव होली खेलता है, उस दिन इस गांव में शांत माहौल रहता है। इन परंपरा को सभी खुशी-खुशी निभाते हैं।
MP के इस गांव में नहीं खेली जाती होली, सदियों से निभाई जा रही ये अनोखी परंपरा

Holi 2025 : देश भर में आगामी त्यौहार होली को लेकर लोगों में काफी अधिक उत्साह देखने को मिल रहा है। बाजार रंग बिरंगे गुलाल और पिचकारियों से सज-धज कर तैयार हो चुकी है। समय मिलते ही लोग अपने परिवार के साथ बाजार करने जा रहे हैं। कुछ लोग इस त्यौहार में नए कपड़े भी लेते हैं। वहीं, घर की साफ सफाई भी शुरू की जा चुकी है। लोग सालों भर इस त्यौहार का इंतजार करते हैं। इस खास मौके पर सभी अपनी पुरानी दुश्मनी को भुलाकर एक-दूसरे को गले लगाते हैं। इस दिन से हिंदू के नए साल का शुभारंभ होता है। सभी के घरों में विभिन्न प्रकार के पकवान बनाए जाते हैं। इस दिन भांग पीने की भी पुरानी परंपरा है, जिसका उल्लेख महाभारत में भी मिलता है।

देश के हर कोने में अलग-अलग रीति-रिवाज से होली का त्यौहार मनाया जाता है। पूरा देश इस दिन रंगों में डूबा नजर आता है। लोग होली के गानों पर थिरकते हुए इस त्यौहार का आनंद उठाते हैं, लेकिन आज हम आपको एक ऐसे गांव के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक कोई भी होली नहीं खेलता है।

खरगोन का अनोखा गांव

दरअसल, यह गांव मध्य प्रदेश के खरगोन जिले में स्थित है। जिसका नाम चोली (Choli Village) है। इसे देवों की नगरी देवगढ़ भी कहा जाता है। यहां सिद्ध मंदिर सहित ऐतिहासिक धरोहर इस गांव की पहचान को बनाता है। इसके अलावा, होली ना मनाने की इस अनोखी परंपरा को यहां बरसों से निभाई जाती है।

होली के दिन छाई रहती है शांति

ग्रामीणों के अनुसार, इस गांव में होली के दिन शांति छाई रहती है। तो वहीं उसके अगले दिन लोग इस त्यौहार को बड़े ही धूमधाम से मनाते हैं। धूलंडी के दिन सभी लोग एकत्रित होकर उन परिवारों के घर जाते हैं, जिनके घर में पूरे साल में कोई शोक हुआ हो। उन्हें गुलाल लगाकर सांत्वना देते हैं। इसके बाद ही उनके परिवार में मांगलिक कार्यक्रमों की शुरुआत होती है।

भाईचारे का प्रतीक

ग्रामीणों का मानना है कि यह सुख के साथ-साथ दुख बांटने का भी त्यौहार है। इसलिए जिनके घर में शोक होता है, पहले उनके परिवार के पास जाकर उन्हें गुलाल लगाया जाता है। उसके बाद ही यहां होली खेली जाती है। बता दें कि यहां यदुवंशी ठाकुर समाज के करीब 700 परिवार रहते हैं, जो आज भी पूर्वजों द्वारा बनाए गए इस अनोखी परंपरा को निभाते हैं। यह भाईचारे का भी प्रतीक है।