26 या 27 अगस्त किस दिन करें जन्माष्टमी का पूजन? ना हों भ्रमित, देखें क्या कहना है वेदाचार्य पं. कनिष्क द्विवेदी का, कब का पूजन है श्रेयस्कर

यदि आपके मन में भी जन्माष्टमी की तिथि को लेकर भ्रम की स्थिति है, तो यह खबर आपके काम की है। दरअसल वाग्योग चेतना पीठम आश्रम के संचालक और प्रख्यात वेदाचार्य पंडित कनिष्क द्विवेदी ने स्थिति को स्पष्ट किया है।

Rishabh Namdev
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श्री कृष्ण जन्माष्टमी के पर्व को लेकर देशभर के सभी मंदिरों में विशेष उमंग देखी जा रही है। दरअसल प्रमुख मंदिरों में इस महोत्सव की तैयारियां जोरों शोरो से चल रही हैं। हालांकि, इस बार पंचांग में जन्माष्टमी की तिथि को लेकर भ्रम की स्थिति देखी जा रही है। दरअसल 26 और 27 अगस्त दोनों दिन जन्माष्टमी दिखने के कारण लोगों में भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो गई है।

ऐसे में सही तिथि के बारे में पता न होने से लोग उलझन में हैं। वहीं हम आपको बता दें कि वाग्योग चेतना पीठम आश्रम के संचालक और प्रख्यात वेदाचार्य पंडित कनिष्क द्विवेदी ने स्थिति को स्पष्ट किया है।

क्यों हो रहा है जन्माष्टमी की तिथि को लेकर यह भ्रम?

दरअसल वेदाचार्य पंडित कनिष्क द्विवेदी के अनुसार, इस वर्ष जन्माष्टमी को लेकर ज्यादातर लोगों में भ्रम उत्पन्न हुआ है। केलेंडर में दो तिथियों (26 और 27 अगस्त) के दिखने से लोग भ्रमित हैं कि जन्माष्टमी किस दिन मनाई जाए। परंतु शास्त्रों के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण का जन्म रोहिणी नक्षत्र में हुआ था, और उस समय का संयोग था। यही संयोग इस वर्ष 26 अगस्त के दिन भी बन रहा है, जो कि बहुत दुर्लभ है।

अर्धरात्रि काल में अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र के योग

वहीं निर्णय सिंधु ग्रंथ के अनुसार, जन्माष्टमी व्रत का निर्णय अर्धरात्रि काल में अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र के योग पर आधारित है। अगर यह योग रात और दिन दोनों समय उपस्थित हो, तो इसे सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। अगर यह योग केवल अर्धरात्रि के समय हो, तो इसे मध्यम, और दिन में होने पर अधम माना जाता है।

इस दिन मना सकते हैं जन्माष्टमी

दरअसल पंडित द्विवेदी ने बताया कि वसिष्ठ संहिता और विष्णुधर्म के अनुसार, अर्धरात्रि के समय चंद्रोदय और रोहिणी नक्षत्र के संयोग में ही जन्माष्टमी व्रत करना उचित होता है। अन्य पुराणों और ग्रंथों में भी इसी प्रकार का उल्लेख मिलता है। इस वर्ष, 26 अगस्त सोमवार को ही यह सभी योग उपस्थित हो रहे हैं, इसलिए जन्माष्टमी का व्रत और उत्सव 26 अगस्त को मनाना अधिक श्रेयस्कर होगा।

स्कंद पुराण के अनुसार, जो व्यक्ति श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का व्रत नहीं करते, वे अगले जन्म में वन में सर्प और व्याघ्र के रूप में जन्म लेते हैं। वहीं, जो लोग श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का व्रत करते हैं, उनके घर में लक्ष्मी स्थिर रहती है और उनके सभी कार्य सिद्ध होते हैं। इस व्रत का पालन करने से जीवन में समृद्धि और खुशहाली आती है।

सर्वसम्मति से लिया गया निर्णय

वहीं जिले सहित बागली क्षेत्र के अन्य वैदिक विद्वानों, जिनमें पंडित ओम गुरु शर्मा, पंडित मुरलीधर शर्मा, और पंडित चंद्रशेखर जोशी शामिल हैं, ने भी सर्वसम्मति से 26 अगस्त सोमवार को ही जन्माष्टमी महोत्सव मनाने का शास्त्र सम्मत निर्णय लिया है। इस निर्णय के बाद अब अंचलभर के मंदिरों में जन्माष्टमी की तैयारियां जोर-शोर से की जा रही हैं।


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मैंने श्री वैष्णव विद्यापीठ विश्वविद्यालय इंदौर से जनसंचार एवं पत्रकारिता में स्नातक की पढ़ाई पूरी की है। मैं पत्रकारिता में आने वाले समय में अच्छे प्रदर्शन और कार्य अनुभव की आशा कर रहा हूं। मैंने अपने जीवन में काम करते हुए देश के निचले स्तर को गहराई से जाना है। जिसके चलते मैं एक सामाजिक कार्यकर्ता और पत्रकार बनने की इच्छा रखता हूं।

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