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Sun, Dec 21, 2025

नवरात्रि का चौथा दिन, करें ये काम दूर होंगे सारे संकट, मां कूष्मांडा देंगी शुभ आशीर्वाद

Written by:Bhawna Choubey
Published:
नवरात्रि का चौथा दिन मां कूष्मांडा को समर्पित है। उनकी इस पावन कथा का पाठ करने से सभी परेशानियां दूर होती हैं और जीवन में सुख-समृद्धि का आगमन होता है। मां की कृपा से नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होती है और शुभ फल की प्राप्ति होती है।
नवरात्रि का चौथा दिन, करें ये काम दूर होंगे सारे संकट, मां कूष्मांडा देंगी शुभ आशीर्वाद

Chaitra Navratri: चैत्र नवरात्रि का चौथा दिन माँ कुष्मांडा को समर्पित होता है, जिन्हें ब्रह्माण्ड की सृजन करता माना जाता है। इसी दिन भक्त श्रद्धालु भक्ति के साथ माँ कुष्मांडा की पूजा अर्चना और व्रत करते हैं। ऐसा माना जाता है कि माँ कुष्मांडा की कृपा से जीवन की सभी बाधाएँ समाप्त हो जाती है और रुके हुए काम भी पूरे हो जाते हैं।

माँ कुष्मांडा की उपासना करने से सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है, रोग और कष्टों से मुक्ति मिलती है। जीवन में सुख और समृद्धि का आगमन होता है। माँ कुष्मांडा अपनी आठ भुजाओं से कमंडल, धनुष वाण, कमल, अमृत कलश, चक्र और गदा धारण किये हुए दिव्य स्वरूप में विराजित हैं। इसी के साथ आइए जानते हैं, माँ कुष्मांडा की पूजा विधि, महत्व और इस दिन के शुभ फल।

ऐसे करें माँ कुष्मांडा की पूजा?

  • सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • माँ कुष्मांडा की पूजा करें और व्रत रखें।
  • माँ को भी ले या फिर सफ़ेद रंग के पुष्प अर्पित करें।
  • फिर माँ को कुमकुम, अक्षत, हल्दी और चंदन जैसी चीज़ें अर्पित करें।
  • माता की तस्वीर या फिर मूर्ति के सामने दीप और धूप जलाएं।
  • देवी के मंत्रों का जाप करें।
  • माँ कुष्मांडा को मालपुआ या फिर हलवे का भोग लगाएं।
  • माँ कुष्मांडा की आरती करें।

मां कूष्मांडा के मंत्र

देवी सर्वभू‍तेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

बीज मंत्र – कुष्मांडा: ऐं ह्री देव्यै नम:

पूजा मंत्र – ऊं कुष्माण्डायै नम:

ध्यान मंत्र – वन्दे वांछित कामर्थे चन्द्रार्घकृत शेखराम्। सिंहरूढ़ा अष्टभुजा कूष्माण्डा यशस्वनीम्॥

मां कूष्मांडा देवी स्तोत्र

वन्दे वांछित कामर्थे चन्द्रार्घकृत शेखराम्।

सिंहरूढा अष्टभुजा कूष्मांडा यशस्वनीम्॥

भास्वर भानु निभां अनाहत स्थितां चतुर्थ दुर्गा त्रिनेत्राम्।

कमण्डलु चाप, बाण, पदमसुधाकलश चक्र गदा जपवटीधराम्॥

पटाम्बर परिधानां कमनीया कृदुहगस्या नानालंकार भूषिताम्।

मंजीर हार केयूर किंकिण रत्‍‌नकुण्डल मण्डिताम्।

प्रफुल्ल वदनां नारू चिकुकां कांत कपोलां तुंग कूचाम्।

कोलांगी स्मेरमुखीं क्षीणकटि निम्ननाभि नितम्बनीम् ॥

स्त्रोत

दुर्गतिनाशिनी त्वंहि दारिद्रादि विनाशिनीम्।

जयंदा धनदां कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥

जगन्माता जगतकत्री जगदाधार रूपणीम्।

चराचरेश्वरी कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥

त्रैलोक्यसुंदरी त्वंहि दु:ख शोक निवारिणाम्।

परमानंदमयी कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥

देवी कवच

हसरै मे शिर: पातु कूष्माण्डे भवनाशिनीम्।

हसलकरीं नेत्रथ, हसरौश्च ललाटकम्॥

कौमारी पातु सर्वगात्रे वाराही उत्तरे तथा।

पूर्वे पातु वैष्णवी इन्द्राणी दक्षिणे मम।

दिग्दिध सर्वत्रैव कूं बीजं सर्वदावतु॥

Disclaimer- यहां दी गई सूचना सामान्य जानकारी के आधार पर बताई गई है। इनके सत्य और सटीक होने का दावा MP Breaking News नहीं करता।