आज भी महफूज मजहबी भाईचारा, ये परिवार करता है अपने मुस्लिम दौस्त का तर्पण

Gaurav Sharma
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सागर, विनोद जैन। यूं तो हिन्दु मुस्लिम विवाद की खबरें आए दिन देखने सुनने को मिलती रहती हैं। लेकिन आज हम आपको हिन्दु-मुस्लिम भाईचारे की एक ऐसी मिसाल बताने जा रहे है, जिन्हों मजहबी भाईचारे को एक नई दिशा दी है।

हिंदू धर्म के हिसाब से पितृपक्ष चल रहा है, जिसके तहत तर्पण, अर्पण, समर्पण का अत्याधिक महात्व है।सागर जिले के सुरखी विधानसभा क्षेत्र के चतुरभटा गांव से मजहबी भाईचारे की एक ऐसी मिसाल सामने आई है, जहां एक ब्राह्मण जिनका नाम रामनरेश दुबे है, जो पितृपक्ष में अपने पूर्वजों का तर्पण तो करते ही है लेकिन साथ साथ अपने स्वर्गवासी मित्र सैयद वाहिद अली का भी तर्पण करते हैं।

बता दें कि यह दोनों अच्छे मित्र रहे हैं, पेशे से वकील सैयद वाहिद अली जो सागर के निवासी थे जिनकी एक सडक दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी उनकी और परिवार की आत्मा की शान्ति के लिए पंडित रामनरेश दुबे अपने पूर्वजों के साथ साथ अपने मित्र के लिए भी तर्पण करते हैं।

 

बता दें कि हिदुं धर्म के हिसाब से पितृ पक्ष का बहुत ही महत्व है। मृत्यु के बाद हिंदु धर्म में मृत व्यक्ति के लिए श्राद्ध करना जरुरी होता है। आगर श्राद्ध नहीं किया जाए तो मरने वाली आत्मा को मुक्ति नहीं मिलती है। वहीं माना जानता है कि पितृ पक्ष के दौरान मृत व्यक्ति का श्राद्ध करने से वो खुश होते है और उनकी आत्मा को शांति मिलती है। वहीं कहा जाता है कि इस दौरान यमराज पितरो को अपने परिजनोम से मिलने के लिए मुक्त कर देते है।


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पत्रकारिता पेशा नहीं ज़िम्मेदारी है और जब बात ज़िम्मेदारी की होती है तब ईमानदारी और जवाबदारी से दूरी बनाना असंभव हो जाता है। एक पत्रकार की जवाबदारी समाज के लिए उतनी ही आवश्यक होती है जितनी परिवार के लिए क्यूंकि समाज का हर वर्ग हर शख्स पत्रकार पर आंख बंद कर उस तरह ही भरोसा करता है जितना एक परिवार का सदस्य करता है। पत्रकारिता मनुष्य को समाज के हर परिवेश हर घटनाक्रम से अवगत कराती है, यह इतनी व्यापक है कि जीवन का कोई भी पक्ष इससे अछूता नहीं है। यह समाज की विकृतियों का पर्दाफाश कर उन्हे नष्ट करने में हर वर्ग की मदद करती है।इसलिए पं. कमलापति त्रिपाठी ने लिखा है कि," ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और साहित्य, कला और कारीगरी, राजनीति और अर्थनीति, समाजशास्त्र और इतिहास, संघर्ष तथा क्रांति, उत्थान और पतन, निर्माण और विनाश, प्रगति और दुर्गति के छोटे-बड़े प्रवाहों को प्रतिबिंबित करने में पत्रकारिता के समान दूसरा कौन सफल हो सकता है।

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