Sawan 2023 : इस मंदिर में भगवान शिव अपने साले के साथ हैं विराजित, ऐसी है मान्यता

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Sawan 2023 : सावन के महीने की शुरूआत हो चुकी हैं। ऐसे में इस पवित्र महीने में भक्त भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए कई तरह के उपाय करते हैं। साथ ही देशभर के प्रसिद्ध मंदिरों में दर्शन के लिए भी जाते हैं। ऐसे में सबसे ज्यादा लोग 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक काशी विश्वनाथ के दर्शन करने के लिए जाना पसंद करते हैं। महादेव की सबसे प्रिय नगरी काशी है और कशी के कण-कण में भगवान शिव किसी ना किसी रूप में विराजमान है।

काशी विश्वनाथ ही नहीं बल्कि इसके अलावा भी कई सारे शिव मंदिर है जो काफी ज्यादा प्रसिद्ध है। जानकारी के मुताबिक बनारस के पास मौजूद सारनाथ को मुख्य तौर पर भगवान बुद्ध की उपदेश स्थली मानी जाती है। लेकिन यहां मौजूद सारनाथ मंदिर की एक और पहचान है जो सिर्फ महादेव से नहीं बल्कि उनके ससुराल की वजह से भी प्रसिद्ध है। चलिए जानते हैं इस मंदिर के बारे में कुछ बातें –

Sawan 2023 : ऐसी है मान्यता

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जानकारी के मुताबिक, भारत में वैसे तो भगवान शिव के ऐसे कई सारे मंदिर है जहां एक साथ दो शिवलिंग विराजमान है। लेकिन एक ऐसा मंदिर है जहां पर 2 शिवलिंग तो स्थापित है लेकिन इनमें से एक शिवलिंग भोलेनाथ का प्रतीक है, तो दूसरा उनके साले सारंगदेव का प्रतीक है। जी हां उस मंदिर का नाम सारनाथ है। मंदिर में भगवान शिव के साथ माता पार्वती नहीं बल्कि उनके भाई सारंग देव विराजमान है।

कहा जाता है इस मंदिर में जो भी भक्त सावन के महीने में पूजा अर्चना करता है और मनोकामना मांगता है उसकी हर मनोकामना पूर्ण होती है। इस मंदिर की स्थापना आदि शंकराचार्य द्वारा की गई थी। 2 कहानियां इससे जुड़ी मौजूद है। दोनों कहानियां के मुताबिक भगवान शिव का साला सारंगदेव बताया जाता है। पहली कहानी के अनुसार सारंग नाथ प्रजापति दक्ष के पुत्र और सती के भाई हैं। वहीं दूसरी कहानी के अनुसार सारंग नाथ देव हिमालय के पुत्र माता पार्वती के भाई हैं।

इस कहानी में बताया गया है कि सारंगदेव माता पार्वती के भाई है, इसी कहानी में यह भी कहा गया है कि सारंग देव की तपस्या से भगवान से बेहद प्रसन्न हुए थे और उसके बाद उन्हें आशीर्वाद दिया था कि हर साल सावन के महीने में वह माता पार्वती और काशी को छोड़कर सारनाथ के सारंगनाथ मंदिर में अपने साले के साथ निवास करेंगे। इसी वजह से सारंग नाथ मंदिर के गर्भ ग्रह में दो शिवलिंग मौजूद है। जिसमें से एक भोलेनाथ का है तो दूसरा उनके साले का है।

वहीं खास बात यह है कि एक शिवलिंग थोड़ा लंबा है तो दूसरा थोड़ा गोलाकार का है। लंबा शिवलिंग भोलेनाथ के साले का प्रतीक है और दूसरा छोटा गोलाकर का शिवलिंग खुद भगवान शिव का है। यहां सावन के महीने में दूर-दूर से भक्त दर्शन करने के लिए आते हैं। आपको बता दे वाराणसी से सारनाथ मंदिर 10 किलोमीटर उत्तर की ओर स्थित है। यहां एक प्राचीन शिव कुंड भी मौजूद है। जहां भक्त स्नान करते हैं और उसी कुंड के जल से 44 सीढ़ियां चढ़कर सारंग नाथ मंदिर में भोलेनाथ का जल अभिषेक करने जाते हैं। आप भी दर्शन करने के लिए जा सकते हैं।


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Ayushi Jain

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