Bhagavad Gita : भगवद गीता हिंदू के महत्वपूर्ण ग्रंथों में से एक है, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत युद्ध के समय अर्जुन को धर्म और जीवन के महत्वपूर्ण सिद्धांतों का उपदेश दिया था। यह उपदेश अर्जुन के विचारों और उसके धर्म संकट के समय मदद के लिए थे। इसमें भगवान श्रीकृष्ण ने जीवन, कर्म, ध्यान, भक्ति और मोक्ष के विषय में अनेक महत्त्वपूर्ण बातें बताई थी। उन्होंने जीवन के उद्देश्य, कर्मयोग, ज्ञानयोग, भक्तियोग, और सांख्ययोग के बारे में भी अर्जुन को समझाया। ये उपदेश आज भी लोगों के बहुत महत्वपूर्ण है। इसी क्रम में आज हम आपको प्रेम से जुड़ा एक अध्याय बताने जा रहे हैं, जिसे भगवान श्रीकृष्ण ने परिभाषित किया था।
क्या है प्रेम?
सबसे पहले तो हमें यह जानने की जरूरत है कि प्रेम है क्या? तो बता दें कि प्रेम एक गहरा और निःस्वार्थिक भावना है जो हमें दूसरों के प्रति समर्पित करती है। यह एक अनूठा अनुभव है जो हमारे मन, शरीर और आत्मा को पास लाता है। प्रेम में विश्वास, समर्पण, सम्मान, और सहानुभूति होती है। वैसे तो हम प्यार शब्द को जता नहीं सकते है। यह एक अनोखा एहसास होता है जो कि बस हो जाता है। इसपर किसी का कोई जोर नहीं होता।
प्रेम में त्याग क्यों है जरुरी?
भगवद् गीता में श्रीकृष्ण ने प्रेम के महत्त्व को समझाया है और यह बात कही है कि प्रेम में त्याग की भावना और निःस्वार्थता होना जरूरी है। उन्होंने बताया कि प्रेम वह नहीं है, जिसे छीना जा सके या मांगा जा सके। प्रेम वास्तव में त्याग का नाम है। यह भावना एक व्यक्ति को उसके प्रेमी या प्रेमिका के प्रति समर्पित होने पर लाती है।
क्या है अधिक लगाव के नुकसान?
श्रीकृष्ण ने भगवद् गीता में बताया है कि किसी वस्तु या व्यक्ति के प्रति अधिक लगाव रखना सही नहीं होता, क्योंकि यह उम्मीदों और आकलनों की ओर ले जाता है, जो कभी-कभी दुखदायक हो सकते हैं। जब हम किसी व्यक्ति या वस्तु के प्रति अत्यधिक लगाव रखते हैं, तो हम उम्मीदों में डूब जाते हैं और उन उम्मीदों का खो जाना दुखदायी हो सकता है। श्रीकृष्ण कहते हैं कि इस प्रकार का अत्यधिक लगाव व्यक्ति को असंतोष और दुःख में डाल सकता है।
कैसे बनें विनम्र व्यक्ति?
भगवद् गीता में श्रीकृष्ण ने विनम्रता के महत्व को समझाया है। श्रीकृष्ण ने बताया है कि सफलता के साथ-साथ व्यक्ति को हमेशा विनम्र और समझदार रहना चाहिए। विनम्रता व्यक्ति की सजगता, समझदारी और सम्मान का प्रतीक होती है। यह व्यक्ति को और भी सशक्त बनाती है।
कैसे लें सही निर्णय?
श्रीकृष्ण ने भगवद् गीता में स्वतंत्र निर्णय लेने की महत्त्वपूर्णता को बताया है। वे कहते हैं कि हमें अपने जीवन में लेने वाले महत्त्वपूर्ण निर्णयों को स्वयं ही लेना चाहिए ताकि बाद में अफसोस ना हो। समय-समय पर हमें अहम और महत्त्वपूर्ण फैसलों का सामना करना पड़ता है। यह फैसले हमारे करियर, संबंध या जीवन के अन्य क्षेत्रों से जुड़े हो सकते हैं। बता दें कि श्रीकृष्ण का संदेश है कि हमें ध्यान देना चाहिए और समझना चाहिए कि हमारे लिए क्या सही है और फिर हमें उसी दिशा में कदम बढ़ाना चाहिए।
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