Guru Pradosh Vrat: ज्योतिषीय गणना के अनुसार, 18 जुलाई को गुरु प्रदोष व्रत मनाया जा रहा है। यह व्रत भगवान शिव को समर्पित है, जो शिव परिवार (भगवान शिव, माता पार्वती और उनके पुत्र गणेश) की पूजा का विशेष अवसर प्रदान करता है। इस शुभ दिन, भक्त भगवान शिव और माता पार्वती की विधिपूर्वक पूजा करते हैं और मनोकामना पूर्ति के लिए गुरु प्रदोष व्रत रखते हैं। धार्मिक मान्यता है कि गुरु प्रदोष व्रत करने से व्रती के जीवन में सुख-समृद्धि और सौभाग्य में वृद्धि होती है, साथ ही शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है।
भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने के लिए, आप आज स्नान-ध्यान के बाद विधिपूर्वक उनकी पूजा कर सकते हैं। पूजा के दौरान भैरव चालीसा का पाठ करना भी अत्यंत शुभ माना जाता है। गुरु प्रदोष व्रत भगवान शिव के प्रति अपनी भक्ति और आस्था व्यक्त करने का एक उत्तम अवसर है। इस व्रत को रखकर आप आध्यात्मिक रूप से लाभान्वित हो सकते हैं और अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं।
गुरु प्रदोष व्रत पूजा विधि
प्रदोष काल के पहले स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें।
पूजा स्थान को साफ कर फूलों और दीपक से सजाएं।
शिव लिं की स्थापना कर उसको गंगाजल, दूध और बेल पत्र से अर्घ्य दें।
शिव लिं के सामने नंदी जी की प्रतिमा स्थापित कर उनकी पूजा करें।
विधि-विधान पूर्वक शिव चालीसा का पाठ करें।
शिव जी की आरती करें और उन्हें भोग लगाएं।
भगवान शिव से अपनी मनोकामना पूरी करने की प्रार्थना करें।
भैरव चालीसा
॥ दोहा ॥
श्री भैरव सङ्कट हरन,मंगल करन कृपालु।
करहु दया जि दास पे,निशिदिन दीनदयालु॥
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॥ चौपाई ॥
जय डमरूधर नयन विशाला।
श्याम वर्ण, वपु महा कराला॥
जय त्रिशूलधर जय डमरूधर।
काशी कोतवाल, संकटहर॥
जय गिरिजासुत परमकृपाला।
संकटहरण हरहु भ्रमजाला॥
जयति बटुक भैरव भयहारी।
जयति काल भैरव बलधारी॥
अष्टरूप तुम्हरे सब गायें।
सकल एक ते एक सिवाये॥
शिवस्वरूप शिव के अनुगामी।
गणाधीश तुम सबके स्वामी॥
जटाजूट पर मुकुट सुहावै।
भालचन्द्र अति शोभा पावै॥
कटि करधनी घुँघरू बाजै।
दर्शन करत सकल भय भाजै॥
कर त्रिशूल डमरू अति सुन्दर।
मोरपंख को चंवर मनोहर॥
खप्पर खड्ग लिये बलवाना।
रूप चतुर्भुज नाथ बखाना॥
वाहन श्वान सदा सुखरासी।
तुम अनन्त प्रभु तुम अविनाशी॥
जय जय जय भैरव भय भंजन।
जय कृपालु भक्तन मनरंजन॥
नयन विशाल लाल अति भारी।
रक्तवर्ण तुम अहहु पुरारी॥
बं बं बं बोलत दिनराती।
शिव कहँ भजहु असुर आराती॥
एकरूप तुम शम्भु कहाये।
दूजे भैरव रूप बनाये॥
सेवक तुमहिं तुमहिं प्रभु स्वामी।
सब जग के तुम अन्तर्यामी॥
रक्तवर्ण वपु अहहि तुम्हारा।
श्यामवर्ण कहुं होई प्रचारा॥
श्वेतवर्ण पुनि कहा बखानी।
तीनि वर्ण तुम्हरे गुणखानी॥
तीनि नयन प्रभु परम सुहावहिं।
सुरनर मुनि सब ध्यान लगावहिं॥
व्याघ्र चर्मधर तुम जग स्वामी।
प्रेतनाथ तुम पूर्ण अकामी॥
चक्रनाथ नकुलेश प्रचण्डा।
निमिष दिगम्बर कीरति चण्डा॥
क्रोधवत्स भूतेश कालधर।
चक्रतुण्ड दशबाहु व्यालधर॥
अहहिं कोटि प्रभु नाम तुम्हारे।
जयत सदा मेटत दुःख भारे॥
चौंसठ योगिनी नाचहिं संगा।
क्रोधवान तुम अति रणरंगा॥
भूतनाथ तुम परम पुनीता।
तुम भविष्य तुम अहहू अतीता॥
वर्तमान तुम्हरो शुचि रूपा।
कालजयी तुम परम अनूपा॥
ऐलादी को संकट टार्यो।
साद भक्त को कारज सारयो॥
कालीपुत्र कहावहु नाथा।
तव चरणन नावहुं नित माथा॥
श्री क्रोधेश कृपा विस्तारहु।
दीन जानि मोहि पार उतारहु॥
भवसागर बूढत दिनराती।
होहु कृपालु दुष्ट आराती॥
सेवक जानि कृपा प्रभु कीजै।
मोहिं भगति अपनी अब दीजै॥
करहुँ सदा भैरव की सेवा।
तुम समान दूजो को देवा॥
अश्वनाथ तुम परम मनोहर।
दुष्टन कहँ प्रभु अहहु भयंकर॥
तम्हरो दास जहाँ जो होई।
ताकहँ संकट परै न कोई॥
हरहु नाथ तुम जन की पीरा।
तुम समान प्रभु को बलवीरा॥
सब अपराध क्षमा करि दीजै।
दीन जानि आपुन मोहिं कीजै॥
जो यह पाठ करे चालीसा।
तापै कृपा करहु जगदीशा॥
॥ दोहा ॥
जय भैरव जय भूतपति,जय जय जय सुखकंद।
करहु कृपा नित दास पे,देहुं सदा आनन्द॥
(Disclaimer- यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं के आधार पर बताई गई है। MP Breaking News इसकी पुष्टि नहीं करता।)