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Wed, Dec 17, 2025

उत्तराखंड: अब होगा असली शक्ति प्रदर्शन, जिला पंचायत अध्यक्ष और ब्लॉक प्रमुख पद के लिए चुनावी तैयारियां तेज

Written by:Vijay Choudhary
Published:
अब बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही निर्दलीय सदस्यों को अपने पक्ष में लाने के लिए राजनीतिक समझौते, लालच और प्रस्तावों का सहारा ले रही हैं।
उत्तराखंड: अब होगा असली शक्ति प्रदर्शन, जिला पंचायत अध्यक्ष और ब्लॉक प्रमुख पद के लिए चुनावी तैयारियां तेज

चुनाव में जीत के बाद जश्न मनाते कार्यकर्ता

उत्तराखंड पंचायत चुनाव की पहली चरण और दूसरी चरण की प्रक्रिया के बाद अब सबसे ज़्यादा चर्चा जिला पंचायत अध्यक्ष और ब्लॉक प्रमुख चुनाव को लेकर है। यह चुनाव जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से नहीं, बल्कि चुने गए सदस्यों द्वारा किया जाता है। ऐसे में यह मुकाबला न केवल राजनीतिक रणनीति का केंद्र बन गया है, बल्कि इसमें धनबल और बाहुबल के उपयोग की भी संभावना जताई जा रही है। राज्य निर्वाचन आयोग की ओर से इन पदों पर चुनाव को लेकर तैयारी शुरू कर दी गई है। वर्तमान में आरक्षण सूची जारी की जा चुकी है और जैसे ही यह सूची अंतिम रूप लेगी, चुनाव की अधिसूचना जारी होगी।

चुने हुए सदस्य करते हैं चयन

जिला पंचायत अध्यक्ष और ब्लॉक प्रमुख का चुनाव सामान्य ग्राम प्रधान या पंचायत सदस्य चुनाव की तरह नहीं होता। इन दोनों पदों के लिए जनता प्रत्यक्ष रूप से वोट नहीं डालती, बल्कि पहले से चुने गए जिला पंचायत सदस्य और क्षेत्र पंचायत सदस्य (ब्लॉक सदस्य) ही अपने वोटों के जरिए अध्यक्ष और प्रमुख का चुनाव करते हैं। यानी आम जनता केवल अपने क्षेत्र का सदस्य चुनती है, और फिर वही सदस्य आपस में मिलकर अपने नेता का चयन करते हैं। यह प्रक्रिया कुछ हद तक राष्ट्रपति चुनाव जैसी होती है, जिसमें निर्वाचक मंडल (electoral college) के सदस्य ही वोट देते हैं। इसलिए यह चुनाव सीधे तौर पर जनता से जुड़ा नहीं होता, लेकिन इसका राजनीतिक असर बेहद गहरा होता है।

सिंगल ट्रांसफरेबल वोट सिस्टम से होता है मतदान

जिला पंचायत अध्यक्ष और ब्लॉक प्रमुख के चुनाव में एकल संक्रमणीय मतदान प्रणाली (Single Transferable Vote System) का इस्तेमाल होता है। इस प्रक्रिया में हर सदस्य को एक बैलेट पेपर मिलता है, जिसमें वह अपनी पसंद के उम्मीदवार के नाम के आगे मोहर लगाता है। मतदान के बाद मतगणना होती है और यह देखा जाता है कि किस उम्मीदवार को सर्वाधिक मत प्राप्त हुए हैं। अगर किसी वजह से कोई मतपत्र अमान्य पाया जाता है तो उसे गिनती से बाहर कर दिया जाता है। अंत में जिसे सबसे अधिक वैध वोट मिलते हैं, वही विजयी घोषित होता है। इस प्रणाली का उद्देश्य निष्पक्ष और प्रतिनिधिक निर्णय को बढ़ावा देना है, लेकिन यह भी सच है कि इस चुनाव में कई बार राजनीतिक जोड़-तोड़, खरीद-फरोख्त और दबाव की खबरें सामने आती हैं।

आरक्षण सूची जारी, अधिसूचना का इंतजार

राज्य निर्वाचन आयोग ने जिला पंचायत अध्यक्ष और ब्लॉक प्रमुख पदों के लिए आरक्षण सूची जारी कर दी है। यह सूची तय करती है कि किस जिले में कौन-से पद किस वर्ग (महिला, अनुसूचित जाति, पिछड़ा वर्ग आदि) के लिए आरक्षित होंगे। सूची के फाइनल होते ही आयोग द्वारा चुनाव की अधिसूचना जारी की जाएगी। इसके बाद नामांकन, छंटनी, मतदान और मतगणना की पूरी प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। नामांकन के दौरान ही यह तय हो जाएगा कि किन उम्मीदवारों के बीच मुकाबला होगा।

निर्दलीयों पर टिकी सियासी नजरे

उत्तराखंड के 12 जिलों में कुल 385 जिला पंचायत सदस्य निर्वाचित हुए हैं। इनमें से बड़ी संख्या में बीजेपी और कांग्रेस के उम्मीदवारों की जीत हुई है, लेकिन सबसे ज़्यादा चर्चा निर्दलीय उम्मीदवारों की है। इन निर्दलीयों का समर्थन पाना ही अब दोनों बड़ी पार्टियों का लक्ष्य बन गया है। क्योंकि अध्यक्ष और प्रमुख का चुनाव सदस्यों के वोट से होता है, इसलिए जितनी ज़्यादा संख्या में किसी पार्टी के पास सदस्य होंगे, उसकी जीत की संभावना उतनी ही अधिक होगी। लेकिन जब बहुमत नहीं होता, तो समर्थन जुटाने की कवायद शुरू होती है। इसी वजह से अब बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही निर्दलीय सदस्यों को अपने पक्ष में लाने के लिए राजनीतिक समझौते, लालच और प्रस्तावों का सहारा ले रही हैं। यह दौर अब असली सियासी परीक्षा का है, जहां रणनीति और समीकरण ही जीत तय करेंगे।