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Wed, Dec 17, 2025

उत्तराखंड में मदरसा शिक्षा व्यवस्था खत्म कर बनेगा अल्पसंख्यक शिक्षा प्राधिकरण

Written by:Vijay Choudhary
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Last Updated:
उत्तराखंड में मदरसा शिक्षा व्यवस्था खत्म कर बनेगा अल्पसंख्यक शिक्षा प्राधिकरण

उत्तराखंड की धामी सरकार राज्य में चल रही मदरसा शिक्षा व्यवस्था में बड़ा बदलाव करने जा रही है। सरकार ने एक नए कानून के तहत उत्तराखंड राज्य अल्पसंख्यक शिक्षा प्राधिकरण (USAME) की स्थापना करने का फैसला लिया है। इसका उद्देश्य अल्पसंख्यक समुदायों की शिक्षा व्यवस्था को सुधारना और पारदर्शी बनाना है। इस फैसले से मदरसों की मान्यता प्रणाली में भी बदलाव आएगा और भविष्य में उत्तराखंड में मदरसा शिक्षा की व्यवस्था राज्य की मुख्यधारा की शिक्षा से जोड़ी जा सकेगी।

मदरसा शिक्षा में मिली गड़बड़ियों के बाद उठाया गया कदम

सरकार का यह फैसला अचानक नहीं लिया गया है। हाल ही में उत्तराखंड में 452 पंजीकृत मदरसों के अलावा 500 से ज्यादा गैरकानूनी मदरसों की पहचान हुई थी। इनमें से 237 मदरसों को पहले ही बंद कर दिया गया है। साथ ही, मदरसों में मिलने वाली छात्रवृत्ति और मिड-डे मील जैसी योजनाओं में भी भारी अनियमितताएं पाई गईं। इन सबको देखते हुए सरकार ने मदरसा व्यवस्था को पूरी तरह से अपने नियंत्रण में लेने का निर्णय लिया है।

क्या है उत्तराखंड अल्पसंख्यक शिक्षा विधेयक 2025?

धामी कैबिनेट ने हाल ही में जो प्रस्ताव पास किया है, उसमें उत्तराखंड राज्य अल्पसंख्यक शिक्षा प्राधिकरण (USAME) के गठन की बात कही गई है। यह प्राधिकरण अल्पसंख्यक समुदायों द्वारा चलाए जा रहे शैक्षणिक संस्थानों को मान्यता देगा और उनकी निगरानी करेगा।

प्राधिकरण में एक अध्यक्ष और 11 सदस्य होंगे, जिन्हें राज्य सरकार नियुक्त करेगी। अध्यक्ष वही व्यक्ति बन सकेगा, जो अल्पसंख्यक समुदाय से हो और उसे 15 वर्षों का शिक्षण अनुभव हो। अब 1 जुलाई 2026 से पहले मान्यता प्राप्त सभी मदरसों को नए प्राधिकरण से फिर से मान्यता लेनी होगी। इसके बाद पुराना उत्तराखंड मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2016 और अरबी-फारसी मान्यता नियमावली, 2019 रद्द माने जाएंगे।

मान्यता के लिए तय हुईं सख्त शर्तें

नई व्यवस्था के तहत अब किसी भी संस्थान को अल्पसंख्यक शिक्षण संस्था के रूप में मान्यता तभी मिलेगी, जब वह किसी अल्पसंख्यक समुदाय द्वारा स्थापित और संचालित हो। साथ ही, उसे किसी पंजीकृत संस्था (जैसे सोसायटी, ट्रस्ट, या कंपनी) द्वारा संचालित किया जाना चाहिए। इतना ही नहीं, ऐसे संस्थानों में गैर-अल्पसंख्यक छात्रों का नामांकन 15% से अधिक नहीं होना चाहिए।

प्राधिकरण पाठ्यक्रम भी तय करेगा और धार्मिक विषयों के अलावा अन्य विषयों की परीक्षा लेने व सर्टिफिकेट देने का काम भी करेगा। इसका मकसद शिक्षा की गुणवत्ता और पारदर्शिता को बढ़ाना है।

सभी अल्पसंख्यकों को मिलेगा समान अधिकार

पहली बार उत्तराखंड में सभी अल्पसंख्यकों के लिए एक जैसी शिक्षा मान्यता की व्यवस्था बनाई जा रही है। इसमें मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन और पारसी समुदाय शामिल हैं। अब सिर्फ मुस्लिम मदरसों को ही नहीं, बल्कि सभी अल्पसंख्यक समुदायों के संस्थानों को भी समान रूप से मान्यता मिलेगी। सरकार का उद्देश्य है कि इन संस्थानों के छात्रों को धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ मुख्यधारा की सामान्य शिक्षा भी मिले, ताकि वे समाज में बेहतर तरीके से आगे बढ़ सकें।