प्रदेश का यह क्षेत्र बीते कई दशकों से बड़े पैमाने पर पलायन की समस्या से जूझ रहा है। रोजगार नहीं मिलने से परेशान स्थानीय लोग और युवा वर्ग दूसरे शहरों में जाने पर मजबूर हैं। किसान भी पानी की मार झेल रहा है। सूखे की वजह से यहां के किसान बर्बादी की कगार पर हैं। कई गांव खाली हो चुके हैं। जमीन भी बंजर हो गई है। सरकार के उदासीन रवैये से यहां का विकास ठहरा हुआ है। जहां पानी की व्यवस्था है और खेतीबाड़ी है वहां फसलों के पूरा होने पर किसान लौट आते हैं। लेकिन इस समस्या का हल किसी भी पार्टी ने अब तक नहीं किया है। एमपी विधानसभा चुनाव ऐसे समय हुआ जब बुवाई का काम लगभग पूरा हो चुका था और खाली बैठे परिवार मजदूरी की तलाश में गांव छोड़ गए। कई गांव में घरों पर ताले लटके थे। इसके बावजूद लोगों में मतदान को लेकर खासा उत्साह रहा।
खुरई में हुई सबसे अधिक वोटिंग
विधानसभा वार अगर मतदान के पैटर्न पर नजर डालें तो सागर जिले की खुरई में 81 फीसदी मतदान दर्ज हुआ है। यहां पिछली बार 75.74 प्रतिशत मतदान हुआ था। क्षेत्र के अन्य विधानसभा के मुकाबले सागर विधानसभा में इस बार सबसे कम मतदान दर्ज किया गया है। यहां 64.52% मतदान दर्ज किया गया है। बुंदेलखंड के छह जिलों में छतरपुर, दमोह, टीकमगढ़, पन्ना, सागर और दतिया में प्रदेश के औसत के मुकाबले वोटिंग प्रतिशत कम रहा। लेकिन अगर यहां का औसत पिछले विधानसभा चुनाव के प्रतिशत से तुलना करें तो यह इस बार दो फीसदी बढ़ा है।
क्या कहते हैं जानकार
जानकारों का कहना है कि इस बार मतदान प्रतिशत बढ़ना वर्तमान सरकार के लिए शुभ संकेत नहीं है। पिछले चुनाव की तुलना में यहां मतदान ज्यादा हुआ है। वोटिंग का यह ट्रेंड सत्ताधारी दल के लिए खतरा दर्शा रहा है। सूत्रों के मुताबिक स्थानीय लोगों में सरकारी योजनाओं के लेकर आक्रोश है। सामान्य तौर पर बुंदेलखंड में नवंबर के महीने में लोग अपने कामकाज को लेकर बाहर रहते हैं। लेकिन इस बार बढ़े प्रतिशत के हिसाब से ऐसा जाहिर हो रहा है कि लोगों में बदलाव को लेकर गुस्सा पनप रहा है। जिस वजह से उन्होंने यहां रुक कर भारी मतदान किया है।