जीवनदाता को खुशी की संजीवनी देने का पर्व है फादर्स डे

भोपाल, डेस्क रिपोर्ट, प्रवीण कक्कड़। भारतीय समाज संसार के सबसे संतुलित समाजों में से एक है। यहां की बहुसंख्यक आबादी के परिवारों का ताना-बाना पितृसत्तात्मक है, लेकिन हम अपनी जन्मभूमि को पितृभूमि नहीं, मातृभूमि कहते हैं। हमारे यहां माता और पिता दोनों को एक साथ प्रणाम करने की परंपरा है। इस सबके साथ ही हम सभी संस्कृतियों को अपने में समाविष्ट करने वाले लोग भी हैं। इसी प्रक्रिया में हमारी परंपरा में मदर्स डे और फादर्स डे भी जुड़ गए हैं। अगर पुरानी परंपरा से मनाया जाता तो यह दोनों दिवस पर एक साथ ही होते लेकिन नए चलन में मातृ दिवस और पितृ दिवस अलग-अलग तारीखों पर आते हैं।

अगर भारतीय परंपरा से ही बात करें तो हमारे यहां हर मनुष्य के ऊपर तीन तरह के ऋण होते हैं। देव ऋण, ऋषि ऋण और पितृ ऋण। इस तरह से देखें तो फादर्स डे हमें पितृ ऋण चुकाने का मौका देता है।


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Manuj Bhardwaj