होशंगाबाद, राहुल अग्रवाल। सतपुड़ा पर्वत श्रृंखला से बह रही नर्मदा अपने सहयोगी जंगलों के जरिए मौजूदा दौर में बेरोजगारी दूर करने और इकोनॉमी को फिर मजबूत करने में कारगर साबित हो सकती है। इसके लिए आदिवासियों के पारंपरिक ज्ञान का इस्तेमाल करना होगा जिन्हें वनाेपज और औषधीय वनस्पतियाें के उपयाेग की जानकारी है।
अभी तक वनाेपज और औषधीय वनस्पतियां जैसे सफेद मूसली, औषधीय कंद जिनका दवाइयां बनाने में उपयाेग किया जाता है, बिना जानकारी के ही निर्यात कर दी जाती हैं और इसका अधिक आर्थिक लाभ नहीं मिल पाता है। यदि वनाेपज और औषधीय वनस्पति की प्राेसेसिंग कर इसका मेडिसिनल उपयाेग किया जाए ताे बेहतर बाजार उपलब्ध हाेने से आजीविका और राेजगार के अवसराें काे बढ़ाया जा सकता है। दो दशक पहले सरकार की तालाब, सिंचाई, वनमित्र याेजनाओं सेे प्रयास किए गए लेकिन अभी उनके पर्याप्त परिणाम नहीं मिल सके हैं। वनवासियाें के औषधीय ज्ञान का दस्तावेजीकरण करने से वनाेपज और औषधीय वनस्पति काे आजीविका का जरिया बनाया जा सकता है।