चुनाव में बड़ा हथियार ‘हमनाम उम्मीदवार’, दिग्गजों का गणित बिगाड़ने को तैयार

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भोपाल। एमपी की 29 सीटों पर इस बार लोकसभा चुनाव काफी रोचक होने वाला| लोकसभा के रण में कई सीटें ऐसी है जहां पार्टियों से पहले प्रत्याशियों को अपने हमनाम को टक्कर देनी होगा, फिर चाहे भोपाल से साध्वी प्रज्ञा हों या दमोह से प्रहलाद सिंह पटेल इनके साथ ही दोनों ही पार्टियों में कई ऐसे चेहरे हैं जिनके हमनाम मैदान में हैं| 2018 में विधासनभा के अखाड़े में भी हमनाम प्रत्याशियों की बाढ़ आई थी जिसका ज्यादा फर्क तो नहीं दिखाई दिया लेकिन इन हमनाम उम्मीदवारों ने हार जीत के अंतर को काफी प्रभावित किया| वहीं विधानसभा की दमोह सीट तो ऐसी थी की जहां कांग्रेस के राहुल सिंह 798 वोट से जीते लेकिन उनके 3 हमनाम 3700 से ज्यादा वोट ले गए| 

शेक्सपीयर ने अपने एक नाटक में कहा था कि “नाम में क्या रखा है” लेकिन चुनावी राजनीति में नाम का बड़ा महत्व है| अगर दो प्रत्याशियों के नाम एक समान हों तो इसकी संभावना काफी ज्यादा है कि उनके वोट भी बंट जाएं| एमपी विधानसभा चुनाव में इसका असर भी देखने को मिला जहां कई सीटों पर जीत के अंतर से ज्यादा वोट हमनाम उम्मीदवारों को मिले| अब इसे राजनैतिक पार्टियों की रणनीति कहा जाए या कॉइन्सिडेंस| विधानसभा 2018 में बड़े प्रत्याशियों के हमनाम कैंडिडेट की भरमार थी और वही नजारा इस बार लोकसभा में भी है| ये हमनाम चुनावी नतीजों को ज्यादा न सही कुछ जुरुर प्रभावित करते हैं जिसका उदाहरण विधानसभा 2018 के नतीजें हैं|


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