जनजातियों में हो रही लगातार बढोत्तरी के चलते प्रदेश सरकार ने फैसला किया है कि वह विशेष पिछड़ी जनजातियों का सर्वे करवाएगी और पता लगाएगी कि असल में इन जनजातियों में शामिल लोगों की संख्या कितनी है। इस दिशा में काम शुरु हो गया है और लोकसभा चुनाव के बाद कर्मचारियों से सर्वे करवाया जाएगा और पता लगाया जाएगा कि मप्र में कितनी विशेष जातियों के लोग निवास कर रहे है।रिपोर्ट आने के बाद सर्वे की कार्ययोजना घोषित की जाएगी।जनजातीय कार्य विभाग के वर्ष 2016 के आंकड़े बताते हैं कि प्रदेश के दो हजार 314 गांवों में पांच लाख 50 हजार विशेष पिछड़ी जनजाति के परिवार निवास करते हैं।
दरअसल, प्रदेश के विभिन्न् इलाकों में पाई जाने वाली विशेष पिछड़ी जनजातियों (बैगा, भारिया, सहरिया और पारदी) के लोगों की संख्या जानने राज्य शासन सर्वे कराने जा रहा है। पिछली बार यह सर्वे 2016 में करवाया गया था।उसी के आधार पर कार्य किए जा रहे है, वर्तमान में ना तो राज्य और ना ही केंद्र सरकार के पास इन विशेष जनजातियों का नया डाटा है।लेकिन दर्जनों योजनाओं का लाभ इनको मिल रहा है। इसी के चलते यह प्रक्रिया शुरु होने जा रही है। हालांकि इसे लेकर पिछले तीन साल से सर्वे की कोशिशें चल रही हैं, लेकिन अब तक सर्वे शुरू नहीं हो पाया है। अब अन्य पिछड़ा वर्ग विभाग ने इसकी तैयारी की है। सर्वे कैसे कराया जाना है, इसकी रूपरेखा तैयार कर ली गई है। लोकसभा चुनाव के बाद विभाग मैदानी स्तर पर कर्मचारियों के माध्यम से यह सर्वे कराएगा।इस सर्वे के साथ ही सरकार का फोकस इन जातियों पर विशेष रुप से होने वाला है।
इन जिलों में विशेष जनजाति
विशेष पिछड़ी जनजाति के परिवार मंडला, शहडोल, डिंडौरी, उमरिया, अनूपपुर, बालाघाट (बैहर), ग्वालियर-चंबल संभाग के सभी जिले, छिंदवाड़ा जिले के पातालकोट आदि में पाए जाते हैं।