बिहार के नवादा जिले से हैरान करने वाली खबर सामने आई है। यहां फुलवरिया जलाशय परियोजना के लिए सरकार ने साल 2015 में ग्रामीणों की जमीन और घर ले लिए। वादा किया गया था कि लाखों रुपये मुआवजा दिया जाएगा, लेकिन सरकार और अधिकारियों ने इसे गंभीरता से नहीं लिया। लोग बार-बार दफ्तरों के चक्कर लगाते रहे, पर किसी ने उनकी नहीं सुनी। आखिरकार थक-हारकर ग्रामीणों ने कोर्ट का रुख किया।
कोर्ट ने बजाया कुर्की का ढोल, सरकारी इमारतें बनीं निशाना
अदालत ने जब मामले की सुनवाई की, तो पाया कि सरकार ने मुआवजा देने में लापरवाही बरती है। सब जज प्रथम आशीष रंजन ने सख्त कदम उठाते हुए आदेश दिया कि नवादा समाहरणालय (कलेक्ट्रेट) और सर्किट हाउस को कुर्क किया जाए। कोर्ट के आदेश के बाद न्यायालय कर्मियों ने इन इमारतों पर ढोल बजाकर कुर्की का इश्तेहार चिपका दिया। यह पहली बार हुआ है जब बिहार में किसी सरकारी दफ्तर पर इस तरह की कार्रवाई हुई हो।
बेशर्म सिस्टम की खुली पोल, अधिकारी रहे गायब
पूरा मामला यह दिखाता है कि कैसे सरकारी सिस्टम में जिम्मेदारी की कमी है। जिन अधिकारियों को मुआवजा देने की जिम्मेदारी थी, उन्होंने अपना कार्यकाल एसी दफ्तरों में बिता दिया और फिर ट्रांसफर होकर चले गए। किसी ने भी इन पीड़ितों की सुध नहीं ली। कोर्ट ने आदेश में साफ कहा कि जब सरकार अपने ही लोगों को न्याय नहीं दे सकती, तो ऐसे सिस्टम का क्या मतलब?
मुआवजा नहीं दिया, तो अब कोर्ट ने छीनी सरकारी संपत्ति
कोर्ट के मुताबिक, सरकार को ₹6,58,687.21 का मुआवजा देना था। लेकिन 15% सालाना ब्याज के कारण यह राशि दोगुनी से भी ज्यादा हो गई। फिर भी अफसरों ने न तो अदालत में पेशी की और न ही पैसा दिया। अदालत ने दो टूक कहा – अब इन संपत्तियों पर सरकार का कोई हक नहीं है। यह केवल कुर्की का आदेश नहीं है, बल्कि सुस्त और लापरवाह सिस्टम को जगाने वाला सीधा संदेश है।





