भोपाल, डेस्क रिपोर्ट
एमपी उपचुनाव से पहले ओबीसी आरक्षण(OBC Reservation) को लेकर जमकर सियासत गर्माई हुई है। सत्तापक्ष और विपक्ष में आरोप-प्रत्यारोपों का दौर तेजी से चल रहा है। ओबीसी आरक्षण पर हाई कोर्ट की सुनवाई के बाद पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ(Former Chief Minister Kamal Nath) के लेटर पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान(Chief Minister Shivraj Singh Chauhan) जवाब पर कांग्रेस हमलावर हो गई है। कांग्रेस का आरोप है कि शिवराज नहीं चाहते पिछड़ों को 27 फीसदी आरक्षण मिले।यही कारण है कि 13 सालों तक मुख्यमंत्री रहे तब कोर्ट में जवाब देने अधिवक्ता तक नियुक्त नहीं किया?
दरअसल, आज कांग्रेस के कद्दावर नेता केके मिश्रा , पूर्व महापौर विभा पटेल और ओबीसी आरक्षण को लेकर हाईकोर्ट में याचिकाओं की पैरवी कर रहे अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर ने संयुक्त बयान में कहा है कि शिवराज सिंह चौहान चाहते ही नहीं हैं कि मप्र में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को 27 फीसदी आरक्षण मिले। यदि ऐसा होता तो वे अपने पिछले 14 के कार्यकाल में ओबीसी आरक्षण को लेकर हाईकोर्ट में सरकार की ओर से मजबूती से पक्ष रखते थे! शिवराज सरकार ने हाईकोर्ट में ओबीसी आरक्षण पर सरकार का पक्ष रखने के लिए ऐसा अधिवक्ता ही नियुक्ति नहीं किया, जिसे ओबीसी आरक्षण की जानकारी हो। शिवराज सिंह चौहान खुद पिछड़े वर्ग से आते हैं, लेकिन उन्हें पिछड़े वर्ग को 27 फीसदी आरक्षण देने के मामले में बोलने का अधिकार नहीं है।
दिग्विजय सरकार में लिया गया था फैसला
कांग्रेस नेताओं ने कहा कि दिग्विजयसिंह के नेतृत्व वाली तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने 17 साल पहले 30 जून 2003 को मप्र में पिछड़ों को 27 फीसदी आरक्षण देने का फैसला किया था। इसके बाद दिसंबर 2003 में भाजपा की सरकार आ गई और ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण देने का मामला जबलपुर हाईकोर्ट में गया। ओबीसी आरक्षण पर पूर्व मुख्यमंत्री श्री कमलनाथ की मंशा पर सवाल उठाने वाले श्री शिवराज सिंह चौहान 2005 से लेकर 2018 तक मप्र के मुख्यमंत्री रहे, लेकिन ओबीसी आरक्षण को लेकर उन्होंने हाईकोर्ट में सरकार का पक्ष रखने के लिए अधिवक्ता तक नियुक्त नहीं किया था,ऐसा क्यों?भाजपा सरकारों में तीन-तीन मुख्यमंत्री पिछड़े वर्ग के होने के बावजूद उनके द्वारा पिछड़े वर्ग के लिए कोई काम नहीं किया गया?
मुख्यमंत्री बनते ही कमलनाथ ने किया था वादे पर काम शुरु
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और भाजपा सरकार ने पिछड़ों के अधिकारों को लेकर घोर उपेक्षा एवं लापरवाही की थी। यही वजह रही कि 13 अक्टूबर 2014 को जबलपुर हाईकोर्ट में मप्र सरकार की ओर से० ओबीसी आरक्षण पर मजबूती से पक्ष नहीं रखने पर 27 प्रतिशत आरक्षण खारिज कर 14 फीसदी ही रखने का फैसला किया था। मध्यप्रदेश में दिसंबर 2018 में फिर से कमलनाथ जी के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनी और उन्होंने मुख्यमंत्री की शपथ लेने के बाद ही ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण देने की दिशा में काम शुरू किया और 8 मार्च 2019 को ओबीसी को शासकीय सेवाओं में 14 से बढ़ाकर 27 फीसदी आरक्षण देने का फैसला कर दिया। इसके विरोध में जबलपुर हाईकोर्ट में पहली याचिका क्रमांक 5907/2019 दायर की गई। इसके बाद कमलनाथ सरकार ने जुलाई 2019 में विधानसभा में बहुमत से पारित कर आरक्षण अधिनियम की धारा-4 (चार)में विधिवत संशोधन किया गया। इसके बाद सामान्य प्रशासन विभाग की ओर से 19 अगस्त 2019 को ओबीसी को शासकीय सेवाओं में आरक्षण 14 फीसदी से बढ़ाकर 27 फीसदी करने का रोस्टर जारी किया गया।
कमलनाथ का शिवराज को लेटर
पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ को पत्र लिखते हुए कहा कि ओबीसी आरक्षण पर 8 महीने तक कांग्रेसी सरकार ने कोर्ट के समक्ष कोई जवाब पेश नहीं किया था। इसके साथ ही कोर्ट की तरफ से मिल रहे स्टे को समाप्त कराने के लिए भी कमलनाथ सरकार ने कभी कोई कदम नहीं उठाए। शिवराज सिंह चौहान ने कमलनाथ सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि कई बार कोर्ट की सुनवाई के दौरान कांग्रेस सरकार के महाधिवक्ता तक कोर्ट में उपस्थित नहीं रहे। वही कोट की याचिका में भी कांग्रेस की तत्कालीन सरकार की ओर से कोई उत्तर पेश नहीं किया गया था। अगर कांग्रेस ने उस वक्त समुचित ढंग से प्रयास किए होते तो आज यह स्थिति उत्पन्न ही नहीं होती।
शिवराज ने लेटर का दिया ये जवाब
दूसरी तरफ मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पत्र में कहा कि मध्यप्रदेश में आर्थिक रूप से कमजोर व ओबीसी के लिए बीजेपी सरकार ने कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। महामारी के इस दौर में भी बीजेपी सरकार ने उनके हित के लिए काम किए हैं। जबकि कांग्रेस सरकार ने सिर्फ जनता में भ्रम फैलाने का काम किया है। ऐसी स्थिति में कमलनाथ को इस मुद्दे पर बोलने का हक नहीं होना चाहिए। शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि यदि 15 महीने में कमलनाथ सरकार ने प्रदेश में ओबीसी जातियों की स्थिति सुधारने के लिए कोई काम किए होते तो आज इसकी नौबत ही नहीं आती।
बता दे कि मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने पिछड़े वर्ग ओबीसी को सरकारी नौकरी में पड़े हुए 27% आरक्षण पर रोक बरकरार रखा है। सुनवाई में जबलपुर हाईकोर्ट ने कहा था कि बड़े हुए 27% पर अभी रोक जारी रहेगी। वहीं इस मामले की अगली सुनवाई 18 अगस्त को होनी है, जिसके बाद से प्रदेश में इस मुद्दे को लेकर राजनीति छिड़ गई है।