पढ़ाई के लिए पिता ने डांटा तो दे दी किले से कूदकर जान, झाड़ियों में उलझा शव 

Atul Saxena
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ग्वालियर, अतुल सक्सेना। युवा पीढ़ी में सहनशीलता इतनी कम हो गई है कि वो माता ,पिता या अन्य किसी शुभचिंतक की डांट से नाराज होकर आत्मघाती कदम उठा लेते हैं। ऐसा ही एक मामला बुधवार को ग्वालियर में सामने आया है जिसमें 12 वीं के एक छात्र (Student) ने पढ़ाई के लिए पिता की डांट को इतना दिल पर ले लिया कि ग्वालियर किले से कूदकर अपनी जान दे दी।

जानकारी के अनुसार हजीरा थाना क्षेत्र के मेजर कॉलोनी गदाईपुरा वाला साहिल राठौर 12वीं का छात्र (Student) था। बुधवार सुबह वह देर तक सोता रहा तो उसके पिता ने बोर्ड परीक्षा होने की बात कहकर उसे डांट फटकार लगा दी। पिता के डांट से नाराज साहिल  नाराज हो गया उसने कपड़े बदले और गुस्से में घर से निकल गया । जब वो बहुत देर तक नहीं लौटा तो उसके दोनों भाई विनोद और कोमल उसे तलाशने गए लेकिन कहीं उसका पता नहीं चला। कुछ देर बाद एक लड़के के किले से कूदने की जानकारी परिजनों को मिली। परिजन किले पर गए और साहिल के भाई विनोद ने साहिल को पहचान लिया। करीब 50 फीट की गहराई में पत्थर पर गिरने से उसकी मौके पर ही मौत हो गई।

झाड़ियों में फंसे शव को फायर ब्रिगेडकर्मियों ने निकाला 

साहिल ने किले की जिस दीवार से छलांग लगाई  उसमें और तल के बीच करीब 50 फीट की गहराई  है शव इन्हीं पत्थरों और झाड़ियों के बीच फंसा था। मौके पर पहुंची पुलिस ने फायर ब्रिगेड को सूचना दी। पुलिस और फायर ब्रिगेड अमले ने रस्सी से खींचकर साहिल के शव को किले पर ऊपर खींचा।

पढ़ाई के लिए पिता ने डांटा तो दे दी किले से कूदकर जान, झाड़ियों में उलझा शव 

 सुसाइड पॉइंट पर लगी जाली भी नहीं बचा पा रही जान 

जिस जगह से छात्र साहिल ने कूदकर आत्म हत्या की है उस जगह को किले का सुसाइड पॉइंट कहा जाता है। लगातार हो रहे हादसे के बाद बीते साल यहां लोहे की जाली लगवा दी गई थी, लेकिन उसके बाद भी कूदने वाले जाली से निकल कर दीवार पर चढ़कर कूद रहे हैं। बहोड़ापुर उरवाई गेट के पीछे और कोटेश्वर मंदिर के पास किले की दीवार को सुसाइड प्वाइंट के नाम से जाना जाता है। खुदकुशी करने वाले अधिकांश लोग इसी किले से कूदकर अपनी जीवन लीला समाप्त कर देते हैं। बताया जाता है  बीते दो साल में यहां से करीब 10  युवाओं ने कूदकर जान दी है।

 


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पत्रकारिता मेरे लिए एक मिशन है, हालाँकि आज की पत्रकारिता ना ब्रह्माण्ड के पहले पत्रकार देवर्षि नारद वाली है और ना ही गणेश शंकर विद्यार्थी वाली, फिर भी मेरा ऐसा मानना है कि यदि खबर को सिर्फ खबर ही रहने दिया जाये तो ये ही सही अर्थों में पत्रकारिता है और मैं इसी मिशन पर पिछले तीन दशकों से ज्यादा समय से लगा हुआ हूँ....पत्रकारिता के इस भौतिकवादी युग में मेरे जीवन में कई उतार चढ़ाव आये, बहुत सी चुनौतियों का सामना करना पड़ा लेकिन इसके बाद भी ना मैं डरा और ना ही अपने रास्ते से हटा ....पत्रकारिता मेरे जीवन का वो हिस्सा है जिसमें सच्ची और सही ख़बरें मेरी पहचान हैं ....

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