देवास, सोमेश उपाध्याय।
भगवान श्री राम ने लँका पार करने के लिए सागर में पत्थर तेरा कर सेतु बना दिया था।परन्तु वर्तमान में आपसे कोई पानी मे पत्थर तैराने की बात करेंगे तो क्या आप मानेंगे,बिल्कुल नही।परन्तु ऐसा मध्यप्रदेश के देवास जिले के बागली विकासखंड की हाटपिपल्या तहसील में होता है। यहां भगवान नृसिंह की साढ़े सात किलो वजनी पाषाण प्रतिमा पानी में तैरती है।जिसके गवाह बनते है हजारों लोग।यहां हर साल डोलग्यासर पर नृसिंह भगवान की प्रतिमा को नदी में तीन बार तैराया जाता है। लोगों का दावा है की प्रतिमा पानी में तैरती है और नदी के बहाव की उल्टी दिशा में तैरती है। दरअसल, प्रतिमा तैराने के पीछे एक मान्यता है। जिसके अनुसार भगवान की प्रतिमा को तीन बार तैराने से आने वाले साल की खुशहाली का अंदाजा लगाया जाता है।प्रति वर्ष यह आयोजन भब्य पैमाने पर होता है परन्तु प्रशाशनिक सख़्ती के चलते इस वर्ष केवल पुजारियों ने भगवान की पाषाण प्रतिमा को भमोरी नदी में तैराया।इस वर्ष तीनो बार प्रतिमा तेरी।इसका आशय यह निकाला जा रहा है कि आगामी वर्ष सुखद होने वाला है!
करीब 115 साल पुराना है इतिहास
बुजुर्गों के बताए अनुसार नृसिंह भगवान की इस पाषाण प्रतिमा का इतिहास करीब 115 साल पुराना है। साल 1902 से हर वर्ष भादौ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को यानी डोल ग्यारस के दिन नृसिंह भगवान की प्रतिमा तैराई जाने की परंपरा है। कहा जाता है की प्रतिमा की प्रतिष्ठा बागली रियासत के पंडित बिहारीदास वैष्णव ने नृसिंह पर्वत की चारो धाम की तीर्थ यात्रा करवाने के बाद पीपल्या गढ़ी में करवाई थी।