National Sports Day: मनाई गई हॉकी जादूगर मेजर ध्यानचंद की 115वीं जयंती, भारत रत्न देने की उठी मांग

Kashish Trivedi
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जबलपुर, संदीप कुमार। हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद की 115वीं जयंति आज मनाई जाती है और इस राष्ट्रीय खेल दिवस के मौके पर एक बार फिर मेजर ध्यानचंद को भारत रत्न देने की मांग भी उठी थी। देश का ये सर्वोच्य नागरिक सम्मान तो आज तक मेजर ध्यानचंद को नहीं दिया गया लेकिन उनसे जुड़ी यादों को सहेजने में भी कम लापरवाही नहीं बरती गई। इसका उदाहरण आज भी जबलपुर में मौजूद है जहां मेजर ध्यानचंद की सगी बहन के नाम पर एक सड़क के नामकरण की फाईल सालों से अटका दी गई है।

जबलपुर के राईट-टाऊन इलाके में रहने वाले चौहान परिवार का कसूर सिर्फ इतना है कि वो किसी सत्ताधारी नेता के सगे नहीं हैं। वो किसी उद्योगपति,किसी नेता किसी आला अफसर के रिश्तेदार होते तो ये परिवार आज गुमनामी के साये में नहीं होता। दरअसल दुनिया भर में भारत का नाम रौशन करने वाले, हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद की सगी बहन सुरजा देवी चौहान रहती थीं मेजर ध्यानचंद और हॉकी के कई सितारों को इसी वजह से जबलपुर आना-जाना होता था और तब शहर के तमाम अधिकारी,नेता,कथित खेल प्रेमियों की भीड़ भी यहां लगती थी। लेकिन साल 2004 में सुरजा देवी चौहान के निधन के बाद प्रशासन ने मेजर ध्यानचंद के जबलपुर से इस नाते को भी भुला दिया।

आज हालात वो हैं जो श्रीमति सुरजा देवी चौहान के बेटे और मेजर ध्यानचंद के सगे भांजे विक्रम सिंह चौहान बताते हैं की इन्होने मेजर ध्यानचंद के जबलपुर से इस नाते को ज़िंदा रखने के लिए राईटटाऊन में अपने घर के सामने की सड़क का नामकरण ध्यानचंद की बहन और अपनी मां सुरजा देवी चौहान के नाम करने की मांग की। इस मांग का समर्थन लगभग हर नेता ने किया,चिट्ठियां भी लिखीं लेकिन सालों के बाद आज भी ये फाईल सरकारी दफ्तरों में धूल खा रही है।जबलपुर नगर निगम का कार्यकाल खत्म होने के बाद संभाग आयुक्त महेश चंद्र चौधरी नगर निगम के प्रशासक बनाए गए हैं जिनके पास मेजर ध्यानचंद की बहन के नाम पर इस सड़क के नामकरण का प्रस्ताव लंबित है। याद दिलाने पर प्रशासक कहते हैं कि वो जल्द से जल्द इस प्रस्ताव को हरी झण्डी दे देंगे। उधर देश में मेजर ध्यानचंद को भारत रत्न सम्मान देने की मांग और इधर उनकी याद में उनकी बहन के नाम पर एक अदद सड़क के नामकरण की मांग का लंबित होना बताता है कि हमारा सिस्टम जन-भावनाओं को कितनी तवज्जो देता है। इस दौर में जब सिर्फ उगते सूरज को सलाम करने की रवायत कानून बन गई है तो सवाल है कि शासन और प्रशासन के ऐसे रवैये से हमारे इतिहास के सितारों और उनके परिजनों के प्रति श्रध्दा भाव कौन और कैसे रखेगा।


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