गणतंत्र का तोहफा – सेंट्रल जेल के 29 बंदी अब ले सकेंगे खुली हवा में सांस

Atul Saxena
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ग्वालियर, अतुल सक्सेना । अपने क्रोध पर नियंत्रण नहीं रख पाने या फिर विपरीत परिस्थितियों के चलते अपराध की दुनिया में शामिल होने वाले बंदियों के लिए गणतंत्र दिवस खुशियां लेकर आया है। ग्वालियर सेन्ट्रल जेल (Gwalior Central Jail) में बंद 29 बंदियों को इस बार गणतंत्र दिवस (Republic Day) के मौके पर रिहाई मिली। रिहा हुए बंदियों का कहना है कि अब वो अपनी बाकी की जिंदगी सुख और शांति के साथ जीना चाहते हैं।

ग्वालियर सेन्ट्रल जेल (Gwalior Central Jail) में बंद हजारों बंदियों में से 29 बंदियों के लिए इस बार का गणतंत्र दिवस खुशियां लेकर आया है। उनके अच्छे आचरण और उनके द्वारा किये गए अपराध की सजा की अवधि पूरी करने के चलते शासन के नियमानुसार इन्हें रिहा किया गया। ग्वालियर सेन्ट्रल जेल (Gwalior Central Jail) अधीक्षक मनोज साहू ने एमपी ब्रेकिंग न्यूज़ को बताया कि 30 बंदियों को गणतंत्र दिवस (Republic Day)पर रिहा करने के आदेश हुए हैं ये सभी हत्या यानि धारा 302 के अपराध की सजा काट चुके हैं। इनमें से एक बंदी बलवीर को न्यायालय ने बरी कर दिया इसलिए उसे 23 जनवरी को रिहा कर दिया गया ।अब शेष 29 बंदी आज 26 जनवरी गणतंत्र दिवस (Republic Day) पर रिहा किये किये गए। रिहा किये गए बंदियों में एक महिला भी शामिल है। इनमें ज्यादातर 14 ,15,16 साल की सजा भी काट चुके हैं। गणतंत्र दिवस (Republic Day) पर झंडा वदंन के बाद इन्हें रिहा किया गया । रिहा किए जाने वाले बंदियों को प्रमाण पत्र और जेल में काम कर कमाए गए रुपए भी दिए गए।

अब सुख और शांति की जिंदगी जीना चाहते हैं रिहा हुए बंदी

रिहा हुए बंदी पर्वतीश्री ने कहा कि वो शिवपुरी का रहने वाला है दतिया में उसके मकान के झगड़े में उसे झूठा फंसा दिया गया। सजा भी हो गई। मैंने 15 साल 1 महीना 24 दिन की सजा काटी है। अब बाहर आकर अच्छा लग रहा है अंदर रहकर बाहरी दुनिया से दूर था। अब बाकी जिंदगी सुख और शांति से जीना चाहता हूँ।

कोरोना के चलते नहीं हुए सांस्कृतिक कार्यक्रम

ग्वालियर सेंट्रल जेल अधीक्षक मनोज साहू ने बताया कि कोरोना महामारी के चलते  हर साल की तरह होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रम इस बार स्थगित कर दिए गए । साधारण समारोह में बंदियों को रिहा किया गया। कोरोना महामारी को देखते हुए सोशल डिस्टेंस समेत अन्य नियमों का पालन किया गया।

गणतंत्र का तोहफा - सेंट्रल जेल के 29 बंदी अब ले सकेंगे खुली हवा में सांस

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Atul Saxena

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पत्रकारिता मेरे लिए एक मिशन है, हालाँकि आज की पत्रकारिता ना ब्रह्माण्ड के पहले पत्रकार देवर्षि नारद वाली है और ना ही गणेश शंकर विद्यार्थी वाली, फिर भी मेरा ऐसा मानना है कि यदि खबर को सिर्फ खबर ही रहने दिया जाये तो ये ही सही अर्थों में पत्रकारिता है और मैं इसी मिशन पर पिछले तीन दशकों से ज्यादा समय से लगा हुआ हूँ....पत्रकारिता के इस भौतिकवादी युग में मेरे जीवन में कई उतार चढ़ाव आये, बहुत सी चुनौतियों का सामना करना पड़ा लेकिन इसके बाद भी ना मैं डरा और ना ही अपने रास्ते से हटा ....पत्रकारिता मेरे जीवन का वो हिस्सा है जिसमें सच्ची और सही ख़बरें मेरी पहचान हैं ....

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