इस कथा के बिना अधूरा माना जाएगा सफला एकादशी का व्रत, अपनाएं श्री हरि की कृपा पाने का आसान रास्ता

Saphala Ekadashi 2024: इस दिन व्रत रखने से न केवल व्यक्ति के पाप समाप्त होते हैं, बल्कि उसकी सभी मनोकामनाएं भी पूरी होती है। सफला एकादशी व्रत का अधिक फल प्राप्त करने के लिए इस दिन व्रत कथा का पाठ अवश्य करना चाहिए।

Bhawna Choubey
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Saphala Ekadashi 2024: आज गुरुवार है और साथ ही साथ सफला एकादशी भी है। पौष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को सफला एकादशी के रूप में जाना जाता है। इस दिन भक्त भगवान विष्णु की आराधना करते हैं और व्रत रखते हैं।

इस दिन व्रत को विधिपूर्वक करना और अगले दिन द्वादशी तिथि में व्रत का पारण करना चाहिए। इसके अलावा इस दिन दान करने का भी विशेष महत्व है। अगर आप भी सफला एकादशी का व्रत रख रहे हैं, तो आपको पूजा के दौरान इस कथा का पाठ अवश्य करना चाहिए।

व्रत कथा का महत्व (Saphala Ekadashi 2024)

माना जाता है, की कथा के बिना व्रत का पूरा फल नहीं मिलता है। सच्चे मन व श्रद्धा से सफला एकादशी की कथा का पाठ करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है। यह कथा न केवल आत्मिक शांति प्रदान करेगी बल्कि जीवन में सुख समृद्धि सफलता का मार्ग भी प्रशस्त करेगी।

सफला एकादशी व्रत कथा

(Saphala Ekadashi Vrat katha 2024)

एक राजा चंपावती नाम के नगर में रहा करता था, राजा का नाम महिष्मान था। राजा की अपनी चार संतान थी और चारों ही पुत्र थे। राजा का जो सबसे बड़ा बेटा था वह नास्तिक था, वह देवी देवताओं का अपमान करता था।

उस बेटे का नाम लूंपक था, एक दिन राजा ने उसे नगर से निकाल दिया। जिसके बाद वह जंगल में रहने लगा और मांस मच्छी का सेवन करने लगा। फिर कुछ दिनों के बाद उसे कुछ भी खाने के लिए नहीं मिला, ऐसे में वह एक दिन एक संत के पास पहुंचा, उस दिन एकादशी तिथि थी।

संत ने उसे देखा और उसकी स्थिति को समझते हुए उसका आदर सम्मान किया। उसको खाने के लिए खाना दिया और रहने के लिए जगह भी दी। संत की इस व्यवहार से वह बहुत खुश हुआ और उसने सन्यासी का आशीर्वाद लिया। संत ने उसे एकादशी व्रत रखने की सलाह दी, जिससे उसकी आत्मा को शांति मिले वह अपने पापों से मुक्ति पा सके।

उसने संत की आज्ञा मानी और व्रत रखना शुरू किया। धीरे-धीरे वह सही रास्ते पर चलने लगा, इसके बाद जब संत ने अपना असली रूप प्रकट किया तो वह कोई और नहीं बल्कि लूंपक के पिता राजा महिष्मान ही थे। यह देखकर वह चौंक गया और अपने पिता के मार्गदर्शन में राज्य का कार्यभार संभाल लिया। अब वह हर साल पौष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत पूरी निष्ठा से करने लगा। उसकी जीवनशैली पूरी तरह से बदल चुकी थी।

Disclaimer- यहां दी गई सूचना सामान्य जानकारी के आधार पर बताई गई है। इनके सत्य और सटीक होने का दावा MP Breaking News नहीं करता।


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Bhawna Choubey

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