सिंगरौली।राघवेन्द्र सिंह गहरवार।
ऊर्जाधानी सिंगरौली के नाम से विख्यात सिंगरौली जिले में जहां औद्योगिक परियोजनाओं की भरमार है। वहीं स्थानीय युवा बेरोजगार नौकरी की तलाश में इधर-उधर भटकते नजर आ रहे हैं। नव रत्न कंपनी एनसीएल एनटीपीसी की बात छोड़ दी जाए तो भी आज की स्थिति में सिंगरौली औद्योगिक परियोजनाओं का गढ़ बना हुआ है जहां एस्सार,रिलायंस, जेपी, हिंडालको, एपी,महान कोल्ड एंड पावर लिमिटेड जैसी कंपनियां जिला मुख्यालय के आसपास अपनी परियोजनाएं डाली हुई है। स्थानीय वासियों को छोड़ दिया जाए फिर भी विस्थापितों के घर पर दो वक्त की रोटी के लाले पड़े हैं। एक तरफ कंपनियां पुनर्वास पश्चात अच्छे आर्थिक व सामाजिक स्थिति को मजबूत करने का दावा करती हैं वही एनटीपीसी एनसीएल हिंडाल्को रिलायंस जेपी के पुनर्वास कालोनियों में देखा जाए तो ग़रीब विस्थापितों के लिए न तो रहने का घर न तो खाने की रोटी।
प्रवेश तक की इजाज़त नहीं
स्थानीय शिक्षित बेरोज़गारी अपने डिग्री डिप्लोमा लिए कंपनी के आसपास भटक रहे हैं जिन्हें परियोजना परिसर के अंदर प्रवेश करने की भी इजाज़त नहीं है पूर्व में भाजपा की सरकार के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी सिंगरौली को सिंगापुर बनाने का वादा किया था उसके बाद भी सिंगरौली किसी लायक स्थिति में नहीं पहुंची वही वर्तमान में कांग्रेस सरकार में भी 70% रोज़गार देने का वादा फीका रह गया। वही वास्तविक में सिंगरौली कि जो दशा देखने को मिल रही है उससे आने वाले समय में स्थानीय जनप्रतिनिधियों को भारी नुकसान हो सकता है। जिससे इसका असर सरकार पर पड़ने वाला है।
ना सरकार ना प्रशासन ना जनप्रतिनिधि दे रहे है। आज सिंगरौली के स्थानीय बेरोज़गारी इस तरह भटक रहे हैं जैसे अब उनका कुछ सहारा ही ना रह गया हो क्योंकि राजनीतिक दलों के द्वारा बड़े-बड़े वादे कर वोट बैंक बनाने के लिए युवाओं को गुमराह कर अपने राजनीति चमका लेते हैं परंतु ना तो शासन प्रशासन ध्यान दे रहा है ना ही सरकार बेरोजगार युवाओं की ओर कोई बड़ी कदम उठा रही है।
स्थानीय मज़दूरों की संख्या 10 प्रतिशत से भी कम
औद्योगिक परियोजनाओं में स्थानीय युवकों को रोज़गार हेतु पहली प्राथमिकता दिए जाने की बात प्रदेश सरकार वर्तमान करती है जबकि परिजनों का अवलोकन किया जाए तो 25% परियोजनाओं में स्थानीय मज़दूर की संख्या 15% की भी नहीं है इन कंपनियों में बाहरी मज़दूरों की भरमार देखी जाती है।