ग्वालियर, अतुल सक्सेना। भारतीय शास्त्रीय संगीत के सर्वाधिक प्रतिष्ठापूर्ण महोत्सव “तानसेन समारोह” (Tansen Samaroh)की शुरूआत शनिवार की सुबह पारंपरिक ढंग से हुई। हजीरा स्थित तानसेन समाधि स्थल पर गंगा जमुनी तहजीब का मुजाहिरा पेश करते हुए शहनाई वादन, हरिकथा, मीलाद, चादरपोशी और कव्वाली का गायन हुआ। समारोह का औपचारिक शुभारंभ राष्ट्रीय तानसेन अलंकरण के साथ आज शाम चार बजे होगा। इस बार तानसेन अलंकरण प्रख्यात संतूर वादक पण्डित सतीश व्यास (Satish Vyas) को दिया जाएगा।
संगीत सम्राट तानसेन (Sangeet Samrat Tansen) की स्मृति में पिछले 95 वर्ष से ग्वालियर में तानसेन के आध्यात्मिक गुरु मोहम्मद गौस के मकबरे और तानसेन के समाधि स्थल आयोजित किये जा रहे “तानसेन समारोह” में हर सा ब्रम्हनाद के शीर्षस्थ साधक तानसेन गान मनीषी तानसेन को स्वरांजलि अर्पित करने आते हैं। समारोह की शुरूआत हर साल पारंपरिक ढंग से होती है। आज भी तानसेन समाधि स्थल पर परंपरागत ढंग से उस्ताद मजीद खाँ एवं साथियों ने राग “बैरागी” में शहनाई वादन किया। इसके बाद ढोलीबुआ महाराज नाथपंथी संत श्रीसच्चिदानंद नाथ ने संगीतमय आध्यात्मिक प्रवचन देते हुए ईश्वर और मनुष्य के रिश्तों को उजागर किया। उनके प्रवचन का सार था कि परहित से बढ़कर कोई धर्म नहीं। अल्लाह और ईश्वर, राम और रहीम, कृष्ण और करीम, खुदा और देव सब एक हैं। हर मनुष्य में ईश्वर विद्यमान है। हम सब ईश्वर की सन्तान है तथा ईश्वर के अंश भी हैं। ढोली बुआ महाराज ने राग ” शुद्ध सारंग” में भजन प्रस्तुत किया। भजन के बोल थे ” एक दिन आना एक दिन जाना, बीच में सुख दुख छुटमुट सपना” । उन्होंने प्रिय भजन “रघुपति राघव राजाराम पतित पावन सीताराम” का गायन भी किया।