कटनी, डेस्क रिपोर्ट। आज पूरे विश्व सहित देश भर में एक बार फिर से कोरोना संक्रमण (corona pandemic) ने अपने पाव फ़ैलाने शुरू कर दिए है। कोरोना की दूसरी लहर भयानक होती जा रही है। इसी बीच समाज का हर तबका किसी ना किसी परेशानी से जूझता नजर आ रहा है। जहां उनकी गतिविधियां उनके जरूरत पर किसी की नजर नहीं है। इस बीच अब सहारा समय की महिला पत्रकार वंदना तिवारी (vandana tiwari) ने समाज के प्रबुद्धजनों सहित स्वयंसेवी संस्था और प्रशासन से बड़ी अपील की है।
महिला पत्रकार वंदना तिवारी ने शहर के प्रबुद्धजनों, युवाओं, जागरुक नागरिक सहित मीडिया जगत के साथी और स्वयंसेवी संस्थाओं से अपील की है कि जिनके घरों में बेटे, भाई, पति या पिता देश की सेवा में सैकड़ों किलोमीटर दूर अपनी सेवाएं दे रहे हैं। उन सैनिकों के परिवार यहां अकेले हैं। ऐसे महामारी के वक्त में उनके बारे में विचार किया जाना आवश्यक है।
इतना ही नहीं वंदना तिवारी ने कहा कि यह अपील उनकी मदद के लिए है। जिन घरों के बेटे, भाई,पति या पिता देश की सेवा में अपने घरों से सैकड़ों किलोमीटर दूर अपनी सेवाएं दे रहे हैं। उन सैनिकों के परिवार यहाँ अकेले हैं। ऐसे वक़्त में जब कि कोरोना महामारी के चलते एक बार फिर जीवन थम सा गया है। दुकानों पर ताले लटके हुए हैं। आवागमन लगभग बंद सा ही है। वंदना तिवारी ने कहा कि हमारे शहरों में बहुत से परिवार ऐसे हैं। जहाँ पुरूष देश की सेना में अपनी सेवाएं देने परिवार से सैकड़ों किलोमीटर दूर हैं और यहाँ किसी के वृद्ध माता पिता तो किसी की पत्नी अपने छोटे छोटे बच्चों के साथ अकेले रह रहे हैं।
इन परिवारों पर कोई आर्थिक संकट तो नही है परंतु इस महामारी के समय इन पर सम्बल प्राप्त करने का बहुत गंभीर संकट है। इस महामारी में जहाँ लोग कोरोना का नाम सुनकर अपनों से दूर भाग रहे हैं। तब ऐसी कोई स्थिति बनने पर देशभक्त सैनिकों के इन परिजनों का क्या होगा यह विचारणीय है।
Read More: बढ़ते संक्रमण के बीच इंदौर की मदद के लिए आगे आए सोनू सूद
वंदना तिवारी ने कहा कि इनका कोई सदस्य बीमार पड़ जाए, घर में लाइट खराब हो जाए। पानी की आपूर्ति बंद हो जाए। घर का दरवाजा टूट जाए जैसी बहुत सी ऐसी बातें हैं। जो सुनने में छोटी लग सकती हैं परंतु रोजमर्रा की जिंदगी में हैं बहुत आवश्यक। किसी वस्तु की आवश्यकता पड़ने पर ये किसके मोहताज हों, क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में तो ठीक है इनकी मदद के लिए इनके पारिवारिक सदस्य होंगे। परंतु शहरी क्षेत्रों में ये परिवार नितांत अकेले पड़ जाते हैं। इनका स्वाभिमान इन्हें किसी को अपनी विपदा बतलाने नही देता है और अकेलापन इन्हें आपदा के भंवर में धकेलता जाता है।
मेरी शहर के प्रबुद्धजनों से युवाओं से जागरूक नागरिकों से एवं प्रशासन से अपील है कि देश की सीमाओं की रक्षा कर रहे सैनिकों के इन परिवारों विशेष रूप से ध्यान में ले कर इनकी मदद का एक अभियान चलाया जावे। ताकि सीमा पर डटा हुआ सैनिक भी एक गौरवपूर्ण आत्मसंतोष महसूस कर सके कि यदि “मैं यहाँ देश की सीमाओं की सुरक्षा की चिंता कर रहा हूँ तो मेरे शहर में मेरे बूढ़े मां बाप और मेरे परिवार की चिंता करने वाले भी हैं।”
वहीं उन्होंने समाज के प्रबुद्धजन से अपील की है कि ऐसे सैनिकों के परिवार के प्रति ध्यान दिया जाए और इन महामारी काल में उनके लिए आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध कराने की दिशा में सार्थक कदम उठाया जाए।