नई दिल्ली, डेस्क रिपोर्ट। यूजीसी (UGC) द्वारा जल्दी छात्रों को बड़ी राहत दी जा सकती है। दरअसल छात्रों प्रोफेशनल्स (Professional) के लिए यूजीसी जल्द अंशकालीन पीएचडी कोर्स (part time PhD Courses) की घोषणा कर सकता है। इसके लिए तैयारी शुरू कर दी गई है। माना जा रहा है कि कामकाजी पेशेवरों के लिए अंशकालीन पीएचडी पाठ्यक्रम शुरू किए जा सकते हैं। यदि इसकी अनुमति यूजीसी की तरफ दे दी जाती है तो यह प्रोफेशनल्स के लिए उच्च शिक्षा (Higher Education) में एक बेहतर विकल्प होगा। बता दें कि अभी देशभर के आईआईटी संस्थान (IIT institute) में अंशकालीन पीएचडी प्रोग्राम संचालित है।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) IIT द्वारा अपनाई जाने वाली प्रणाली के अनुरूप कामकाजी पेशेवरों के लिए अंशकालिक पीएचडी कार्यक्रमों की अनुमति देने की संभावना तलाश रहा है। यूजीसी के उपाध्यक्ष एम जगदीश कुमार ने कहा कि दुनिया भर के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों द्वारा अंशकालिक पीएचडी (part time PhD) कार्यक्रम भी पेश किए जाते हैं। अंशकालिक पीएचडी कार्यक्रमों में एक विश्वविद्यालय (Unniversity) के संकाय सदस्य एक पीएचडी छात्र की देखरेख करते हैं, जो पर्यवेक्षक के परामर्श से अपने विषय पर काम करता है लेकिन बड़े पैमाने पर स्वतंत्र रूप से थीसिस तैयार करेंगे।
ऐसे अंशकालिक पीएचडी कार्यक्रम दुनिया भर के कुछ बेहतरीन विश्वविद्यालयों में उपलब्ध हैं। हमारे भारतीय विश्वविद्यालयों में क्यों नहीं? यूजीसी ने मार्च में यूजीसी (पीएचडी डिग्री के पुरस्कार के लिए न्यूनतम मानक और प्रक्रिया) विनियम, 2022 के मसौदे को अधिसूचित किया था। अंशकालिक पीएचडी कार्यक्रमों के प्रावधान को उन नियमों में जगह मिलने की संभावना है, जिन्हें अंतिम रूप दिया जा रहा है।
उच्च शिक्षा नियामक के अधिकारियों के अनुसार, भारत में विश्वविद्यालय अब कामकाजी पेशेवरों को अंशकालिक डॉक्टरेट कार्यक्रम की पेशकश करने में सक्षम होंगे, बशर्ते वे पूर्णकालिक पाठ्यक्रम के कम से कम छह महीने में भाग लें। यह प्रावधान यूजीसी (पीएचडी डिग्री प्रदान करने के लिए न्यूनतम मानक और प्रक्रिया) विनियम, 2022 का एक हिस्सा होगा, जिसे जल्द ही शिक्षा मंत्रालय द्वारा अधिसूचित किया जाएगा।
नियम अंशकालिक पीएचडी कार्यक्रमों की अनुमति देते हैं, बशर्ते आवेदक पूर्णकालिक पीएचडी कार्यक्रमों के लिए पात्रता शर्तों को पूरा करें। ये बदलाव आगामी शैक्षणिक सत्र से प्रभावी होंगे। उनके पीएचडी कार्य का मूल्यांकन उसी तरह किया जाएगा जैसे पूर्णकालिक पीएचडी छात्रों के लिए किया जाता है। अंशकालिक पीएचडी के लिए आवेदक कामकाजी पेशेवर होंगे और इसलिए, वे पीएचडी फेलोशिप के लिए पात्र नहीं होंगे।
डॉक्टरेट उम्मीदवारों को पूर्णकालिक रूप से कम से कम छह महीने के कोर्स वर्क में भाग लेना होगा। पेशेवरों को नियोक्ताओं से अनापत्ति प्रमाण पत्र (NOC) भी जमा करना होगा। अंशकालिक पीएचडी के लिए आवेदकों को अपने संगठनों से यह कहते हुए एक एनओसी प्रदान करना होगा कि कर्मचारी को अंशकालिक आधार पर अध्ययन करने की अनुमति है।
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ऐसे छात्रों को अपने पहले या दूसरे सेमेस्टर के दौरान परिसर में शुरू करके पाठ्यक्रम कार्य आवश्यकताओं को पूरा करना होता है या यदि वे उसी शहर में रह रहे हैं जहां विश्वविद्यालय स्थित है, तो वे Lecture में भाग ले सकते हैं। ऐसे अंशकालिक पीएचडी कार्यक्रम उन पेशेवरों के लिए बहुत उपयोगी हैं जो पीएचडी करने के लिए लंबी छुट्टी नहीं ले सकते हैं। उन्होंने कहा कि पात्रता की शर्तें पूर्णकालिक और अंशकालिक दोनों उम्मीदवारों के लिए समान होने की संभावना है। हालांकि, डॉक्टरेट कार्यक्रम के लिए नामांकित होने के लिए अंशकालिक पीएचडी उम्मीदवारों को अपने संगठनों से एक एनओसी का उत्पादन करना होगा।
एनओसी को यह निर्दिष्ट करना होगा कि कर्मचारी के अनुसंधान के क्षेत्र में सुविधाएं कार्य के स्थान पर उपलब्ध हैं और यदि आवश्यक हो, तो पाठ्यक्रम के काम को पूरा करने के लिए कर्मचारी को ड्यूटी से मुक्त कर दिया जाएगा। दरअसल आयोग ने मार्च में डॉक्टरेट पाठ्यक्रमों से संबंधित नियमों में किए गए संशोधनों का एक मसौदा जारी किया था, जिसमें चार साल का कार्यक्रम करने वाले स्नातक और पीएचडी प्रवेश के लिए 7.5 के न्यूनतम सीजीपीए सहित कई बदलावों का प्रस्ताव था। आयोग पीएचडी थीसिस जमा करने के लिए पीयर-रिव्यू जर्नल में शोध पत्र प्रकाशित करने की अनिवार्य आवश्यकता को भी दूर कर रहा है।