नई दिल्ली, डेस्क रिपोर्ट। केंद्र सरकार (central government) ने सभी राज्य और केंद्र शासित प्रदेश को महत्वपूर्ण निर्देश दिया। जिसके तहत अब सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (information technology act) के निरस्त धारा 66ए के तहत मामला दर्ज नहीं किए जा सकेंगे। बता दें कि इस धारा के अंदर आपत्तिजनक संदेश पोस्ट करने वाले व्यक्ति को 3 साल तक की कैद और जुर्माना जारी किया जाता था।
केंद्र सरकार ने आज सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया कि वे अपने अधिकार क्षेत्र के सभी पुलिस थानों को सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (IT Act 2000) की निरस्त धारा 66 ए के तहत मामले दर्ज नहीं करने के लिए कहें। आईटी अधिनियम की धारा 66 ए के तहत आपत्तिजनक संदेश पोस्ट करने वाले व्यक्ति को तीन साल तक की कैद और जुर्माना भी हो सकता था।
गृह मंत्रालय (MHA) ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को 24 मार्च, 2015 को सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी आदेश के अनुपालन के लिए कानून प्रवर्तन एजेंसियों (law enforcement agencies) को संवेदनशील बनाने के लिए भी कहा है। केंद्र ने अनुरोध किया है कि यदि राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में आईटी अधिनियम, 2000 की धारा 66 ए के तहत कोई मामला दर्ज किया गया है, तो ऐसे मामलों को तुरंत वापस लिया जाना चाहिए।
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सुप्रीम कोर्ट ने श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ के मामले में 24.03.2015 को अपने फैसले में सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 66ए को निरस्त कर दिया था। इसने सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 66ए को आदेश की तिथि से शून्य कर दिया था। इसलिए 24.03.2015 स इस धारा के तहत कोई कार्रवाई नहीं की जा सकती थी।
इस महीने की शुरुआत में, शीर्ष अदालत ने कहा कि यह “अद्भुत” और “चौंकाने वाला” है कि लोगों पर अभी भी सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66ए के तहत मामला दर्ज किया जा रहा है। जिसे 2015 में शीर्ष अदालत के फैसले द्वारा रद्द कर दिया गया था। जस्टिस आरएफ नरीमन, केएम जोसेफ और बीआर गवई की पीठ ने एक एनजीओ, ‘पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज’ (पीयूसीएल) द्वारा दायर एक आवेदन पर केंद्र को नोटिस जारी किया था। जिस पर अब केंद्र सरकार ने संज्ञान लेते हुए सभी राज्य सरकारों को इस धारा के तहत केस ना दर्ज करने के निर्देश दिए हैं।