नई दिल्ली, डेस्क रिपोर्ट। देश में एक तरफ जहां सभी शासकीय अधिकारी-कर्मचारी (Government Employees) सेवानिवृत्ति आयु (Retirement age) बढ़ाने पर जोर दे रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ सरकार की तरफ से बड़ा बयान सामने आया है। सरकार ने स्पष्टीकरण देते हुए सेवानिवृत्ति आयु को लेकर महत्वपूर्ण जानकारी दी है। केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू (Union Law Minister Kiren Rijiju) ने राज्यसभा को सूचित करते हुए स्पष्ट किया है कि सुप्रीम कोर्ट जजों की सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाने का कोई प्रस्ताव नहीं है। सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश 65 वर्ष की आयु में सेवानिवृत्त होते हैं, जबकि 25 उच्च न्यायालयों के न्यायाधीश 62 वर्ष की आयु में सेवानिवृत्त होते हैं।
राज्यसभा में जबाव पेश करते हुए केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि.. नहीं साहब। उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाने का कोई प्रस्ताव नहीं है। दरअसल उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाकर 65 वर्ष करने के लिए संविधान (114वां संशोधन) विधेयक 2010 में पेश किया गया था। हालांकि इसे संसद में विचार के लिए नहीं लिया गया और 15वीं लोकसभा के भंग होने के साथ यह समाप्त हो चूका है।
भारत के मुख्य न्यायाधीश एन वी रमण 26 अगस्त को सेवानिवृत्त होंगे। इधर न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित न्यायमूर्ति रमना के बाद शीर्ष अदालत में सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश हैं और भारत के मुख्य न्यायाधीश बनने की कतार में हैं। अभी हाल ही में, भारत के महान्यायवादी ने न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाने की आवश्यकता पर जोर दिया है।
उन्होंने कहा कि न्यायाधीशों की उम्र बढ़ाई जानी चाहिए। जिससे देश में लंबित कई तरह के मामले की सुनवाई हो सके। साथ ही शासकीय खर्चों पर भी अंकुश लग सके। इतना ही नहीं जजों का कहना था कि वकीलों को 70-75 की उम्र तक दलील पेश करने में किसी भी तरह की दिक्कत नहीं है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट के जजों की सेवानिवृत्ति आयु को बढ़ाकर 70 वर्ष किया जाए जबकि हाई कोर्ट जज के रिटायरमेंट एज को 65 वर्ष तक बढ़ाया जाना चाहिए।
इससे एक तरफ जहां देश में लंबित कई केसों मैं मदद मिलेगी। इसके अलावा वरिष्ठ जजों के एक्सपीरियंस जुडिशल सिस्टम को मजबूत करने में कारगर साबित होंगे। हालांकि राज्यसभा में उत्तर पेश करते हुए कानून मंत्री किरण रिजूजी ने कहा कि इस तरह के किसी भी प्रस्ताव के लिए भारत के महान्यायवादी, एमआई के साथ व्यापक आधार पर परामर्श की आवश्यकता होगी। इसके लिए अभी किसी भी तरह का विचार नहीं किया गया है।