डेस्क रिपोर्ट। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या आज शनिवार को मनाई जा रही है। कहा जाता है, कि भादो अमावस्या का अपना कुछ खास महत्व है, इस दिन लोग कुश को अपने घर लेकर आते है और विधिवत उसका पूजन कर वर्षभर फिर मांगलिक कार्यों में उपयोग करते है। भादों अमावस्या को कुश उत्पाटन, कुशोत्पाटिनी अमावस्या (Kushotipatni Amavasya) जैसे नामों से भी जाना जाता हैं। वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाए तो कुश एक प्रकार का तृण है। इसका वैज्ञानिक नाम Eragrostis cynosuroides है। भारत में इसे पूजा में काम में लाया जाता हैं। कुश की पत्तियाँ नुकीली, तीखी और कड़ी होती है। धार्मिक दृष्टि से यह बहुत पवित्र समझा जाता है और इसकी चटाई पर राजा लोग भी सोते थे। वैदिक साहित्य में इसका अनेक स्थलों पर उल्लेख है
यह भी पढ़ें…. Rashifal 27 August 2022 : मिथुन-कर्क-कुंभ के लिए आज का दिन सकारात्मक, स्वास्थ्य, निवेश रिटर्न, यात्रा के योग, मेष-धनु-वृश्चिक रहे सावधान, जानें 12 राशियों का भविष्यफल
जानिए कुश का महत्व और कुश से जुड़े नियम।
शास्त्रों के अनुसार माना जाता है कि कुश की उत्पत्ति भगवान विष्णु के रोम से हुई है। कुश का मूल ब्रह्मा, मध्ये विष्णु और अग्रभाव शिव का जानना चाहिए। इसी कारण तुलसी की तरह कुश भी कभी बासी नहीं होता है। इसका इस्तेमाल बार-बार किया जा सकता है। शास्त्रों में कुश को तोड़ने के भी कुछ नियम बताए गए हैं जिसके अनुसार, कुश तोड़ने से पहले उनसे क्षमायाचना जरूर करें। इसके साथ ही प्रार्थना करते हुए कहे कि हे कुश आप मेरे निमंत्रण को स्वीकार करें और मेरे साथ मेरे घर चलें। फिर ‘ऊं ह्रूं फट् स्वाहा’ मंत्र का जाप करते हुए कुश को उखाड़ना लें और उसे अपने साथ घर ले आएं और एक साल तक घर पर रखें और मांगलिक नामों के साथ पितरों का श्राद्ध में इस्तेमाल कर सकते हैं।
यह भी पढ़ें…. 1 करोड़ कर्मचारियों-पेंशनरों का जल्द इंतजार होगा खत्म! खाते में आएगी 2 लाख तक राशि, जानें पेंडिंग DA Arrear पर अपडेट
पवित्र कुश
महाभारत में कुश से जुड़ा एक प्रसंग है, एक समय की बात है, जब गरुड़ देव स्वर्ग से अमृत कलश लेकर आ रहे थे, तब उन्होंने कुछ देर लिए अमृत कलश को जमीन पर कुश पर रख दिया, इस पर अमृत कलश रखने के कारण यह पवित्र माना जाता है।
कुश से पितर होते हैं तृप्त
महाभारत काल में सूर्य पुत्र कर्ण ने अपने पितरों का तर्पण करने के लिए कुश का उपयोग किया था, तब से माना जाता है कि जो भी व्यक्ति कुश पहनकर अपने पितरों का श्राद्ध करता है तो उसके पितर देव उससे तृप्त हो जते हैं।
कुश से जुड़े नियम
जिस कुश घास में पत्ती हो, आगे का भाग कटा न हो और वो हरा हो, वह कुश देवताओं और पितरों की पूजा के लिए श्रेष्ठ मानी जाती है, शास्त्रों के अनुसार, कुश को इस अमावस्या पर सूर्योदय के वक्त लाना चाहिए, यदि आप सूर्योदय के समय इसे न ला पाएं तो उस दिन के अभिजित या विजय मुहूर्त में घर पर लाएं।