नई दिल्ली, डेस्क रिपोर्ट। लगभग 3.5 करोड़ निवेशकों को उनका पैसा वापस दिलाने के इरादे से और बकाया पैसे की वसूली के लिए भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) ने शुक्रवार को सर्वोच्च न्यायालय में आवेदन दिया जिसमे इसके द्वारा सहारा समूह की संपत्ति की कुर्की और बिक्री की मांग की गई।
आवेदन में सेबी ने साफ तौर पर लिखा है कि सहारा समूह द्वारा बताए गए रिफंड का तरीका ना तो साफ है ना ही बताए गए सिद्धांत स्पष्ट हैं। इतना ही नहीं समूह प्रमुख द्वारा किए गए धनवापसी के दावों के साक्ष्य भी दावों की मजबूती के लिए काफी नहीं हैं, साक्ष्यों के समर्थन में प्रस्तुत किए गए दस्तावेजों में न केवल बहुत खामियां हैं बल्कि विरोधाभास और विसंगतियां भी हैं। महत्वपूर्ण दस्तावेजों को प्रदान करनी की विफलता भी इस आवेदन को प्रस्तुत करने की एक बड़ी वजह बताई जा रही है।
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सेबी ने उक्त आवेदन में अपने वकील प्रताप वेणुगोपाल के माध्यम से सर्वोच्च न्यायालय को बताया कि, समूह द्वारा बार बार बतलाया जा रहा है कि वे निवेशकों का धन कैश और चेक के माध्यम से लौटा रहे हैं, परंतु जब कैश बहिखातों एवं बैंक बहिखातों की छानबीन की गई तो कंपनी द्वारा किए यह दावे खोखले साबित होते नज़र आए। साथ ही जब निवेशकों द्वारा जमा किए एप्लीकेशन फॉर्म की जांच पड़ताल की गई तो उनमें से फॉर्म के अनुबंध, सहायक डॉक्यूमेंट और निवेश दस्तावेजों के नियम और शर्तों को हटा दिया गया है।
आवेदन में मार्केट रेगुलेटर सेबी द्वारा सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) को जानकारी दी गई जिसमें ग्रुप द्वारा प्रस्तुत किए गए दस्तावेजों के फर्जी होने की बात की गई है। सेबी ने कहा कि, जब निवेशकों के बॉन्ड दस्तावेजों को देखा गया तो मालूम हुआ कि उनके KYC दस्तावेज़ और एफिडेविट वास्तविक नहीं हैं। सेबी ने कहा कि यह दस्तावेज़ निवेशकों द्वारा बनाए ही नहीं गए है बल्कि सहारा की फर्मों द्वारा अपने दावों के समर्थन में फर्जी तरीके से एक साथ बनाए गए हैं। इसलिए इन दस्तावेजों पर भरोसा नहीं किया जा सकता है।
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सेबी के वकील वेणुगोपाल ने बताया कि बात करें दस्तावेजों को जमा करने की तो सहारा द्वारा इसका अननुपालन बार बार जानकर किया गया है, साथ ही बात करें समूह द्वारा प्रस्तुत किए गए दस्तावेजों के प्रमाणीकरण की तो वह पूरी तरह से गलत हैं और भरोसे लायक नहीं हैं। इसलिए ग्रुप की संपत्ति को कुर्क कर उसकी बिक्री करनी चाहिए और निवेशकों के धन की वसूली की जाना चाहिए।
आपको बता दें यह पूरा मामला 24000 करोड़ रुपए के समूह द्वारा सेबी के नियमों का पालन न करते हुए अनाधिकारिक रूप से बेचे गए बॉन्ड का है। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने सहारा को आदेश दिया था कि वे अनाधिकारिक रूप से लिए निवेशकों के पैसे को सेबी के पास वापस जमा कराएं। जिसमें सहारा का कहना था कि वे पहले ही ज्यादातर निवेशकों का पैसा वापस कर चुके हैं, पर जब सेबी द्वारा दस्तावेजों को खंगाला गया तो सहारा के यह दावे फर्जी निकले।
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सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए सेबी द्वारा सहारा समूह (Sahara Group) की दो फर्मों को अदालत के पहले के आदेशों के अनुपालन में 62,602.90 करोड़ रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिए हैं , यदि वे भुगतान में विफल रहते हैं तो सहारा प्रमुख सुब्रत रॉय को एक बार फिर हिरासत में ले लिया जाएगा।
आपको बता दें सुब्रत रॉय को अपनी मां के अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए पहली बार पैरोल दी गई थी, और समय-समय पर इसे बढ़ाया गया है। उन्हें 2012 के आदेशों का पालन नहीं करने के लिए 4 मार्च 2014 से न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया था, जिसके बाद रॉय और समूह के दो निदेशक दिल्ली की तिहाड़ जेल में दो साल तक बंद रहे।
खबर, फाइनेंशियल एक्सप्रेस के सौजन्य से।