भोपाल। देश भले 15 अगस्त 1947 को आजाद हो गया हो, लेकिन आजादी मिलने के 659 दिन बाद एक जून 1949 को भोपाल में तिरंगा झंडा फहराया गया| भोपाल रियासत के आजाद भारतवर्ष में विलय में लगभग दो साल का समय इसलिए लगा क्योंकि भोपाल के नवाब हमीदुल्ला खां भोपाल को स्वतंत्र रियासत के रूप में रखना चाहते थे या पाकिस्तान में शामिल कराना चाहते थे| लेकिन हुआ उसके उलट जब भोपाल की जनता ने विलीनीकरण आंदोलन छेड़ दिया| जिसके बाद 1 जून 1949 को भोपाल भारत का हिस्सा बना|
भोपाल विलीनीकरण दिवस या कहें भोपाल दिवस की आज 70वीं वर्षगांठ मनायी गयी | जिसमें भोपाल महापौर आलोक शर्मा ने शहीद गेट पर पहले शहीदों को अमर ज्योति पर श्रद्धांजलि दी और फिर तिरंगा फहराया| इस मौके पर शहीद गेट पर आंदोलन के वक्त की प्रदर्शनी भी लगायी गयी जिससे लोगों को भोपाल के इतिहास के बारे बताया जा सके|
वल्लभ भवन पर हुआ वनदेमातरम का गायन
प्रदेश में हर महीने की तरह इस बार भी महीने की पहली तारीख़ को भोपाल में वल्लभ भवन के पार्क में वंदे मातरम् और राष्ट्रगान का गायन हुआ| इस मौके पर सीएम कमलनाथ, गृहमंत्री बाला बच्चन, जनसंपर्क मंत्री पीसी शर्मा, सहित सभी आला अधिकारी और मंत्रालय का स्टाफ मौजूद था| पुलिस बैंड शौर्य स्मारक से पैदल मार्च करते हुए वल्लभ भवन पहुंचा और फिर पुलिस बैंड की धुन पर गायन हुआ|
आजादी के बाद भी गुलाम था यह शहर
15 अगस्त 1947 को अंग्रेजों की गुलामी से देश को आजादी मिली थी। लेकिन भोपाल रियासत ब्रिटिश हुकूमत से अलग होने बाद भारत में विलय नहीं हुई थी। यहां नवाब का ही शासन चलता था। जहाँ देश भर में स्वतंत्रता दिवस पर तिरंगा लहरा रहा था वहीं भोपाल में तिरंगा नहीं फहराया गया था| देश की सभी नवाबी रियासतों को एक करने के लिए देश के तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने नवाबों से बातचीत का रास्ता चुना था। जिसके बाद भोपाल के नवाब ने 1 जून 1949 को भोपाल रियासत का भारत में विलय करवाया था। इसी दिन भोपाल को आजादी मिली और 1 जून को भोपाल की आजादी के जश्न के रूप में मनाया जाता है| नवाब भोपाल रियासत को पाकिस्तान का हिस्सा बनाना चाहते थे। 1 जून 1949 को यह भारत का हिस्सा बना और यहां पहली बार तिरंगा लहराया गया।
जिन्ना और अंग्रेजों के करीबी थे नवाब
1947 यानी जब भारत को आजादी मिली उस समय भोपाल के नवाब हमीदुल्लाह थे, जो जिन्ना के बल्कि अंग्रेज़ों के भी काफी अच्छे दोस्त थे| जब भारत को आजाद करने का फैसला किया गया उस समय यह निर्णय भी लिया गया कि पूरे देश में से राजकीय शासन हटा लिया जाएगा, यानी भोपाल के नवाब भी बस नाम के नवाब रह जाते और भोपाल आजाद भारत का हिस्सा बन जाता। अंग्रेजों के खास नवाब हमीदुल्लाह इसके बिल्कुल भी पक्ष में नहीं थे, इसलिए वो भोपाल को आजाद ही रखना चाहते थे ताकि वो इस पर आसानी से शासन कर सकें।
नवाब ने ऐसे मानी हार
आजाद होने पर भी भोपाल में भारत का राष्ट्रीय ध्वज नहीं फहराया गया। अगले दो साल तक ऐसी ही स्थिति बनी रही। नवाब भारत की आजादी के या सरकार के किसी भी जश्न में कभी शामिल नहीं हुए। जिन्ना ने नवाब हमीदुल्लाह को पाकिस्तान में सेक्रेटरी जनरल का पद देकर वहां आने को कहा। 13 अगस्त को उन्होंने अपनी बेटी आबिदा को भोपाल रियासत का शासक बन जाने को कहा। आबिदा ने इससे इनकार कर दिया। मार्च 1948 में नवाब हमीदुल्लाह ने भोपाल के स्वतंत्र रहने की घोषणा कर दी। मई 1948 में नवाब ने भ��पाल सरकार का एक मंत्रिमंडल घोषित कर दिया। प्रधानमंत्री चतुर नारायण मालवीय बनाए गए। तब तक भोपाल रियासत में विलीनीकरण के लिए विद्रोह शुरू हो गया। फिर आजाद भारत के पहले गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने सख्त रवैया अपनाकर नवाब के पास संदेश भेजा कि भोपाल स्वतंत्र नहीं रह सकता. भोपाल को मध्यभारत का हिस्सा बनना ही होगा। 29 जनवरी 1949 को नवाब ने मंत्रिमंडल को बर्खास्त करते हुए सत्ता के सारे अधिकार अपने हाथ में ले लिए। इसके बाद भोपाल के अंदर ही विलीनीकरण के लिए विरोध-प्रदर्शन का दौर शुरू हो गया। तीन महीने जमकर आंदोलन हुए। जब नवाब हमीदुल्ला हर तरह से हार गया तो उसने 30 अप्रैल 1949 को विलीनीकरण के पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए। 1 जून 1949 को भोपाल रियासत, भारत का हिस्सा बन गया। केंद्र द्वारा नियुक्त चीफ कमिश्नर एनबी बैनर्जी ने कार्यभार संभाल लिया और नवाब को मिला 11 लाख रुपए सालाना का प्रिवीपर्स तय किया गया|