Bhopal Gas Tragedy : गैस रिसाव वाले दिन भोपाल में थे सीएम डॉ. मोहन यादव, अपना अनुभव साझा किया, दिवंगतों को दी श्रद्धांजलि

2-3 दिसंबर 1984 की दरमियानी रात जो भी भोपाल में मौजूद था और देखने सुनने की स्थिति में था..उसकी यादों से उस भयावह मंज़र को डिलीट कर पाना मुश्किल है। इस गैस त्रासदी ने 25,000 से अधिक लोगों की जान ले ली और 5 लाख से अधिक लोग प्रभावित हुए। ये त्रासदी मानव सुरक्षा की अनदेखी, कमजोर औद्योगिक सुरक्षा मानकों और दीर्घकालिक पर्यावरणीय क्षति का प्रतीक है, जो आज भी औद्योगिक दुनिया के लिए चेतावनी के रूप में खड़ी है।

Bhopal Gas Tragedy 40th Anniversary : आज वो भयावह दिन है..जिसकी दुखद स्मृतियां इतिहास के काले पन्नों में दर्ज हो चुकी है। भोपाल गैस त्रासदी को चालीस बरस बीत गए हैं..लेकिन इस दुर्घटना का दंश अब तक पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है। दशकों बाद कई पीड़ित आज भी मुआवज़े के लिए संघर्ष कर रहे हैं, कई अब भी अस्पतालों के चक्कर काट रहे हैं, कईयों ने अपनी पीढ़ियों में इस ज़हर को फैलते हुए देखा है और ऐसे हजारों लोग हैं जिनके ज़हन से उस काली रात की यादें जाती ही नहीं।

भोपाल गैस त्रासदी की चालीसवीं बरसी पर सीएम डॉ. मोहन यादव ने बताया कि उस रात वे भी भोपाल में ही थे। उन्होंने बताया कि वे उस दिन एमएलए रेस्ट हाउस में ठहरे थे और दूसरे दिन उन्होंने प्रभावित इलाकों का दौरा भी किया था। मुख्यमंत्री ने कहा कि ऐसी त्रासदी उन्होंने जीवन में कभी नहीं देखी। सीएम ने त्रासदी में दिवंगत हुए लोगों के प्रति श्रद्धांजलि व्यक्त की।

अब तक नहीं भूली है वो काली रात

2 और 3 दिसंबर 1984 की दरमियानी रात..मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड (UCIL) के प्लांट से मिथाइल आइसोसाइनेट (MIC) गैस का रिसाव हुआ। गैस रिसाव प्लांट के टैंक नंबर 610 में पानी घुसने के कारण हुआ, जिसने एक रासायनिक प्रतिक्रिया उत्पन्न की और लगभग 40 टन गैस वायुमंडल में फैल गई। कुछ ही घंटों में यह जहरीला बादल भोपाल की बड़ी आबादी के ऊपर मंडराने लगा। उसके बाद की भयावहता को सिर्फ इस शहर के लोग ही नहीं, पूरी दुनिया कभी नहीं भूल सकती है।

घटना के तुरंत बाद हजारों लोग अपनी जान गंवा बैठे। प्रारंभिक रिपोर्ट्स में मृतकों की संख्या 2,259 बताई गई, लेकिन बाद में यह आंकड़ा 25,000 से अधिक हो बढ़ गया। वहीं, लगभग 5 लाख लोग गंभीर रूप से प्रभावित हुए, जिनमें से कई लोग आज भी शारीरिक और मानसिक पीड़ा झेल रहे हैं। गर्भवती महिलाओं पर इसका लंबा प्रभाव देखा गया और उनके बच्चों तक यह ज़हर पहुंच गया, जिससे अगली पीढ़ी पर भी इसका असर पड़ा। साथ ही, प्रभावितों के लिए न्याय और मुआवजा सुनिश्चित करना भी एक बड़ी चुनौती साबित हुआ है, जो आज तक संघर्ष का विषय बना हुआ है और कई लोग अब भी मुआवज़े के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं।

सीएम मोहन यादव उस दिन मौजूद थे भोपाल में

गैस कांड वाले दिन मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव भी भोपाल में ही थे। उन्होंने खुद इस बारे में बताया है। सीएम ने कहा कि ‘गैस त्रासदी के दुखद प्रसंग को 40 वर्ष पूर्ण हो चुके हैं। मैं स्वयं भी उस दिन भोपाल में था। ऐसी त्रासदी कभी जीवन में देखी नहीं थी, जैसी भोपाल और दुनिया ने उस दिन देखी। दिवंगत हुई पुण्यात्माओं को गैस त्रासदी की बरसी पर अपनी विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं।’

भोपाल गैस त्रासदी को दुनिया की सबसे बड़ी औद्योगिक आपदा माना जाता है। यह मानव और पर्यावरणीय स्तर पर तबाही का प्रतीक बन गई। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और अन्य अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं ने मानवीय और पर्यावरणीय इतिहास की सबसे खराब औद्योगिक आपदाओं में सूचीबद्ध किया है। इसका प्रभाव और इससे जुड़ी विफलताएं आज भी वैश्विक औद्योगिक सुरक्षा मानकों पर चर्चा का केंद्र बनी हुई हैं​। यह त्रासदी हमें सिखाती है कि औद्योगिक गतिविधियों में सुरक्षा मानकों की अनदेखी कितनी विनाशकारी हो सकती है।इससे सीख हर मिलता है कि औद्योगिक क्षेत्र में प्रभावी आपातकालीन प्रतिक्रिया प्रणाली और स्थानीय समुदाय को जागरूक करने के प्रयास जरूरी है। यह घटना न सिर्फ भारत के लिए, बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक सबक है कि मानव जीवन और पर्यावरण को हमेशा प्राथमिकता दी जानी चाहिए।


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श्रुति कुशवाहा

श्रुति कुशवाहा

2001 में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर (M.J, Masters of Journalism)। 2001 से 2013 तक ईटीवी हैदराबाद, सहारा न्यूज दिल्ली-भोपाल, लाइव इंडिया मुंबई में कार्य अनुभव। साहित्य पठन-पाठन में विशेष रूचि।

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