भोपाल। मध्य़ प्रदेश की कमान 1984 बैच के आईपीएस वीके सिंह के हाथ सौंपी गई है। उन्होंने बुधवार को प्रदेश के नए डीजीपी का चार्ज लिया। उनको डीजीपी नियुक्त करने से पहले मख्यमंत्री कमलनाथ ने उन्हें मिलकर दो और आईपीएस अफसरों का इंटरव्यू लिया था।
मुख्यमंत्री नाथ ने वीके सिंह के अलावा डीजी जेल संजय चौधरी, पुलिस महानिदेशक (पुलिस रिफॉर्म) डॉक्टर मैथिलीशरण गुप्त से वन टू वन बात की थी। लेकिन सीएम ने वीके सिंह को इस पोस्ट के लिए चुना। सीएम ने कई बिंदुओं पर तीनों आईपीएस अफसरों से चर्चा की। इसमें पुलिस के कामकाज के तरीके, लॉ एंड अॉर्डर, पुलिस फोर्स का बेहतर उपयोग जैसे बिंदु शामिल थे। सीएम कमलनाथ चाहते थे वह इस पोस्ट के लिए सबसे बेस्ट अफसर को ही कमान सौंपे। ये तीनों अफसर 1984 बैच के हैं। पहले इस बात के कयास लगाए जा रहे है थे कि केंद्र से विवेक जोहरी को इस पोस्ट के लिए लाया जाए। लेकिन वह एमपी में वापसी के लिए खास उत्सुक नहीं हैं। इन अफसरों के इंटरव्यू के बाद इस बात की संभावना अधिक प्रबल हो गई थी कि वीके सिंह को अगला डीजीपी नियुक्त किजया जा सकता है।
यहां सेवाएं दे चुके हैं वीके सिंह
ईपीएस विजय कुमार सिंह ने अपनी सेवा अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक ग्वालियर के तौर पर शुरू की थी। शिवपुरी में वे पहले जिले के कप्तान बनाए गए और इसके बाद दमोह, बस्तर, बैतूल और उज्जैन एसपी रहे। वे एआईजी ईओडब्ल्यू व प्रशासन भी रहे। डीआईजी के रूप में उन्होंने आईटीबीपी और खुफिया एजेंसी रॉ में काम किया। वे आईजी जबलपुर रहे तथा एडीजी एसएएफ और योजना व प्रबंध रहे। डीजी के रूप में उन्होंने जेल व होमगार्ड के रूप में भी काम किया। जेल ब्रेक के कुछ दिन पहले ही वे डीजी जेल से डीजी होमगार्ड बनाए गए थे। बीती 16 अक्टूबर को पूर्व डीजीपी ऋषिकुमार शुक्ला के अवकाश पर रहने के दौरान सिंह ने ही प्रभारी डीजीपी रहते हुए विधानसभा चुनाव संपन्न करवाया था। 16 अक्टूबर से 30 नवंबर तक वे प्रभारी डीजीपी रहे थे।
गौरतलब है कि प्रदेश में कानून व्यवस्था पर हाल ही में राष्ट्रीय स्तर पर सवाल खड़े हुए हैं। विपक्षी पार्टी बीजेपी लगातार सरकार पर बीजेपी कार्यकर्ताओं की हत्या और हमलों के बाद दबाव बना रही थी। हाल ही में बीजेपी ने प्रदेश भर में मुख्यमंत्री का पुतला दहन भी किया था। ऐसे हालातों को देखते हुए सरकार ने नए डीजीपी को लाने का विचार किया। कांग्रेस जब सरकार में आई थी तब इस बात के कयास लगाए जा रहे थे कि सबसे पहले डीजीपी को हटाया जा सकता है। लेकिन मुख्यमंत्री कमलनाथ ने ऐसा नहीं किया। उन्होंने डीजीपी ऋषि कुमार शुक्ला को कानून व्यवस्था में सुधार करने के लिए एक महीने का समय दिया।