किसान आंदोलन : किसानों के जवाब से पहले दिग्विजय सिंह ने नरेंद्र सिंह तोमर से की ये मांग

Pooja Khodani
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भोपाल, डेस्क रिपोर्ट।  मोदी सरकार (Modi Government)) के कृषि बिलों (Farm Bill) के खिलाफ किसानों के आंदोलन (Farmers Protest) का आज 28वां दिन है।आज राष्ट्रीय किसान दिवस (National Farmers Day)  बुधवार को किसान (Farmers) केन्द्र सरकार द्वारा रविवार रात को भेजी गई आठ पेजों की चिट्ठी का जवाब देंगे, इसी बीच मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह (Digvijay Singh) ने केन्द्रीय कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर (Narendra Singh Tomar) को पत्र लिखा है।

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इसमें उन्होंने मांग की है कि सरकार तीनों किसान कानून वापस लें और नए कानून को संसद  (Parliament) की प्रवर समिति में रखकर किसान संगठनों से चर्चा कर संसद में कानून पारित करें जिससे कॉर्पोरेट घरानों की जगह किसानों के हितों का संरक्षण हो सके। मैंने देश के किसानों को संबोधित आपका आठ पेज का पत्र पढ़ा। कृषि मंत्री होने के नाते आपके द्वारा पत्र में व्यक्त भावनाओं को समझने का प्रयास किया।

दिग्विजय सिंह ने लिखा है कि  मैं पिछले 30 वर्षो से आपको जानता हूँ और आपकी निष्पक्षता और स्पष्टवादिता का प्रशंसक रहा हूँ। लेकिन लगता है कि इस पत्र का मज़मून आपके द्वारा तैयार नहीं किया गया है शायद किसी और की मंशा को आपके हस्ताक्षर से भेजने के लिए मजबूर किया गया है। आपने पत्र में स्वयं को किसान परिवार का बताया है, जबकि आपने माननीय केन्द्रीय चुनाव आयोग (Central Election Commission) को लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections) के समय 2014 में दिए गये शपथ पत्र में अपनी संपत्ति के ब्यौरे में यह स्वीकार किया है कि आपके पास कोई कृषि भूमि नहीं है। आपने व्यवसाय के काॅलम में किसान नहीं बल्कि समाजसेवी होने का हवाला दिया है।

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दिग्विजय सिंह ने लिखा है किआठ पेज के पत्र के अंत में आपने अन्न-दाताओं को कृषि सुधारों से संबंधित आश्वासन दिये है यदि संसद में चर्चा करके कृषि संबंधी तीनों कानूनों को संसद की प्रवर समिति को सौंप दिया होता तो इस आंदोलन की नौबत ही नहीं आती।  कांग्रेस पार्टी सहित सभी विपक्षी दलों द्वारा विधेयकों पर चर्चा कराने की मांग को आपके द्वारा निरस्त कर दिया गया था। जबकि संसदीय परम्पराओं में यदि एक भी सदस्य मत विभाजन की मांग करता है तो लोकसभा अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, राज्यसभा सभापति, उपसभापति को मत विभाजन की मांग स्वीकार करने की ’’बाध्यता’’ है। आपने उन सभी संसदीय परम्पराओं को ठुकराते हुए मनमाने तरीके से बिल पास कराये और भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में एक काला अध्याय जोड़ दिया।

दिग्विजय सिंह ने इन बिन्दुओं पर जताई आपत्ति

1. न्यूनतम समर्थन मूल्य को लेकर किसानों को भारत सरकार के लिखित आश्वासन पर भरोसा नहीं है। किसानो का कहना है कि आपने न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP0 देने के मुद्दे को कृषि कानून में शामिल क्यों नहीं किया। यदि सरकार की नीयत साफ होती तो इन आश्वासनों को कानून में शामिल करने पर कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए थी।

2. भारतीय लोकतंत्र की संघीय व्यवस्था में कृषि पर कर लगाने का राज्यों को अधिकार है। आपने राज्यों के इस अधिकार का अतिक्रमण कर भारतीय संविधान की मूल भावना को गहरा आघात पहुंचाया है।

3. आपने इन कानूनों में किसानों को किसी भी अदालत में जाने के मूल अधिकार से वंचित किया है। जबकि भारतीय संविधान में आम नागरिक को न्यायिक संरक्षण का अधिकार प्राप्त है। आपने इन कानूनों के माध्यम से अधिकारियों और कर्मचारियों को हर प्रकार के आपराधिक प्रकरणों से बचाने के लिए संरक्षण दे दिया है। अब कोई भी अधिकारी कर्मचारी मनमानी करता है तो भी उस पर न मुकदमा दर्ज हो सकेगा न कोई कार्यवाही हो सकेगी।

4. केन्द्र सरकार द्वारा राज्यों को कृषि समझौते के पंजीयन का अधिकार न देकर संविधान के विपरीत कार्य किया गया है। यदि सरकार वास्तव में किसानों को यह अधिकार देना चाहती तो कानून में उसका उल्लेख होना चाहिए था।

5. काॅन्ट्रेक्ट फार्मिंग के अंतर्गत यदि किसी भ्रष्ट राजस्व अधिकारी ने निरीक्षण के समय कृषि भूमि पर किसी कंपनी का कब्जा लिख दिया और यह बात किसान की जानकारी में नहीं आई तो वह किसान अपनी जमीन से हाथ धो सकता है। राज्यों में भू-राजस्व संहिता के तहत इस तरह के प्रावधान है इसीलिए देश के किसान काॅन्ट्रेक्ट फार्मिंग का विरोध कर रहे है।

6. आपने अत्यावश्यक वस्तु अधिनियम में कृषि उत्पादों की भण्डारण सीमा हटा दी है। जिससे कार्पोरेट कंपनिया बड़ी मात्रा में किसानों की फसलों का स्टाक करेंगी। परिणामस्वरूप जमाखोरी और मुनाफाखोरी बढे़गी और आम देशवासी मंहगाई का शिकार होेंगे। मूलतः आपने मनचाहे भण्डारण की छूट देते हुए बडे़ काॅर्पोरेट घरानों और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए देश के कृषि उत्पादो से जुडे लगभग 15 से 18 लाख करोड़ रूपये के बाजार का रास्ता खोल दिया है। यह किसानों के हित में कैसे हो सकता है ?

7. किसान कृषि उत्पाद के संबंध में रची गई परिभाषा के अनुसार तैयार तेल एवं दूध के विभिन्न प्रसंस्करित पदार्थ भी कृषि उत्पाद में शामिल किये गए हैं, इसका सीधा अर्थ है की मिल में निकला हुआ तेल, प्रोसेस्ड चीज, योगर्ट, क्रीम, मक्खन और दूध के समस्त उत्पाद कृषि उत्पाद माने जायेंगे। किसान या कृषि उत्पाद आयकर अधिनियम 1961 के तहत कर मुक्त हैं, लिहाज़ा ये सब उत्पाद कर मुक्त होंगे। ध्यान देने की बात है कि किसान न तेल मिल चलाता है, न ही गौ-पालक सहित किसान फैक्ट्री लगा कर दूध के विभिन्न रूपों को प्रोसेस कर लम्बे समय तक सुरक्षित रखने में सक्षम होता है। लिहाज़ा बडे फैक्ट्री मालिकों को उनके प्रसंस्करित उत्पाद पर आयकर की छूट मिल जायेगी।

8. आपकी किसान की परिभाषा के अनुसार कोई व्यक्ति जो स्वयं किसानी कर रहा है, या मजदूरों द्वारा करवा रहा है किसान है। इसके साथ ही Farmers Producers Organisation) भी किसान है। इसकी आगे परिभाषा दी है, एक किसानों का समूह जो वर्तमान कानून के अंतर्गत पंजीकृत हो, दूसरा ऐसा समूह जो सरकार द्वारा दी गयी योजना या कार्यक्रम के अंतर्गत प्रोत्साहित किया गया हो। बिलकुल संभव है कि सरकार किसी भी बड़े व्यापारी संगठन को प्रस्तावित योजना या कार्यक्रम के अंतर्गत किसान के तौर पंजीकृत कर सकती है। इसका सीधा अर्थ है बड़े व्यापारी, उद्योगपतियों को किसान के तौर पर मान्यता मिल जायेगी। ऊपर दी किसान उत्पाद की परिभाषा और इस नियम को जोड़ कर देखिये, व्यापारी का खेती पर कब्जा हो जायेगा।

9. आपके कानून के अनुसार किसान उत्पाद की राज्य में और राज्य के बाहर इलेक्ट्राॅनिक खरीद बिक्री की जा सकती है। कोई भी व्यक्ति जिसके पास केवल पैन कार्ड हो ये व्यापार कर सकता है। सायबर अपराध में दक्ष कोई भी व्यक्ति किसान के साथ बड़ा धोखा कर सकता है। चूॅकि कोई पंजीयन, सिक्यूरिटी मनी, पता, ठिकाना नहीं है, पकड़ पाना मुश्किल होगा।

10. इस पूरे कृषि कानून में न्यूनतम समर्थन मूल्य का कोई जिक्र नहीं है। इसके पूर्व में प्रावधान था कि सरकार हर कृषि उत्पाद का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एम.एस.पी.) घोषित करेगी और एम.एस.पी. पर ही कृषि उत्पाद खरीदेगी। मध्यप्रदेश कृषि उपज मंडी अधिनियम 1972 (Madhya Pradesh Agricultural Produce Market Act 1972) की धारा 36 (3) में प्रावधान है कि समर्थन मूल्य से कम कीमत पर फसल नहीं खरीदी जायेगी। इस नियम का पालन मध्यप्रदेश में नहीं हो रहा है।

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