भोपाल| सत्ता में आते ही कमलनथ सरकार की बिजली के मुद्दे पर किरकिरी हो रही है, और व्यवस्था सुधारने के लिए मुख्यमंत्री कई प्रयास भी कर रहे हैं| लेकिन अब सरकार का एक फैसला सुर्ख़ियों में है, जिस पर सवाल उठने शुरू हो गए हैं| राज्य सरकार ने ऊर्जा विभाग का जिम्मा एक बार फिर पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के चहेते आईएएस अफसर मोहम्मद सुलेमान को सौंपा है| अब तक सरकार खराब बिजली व्यवस्था के लिए घटिया उपकरणों को दोषी बताते हुए पूर्व सरकार पर आरोप लगा रही थी, जबकि पूर्व की व्यवस्था इन्ही अधिकारी के हाथ में रही, वहीं पावर परचेस एग्रीमेंट में भ्रष्टाचार को लेकर भी विपक्ष में रहते हुए कांग्रेस सवाल उठाती रही है, लेकिन अब एक बार फिर उसी अधिकारी को बिजली का जिम्मा सौंप दिया है, जिसको लेकर सवाल उठ रहे हैं| वरिष्ठ आरटीआई एक्टिविस्ट अजय दुबे ने सरकार के इस फैसले पर हमला बोला है|
अजय दुबे का कहना है कि मध्यप्रदेश कांग्रेस सरकार बनाने के पहले अरबो के बिजली घोटाले के लिए शिवराज सरकार में ऊर्जा के पूर्व प्रमुख सचिव मोह. सुलेमान को घेरती थी और अब कमलनाथ सरकार ने “मोह” में आकर मोह. सुल्तान को फिर ऊर्जा विभाग सौंप दिया। इस उच्च स्तर की दोगलेपन की राजनीति कर अपनी ही कब्र खोद रहे हैं। दुबे ने आरोप लगाया कि कांग्रेस ने तत्कालीन सरकार के खिलाफ चुनाव पूर्व जो आरोप पत्र जारी किया था, वो सत्ता में आने का मात्र एक जरिया था और जनता को मूर्ख बनाया गया, कांग्रेस सरकार भी अब उसी राह पर है, भ्रष्ट अधिकारियों से इनका साफ़ कहना है कि जो पहले आप उनके लिए करते थे अब हमारे लिए करो| सरकार अब इसी फॉर्मूले पर काम कर रही है|
बता दें कि जिन पावर परचेज एग्रीमेंन्टो में नियमों की जमकर धज्जियां उड़ाई गई। उस समय ऊर्जा विभाग के प्रमुख सचिव मोहम्मद सुलेमान ही थे। इस एग्रीमेंट के कारण मध्य प्रदेश के आम बिजली उपभोक्ता महंगी बिजली को भुगत रहे हैं | विपक्ष में रहते हुए इस मुद्दे पर कांग्रेस खूब हल्ला करती थी| जब कांग्रेस सत्ता में आई तब उम्मीद थी कि अधिकारियों के इस कारनामे को सरकार पहचानेगी और कुछ एक्शन लेगी, आखिर नई सरकार भी उसी राह पर चल पड़ी है|
क्या था पावर परचेस एग्रीमेंट
5 जनवरी 2011 को मध्य प्रदेश पावर ट्रेडिंग कंपनी और तीनों डिस्ट्रीब्यूशन कंपनियों ने निजी क्षेत्र की पांच कंपनियों के साथ पावर परचेज एग्रीमेंट किए। इन कंपनियों में एमवी पावर अनूपपुर, जे पी निगरी सिंगरौली, जेपी बीना पावर, झाबुआ पावर सिवनी, बीएल पावर शामिल थी। इन पावर परचेज एग्रीमेंन्टो में नियमों की जमकर धज्जियां उड़ाई गई। इनमें केंद्र सरकार की नेशनल टेरिफ पॉलिसी का पालन नहीं किया गया और अलग-अलग जगह पर एक ही अधिकारियों के हस्ताक्षर कर एक ही दिनांक को सारे एग्रीमेंट कर लिए गए। इसके पीछे तर्क यह दिया गया कि नेशनल टेरिफ पॉलिसी में 6 जनवरी 2006 में यह प्रतिबंध था कि निजी क्षेत्रों से बिजली खरीदने में अब बिड आवश्यक होगी जबकि सरकारी क्षेत्र की कंपनियों के लिए 5 साल की छूट दी गई थी। इन पावर परचेज एग्रीमेंटो में इसी छूट का लाभ उठाने की दलील दी गई जबकि यह दलील इन कंपनियों के लिए लागू नहीं थी। नियमो को धता बताकर इसकी विद्युत नियामक आयोग से भी अनुमति ले ली गई। अब हालात यह है कि 25 साल तक इन एग्रीमेंटो के तहत इन कंपनियों से बिजली ली जाए या न ली जाए सरकार को राशि अदा करनी होगी। जिस समय यह पावर परचेज एग्रीमेंट किए गए विद्युत नियामक आयोग के अध्यक्ष राकेश साहनी ऊर्जा विभाग के प्रमुख सचिव मोहम्मद सुलेमान और मध्य प्रदेश सरकार के ऊर्जा मंत्री राजेंद्र शुक्ला थे।
बिजली खरीद में 14000 करोड़ का घोटाला!
अलग अलग कारणों से जब आज प्रदेश 1 लाख 85 हजार करोड़ के कर्ज में है, इसमें एक कड़ी बिजली खरीद में 14000 करोड़ के घोटाले की भी शामिल है| सरप्लस बिजली होने के बाद भी प्रदेश में सबसे महंगी बिजली है| अपने बिजली प्लांट से बिजली न लेकर निजी कंपनियों से महंगी बिजली खरीदकर प्रदेश के लोगों को लूटा गया| जबकि केंद्र सरकार ने नियम बनाया है, जो कानून कहता है कि जब भी आप निजी कंपनी से समझौते करते हैं तो कॉम्पिटिटिव बिडिंग करना होती है, लेकिन यहां ऐसा न करते हुए डायरेक्ट समझौते किये गए| केंद्र सरकार ने सितंबर 2006 में ये नियम बना दिया था कि बिना बिड के अर्थात बिना टेंडर के कोई भी राज्य सरकार बिजली खरीदी के लिए पावर परचेज एग्रीमेंट नहीं कर सकता, इसके बावजूद अधिकारियों ने मिलीभगत कर यह कारनामा कर दिया|