पूर्व विधानसभा अध्यक्ष एनपी प्रजापति का विवादित बयान- पुलिस वाले अपने बाप के भी नहीं होते

Pooja Khodani
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भोपाल, डेस्क रिपोर्ट। मध्यप्रदेश (MP) में जैसे जैसे उपचुनावों (By-election) के मतदान की तारीख नजदीक आती जा रही है, वैसे वैसे विवादित बयानों (Disputed statement) की भी झड़ी लग रही है। नेता मर्यादा ताक पर रख बयान दे रहे है जो सियासी गलियारों में चर्चा का विषय बन रहे है। हाल ही में भांडेर से कांग्रेस प्रत्याशी फूल सिंह बरैया ने जाति विशेष को लेकर विवादित बयान दिया था, जिसका वीडियो (Video) भी जमकर वायरल (Viral) हुआ था, शिकायत चुनाव आयोग तक भी पहुंची थी। अब पूर्व विधानसभा अध्यक्ष  (Former assembly speaker) और वरिष्ठ कांग्रेस विधायक (Congress MLA) एनपी प्रजापति (NP Prajapati) ने विवादित बयान देकर नई बहस को हवा दे दी है। प्रजापति ने पुलिसकर्मियों को लेकर बयान दिया है। प्रजापति का कहना है कि पुलिस वालों (Policeman) की नैतिकता ही खत्म हो गई है क्योकि पुलिस वाले खुद ही यह कहते हैं कि पुलिस वाले अपने बाप के भी नहीं होते।

दरअसल, पूर्व विधानसभा अध्यक्ष एनपी प्रजापति ने शनिवार को राजधानी भोपाल (Rajdhani Bhopal) प्रदेश कांग्रेस कार्यालय में पत्रकार वार्ता कर प्रदेश सरकार पर सवाल खड़े किए हैं। एनपी प्रजापति का आरोप है कि प्रदेश में पर्याप्त संसाधन होने के बाद भी लगातार दुष्कर्म की घटनाएं आम हो रही है और पुलिस महकमा सुस्त नज़र आ रहा है।उन्होंने कहा कि सरकार ने करोड़ों रुपए खर्च कर डायल 100 ली हैं तो क्या वह गाड़ियां बंद हो गई है या सिर्फ वसूली ही कर रही हैं।  भारतीय जनता पार्टी पर हमलावर होते हुए प्रजापति ने कहा की लगातार स्थानांतरण होने से कर्मचारियों अधिकारियों के हौसले बुलंद हो रहे हैं कि हमारी पीठ पर सरकार का हाथ है और इसका खामियाजा बच्चियां, बेटियां, परिवार मां-बाप, थानों के चक्कर काट काट कर भोग रहे हैं।

पुलिस पर गंभीर आरोप लगाते हुए प्रजापति ने कहा कि पुलिस वालों की नैतिकता ही खत्म हो गई है क्योकि पुलिस वाले खुद ही यह कहते हैं कि पुलिस वाले अपने बाप के भी नहीं होते। 15 दिन में जितने भी दुराचार हुए हैं वह एक व्यक्ति द्वारा नहीं किए गए बल्कि सामूहिक हुए हैं। अब प्रश्न यह उठता है कि कारण क्या है ? जब राजनीतिक हस्तक्षेप अधिकारी कर्मचारियों की पदस्थापना, विशेषकर पुलिस महकमे में राजनीति ज्यादा हो जाती है ओर अधिकारियों को लगने लगता है कि उन्हें विशेष आशीर्वाद प्राप्त है तो वह अपने कर्तव्य निष्ठा का पालन करना भूल जाते हैं और नेताओं के पीछे घूमने लगते हैं…. इसी कारण से ऐसी गैंगरेप जैसी दुर्घटनाएं दुराचार होना चालू हो जाते हैं।

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खबर वह होती है जिसे कोई दबाना चाहता है। बाकी सब विज्ञापन है। मकसद तय करना दम की बात है। मायने यह रखता है कि हम क्या छापते हैं और क्या नहीं छापते। "कलम भी हूँ और कलमकार भी हूँ। खबरों के छपने का आधार भी हूँ।। मैं इस व्यवस्था की भागीदार भी हूँ। इसे बदलने की एक तलबगार भी हूँ।। दिवानी ही नहीं हूँ, दिमागदार भी हूँ। झूठे पर प्रहार, सच्चे की यार भी हूं।।" (पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर)

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