E-tender Scam: सबसे बड़ा खुलासा, 2006 से चल रहा था घोटाला

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भोपाल| मध्यप्रदेश के कई विभागों में टेंडर व्यवस्था में भ्रष्टाचार रोकने के लिए ई-टेंडर व्यवस्था लागू कर मध्यप्रदेश ई-प्रोक्योरमेंट पोर्टल बनवाया गया था। इसके माध्यम से विभिन्न विभागों के कार्यों के लिए ई-टेंडर व्यवस्था लागू की गई थी। लेकिन भ्रष्टाचारियों ने इसमें भी कलाकारी कर करोड़ों का घोटाला कर डाला| इसे व्यापमं से भी बड़ा घोटाला बताया जा रहा है| घोटाले के खुलासे के बाद ईओडब्लू ने साथ कंनियों सहित 5 विभागों के अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाई है। ईओडब्लू के अधिकारी केएल तिवारी के मुताबिक, यह पूरा घोटाला 900 करोड़ रुपए का है, जिसे जनवरी 2018 से मार्च 2018 के बीच अंजाम दिया गया था। अब एक और बड़ा खुलासा हुआ है कि ई-टेंडर में गड़बड़ी का सिलसिला 2006 से चल रहा है| एमपी ब्रेकिंग न्यूज़ के पास इसके प्रमाण उपलब्ध है| 

2006 से ही ई-टेंडर में छेड़छाड़ कर चहेती कंपनियों को टेंडर दिलाने की शिकायत सामने आई, लेकिन 2018 में  ई-टेंडरिंग में बड़े पैमाने पर घोटाले का खुलासा लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी (पीएचई) में हुआ था। यहां पाया गया कि ई-प्रोक्योंरमेंट पोर्टल में टेम्परिंग कर करोड़ों रुपए मूल्य के 3 टेंडरों के रेट बदल दिए गए थे। यानी ई-पोर्टल में टेंपरिंग से दरें संशोधित कर टेंडर प्रक्रिया में बाहर होने वाली कंपनियों को टेंडर दिलवा दिया गया। इसकी भनक लगते ही तीनों टेंडर निरस्त कर दिए। इस घोटाले में विज्ञान व प्रौद्योगिकी विभाग (MPSEDC) के प्रमुख सचिव मनीष रस्तोगी ने अहम भूमिका निभाई। 1994 बैच के आईएएस अधिकारी रस्तोगी ने विभागीय जांच की और राजगढ़ और सतना जिलों की ग्रामीण जल आपूर्ति योजनाओं के टेंडर रद्द कर दिए। 


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