भोपाल, हरप्रीत कौर रीन। बदहाल आर्थिक स्थिति से गुजर रही मध्य प्रदेश की सरकार खर्च बचाने के लिए रोज नए नए उपायों पर विचार कर रही है। इसी के तहत सरकार की प्रस्तावित योजना का कर्मचारी संगठन ने विरोध किया है और सरकार को सुझाव दिया है कि किस तरह से सरकारी खर्च बचाया जा सकता है।
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हर साल कर्मचारी-अधिकारियों के वेतन भत्तों सहित स्थापना पर 60000 करोड़ रूपये का भारी भरकम बोझ संभालने वाली प्रदेश सरकार की आर्थिक स्थिति पतली है। हालत यह है कि खुद मुख्यमंत्री कह चुके हैं कि खजाना खाली है। ऐसे में न केवल सामाजिक सरोकार की योजनाएं प्रभावित हो रही है बल्कि नए प्रस्तावित विकास कार्यों पर भी विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। इससे बचने के लिए अब सरकार ने फरलो योजना लागू करने पर विचार किया है। इस योजना के तहत एक कर्मचारी अधिकारी अधिकतम 5 साल का अवकाश ले सकेंगे और इस दौरान भी अपना कोई भी निजी कार्य कर सकते हैं। इस संपूर्ण काल में उनको आधा वेतन भी सरकार देगी। ऐसी ही एक योजना 2002 में दिग्विजय सरकार ने मध्य प्रदेश सिविल सेवाएं (फरलो) योजना शुरू की थी। करीब 4000 कर्मचारियों ने इसका लाभ भी उठाया था। लेकिन 2007 में बीजेपी ने इस योजना को बंद कर दिया। 2002 में इस योजना के दायरे से स्वास्थ्य, चिकित्सा शिक्षा, तकनीकी शिक्षा, स्कूल शिक्षा, तकनीक से जुड़े कर्मचारी और पुलिस कर्मचारी बाहर थे।
कर्मचारी संगठनों का मानना है कि सरकार को खर्च बचाने के लिए इसके बजाय वैकल्पिक विचार अपनाने चाहिए। इसमें 5 दिन सप्ताह कार्य की योजना भी शामिल है। अभी वर्तमान में दूसरे और तीसरे शनिवार को अवकाश रहता ही है और यदि इसे माह में हर शनिवार लागू कर दिया जाए तो लगभग साढ़े तीन सौ करोड़ रुपए बचाए जा सकते हैं। प्रदेश कर्मचारी संगठन के सचिव उमाशंकर तिवारी का कहना है कि इससे न केवल सरकार का खर्च बचेगा बल्कि पर्यावरण पर पड़ने वाला विपरीत प्रभाव भी कम होगा। उन्होंने फरलो योजना को किसी भी रूप में लाभदायक ना होने की बात कहते हुए इसका पुरजोर विरोध भी किया है।