क्या जीत की गारंटी है ‘कर्जमाफी’, जब भी हुई घोषणा हुआ उलटफेर

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भोपाल|  मध्य प्रदेश में कांग्रेस ने 15 बाद सत्ता में वापसी की है| सोमवार को विधायक दल के नेता कमलनाथ मुख्यमंत्री की शपथ लेंगे| इसके बाद कमलनाथ अपना मंत्रिमंडल गठित करेंगे| छह महीने पहले प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी सँभालने वाले कमलनाथ आखिरकार कांग्रेस का  वनवास ख़त्म करने में सफल रहे| लेकिन यह राह आसान नहीं थी, देश भर में सबसे तेजी से मजबूत हुई भाजपा के मुकाबले कांग्रेस कमजोर नजर आ रही थी, और लगातार तीन चुनाव में हार के बाद काफी बिखराव की स्तिथि थी, लेकिन इन सबके बाद भी अगर कांग्रेस सरकार बनाने जा रही है तो निश्चित ही यह सभी नेताओं की म्हणत के कारण हुआ है| वहीं कांग्रेस को सत्ता तक पहुँचाने में वचन पत्र की अहम् भूमिका रही, जिसमे सबसे बड़ी घोषणा कर्जमाफी की थी| राहुल गाँधी की इस घोषणा के बाद से ही प्रदेश में कांग्रेस का माहौल तैयार हो गया था, और जीत के लिए कांग्रेस को कर्जमाफी के रूप में संजीवनी मिली| अब यह बात उठने लगी है कि क्या कर्जमाफी की घोषणा जीत की गारंटी है| यह चर्चा इसलिए भी हो रही है क्यूंकि कुछ ही महीनों बाद देश में लोकसभा के चुनाव हैं| 

दरअसल, मध्य प्रदेश के मंदसौर में किसानों पर हुई गोलीबारी की घटना की पहली बरसी पर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने प्रदेश के किसानों को साधने के लिए बड़ी घोसना की थी| उन्होंने कहा था कि जिस दिन मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार आई, 10 दिन के अंदर किसानों का कर्ज माफ कर दिया जाएगा। अगर दस दिन में कर्जा माफ़ नहीं हुआ तो 11 वे दिन मुख्यमंत्री बदल दिया जाएगा| राहुल गाँधी के आत्मविश्वास से भरी इस घोषणा ने काम कर दिया| प्रदेश में इसकी सबसे ज्यादा चर्चा रही और अंतिम समय तक भाजपा इस घोषणा की काट नहीं ढून्ढ पाई| क्यूंकि भाजपा कर्जमाफी के पक्ष में शुरू से ही नहीं रही| किसान आंदोलन के बाद एक पल को लगा था भाजपा कर्जमाफी की घोषणा करेगी, लेकिन तब भवान्तर का जन्म हुआ और किसानों का गुस्सा शांत होने की जगह और बढ़ गया| इस योजना से जहां सरकारी खजाना खाली तो हो गया लेकिन सरकार को इसका क्रेडिट नहीं मिल पाया क्यूंकि योजना में कई खामिया सामने आई जिसको लेकर किसान परेशान हुए| वहीं कांग्रेस ने चुनाव में कर्जमाफी की घोषणा को बढ़ चढ़कर इस्तेमाल किया और किसानों ने भी कर्ज लौटना बंद कर दिया और आखिरकार कांग्रेस ग्रामीण क्षेत्रों में अच्छी सीटें लेकर बहुमत के करीब पहुँच गई| अब कर्जमाफी को लेकर अन्य राज्यों में भी चर्चा शुरू हो गई है| 

तीन राज्यों में कांग्रेस सफल, लोकसभा में भी बनेगा मुद्दा ?

राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने किसानों का मुद्दा भुनाया और सफलता मिली| छत्तीसगढ़ में जहां कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत मिला है, वहीं मध्य प्रदेश और राजस्थान में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है| पिछले करीब दो साल के आंकड़ें देखें तो जब-जब जिस भी पार्टी ने किसानों के कर्ज माफी का वादा किया है, उसने चुनाव में बाजी मारी है| ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या किसानों के कर्ज माफी का वादा पार्टियों को जीत का गारंटी बन गया है| अगर ऐसा है तो 2019 के लोकसभा चुनाव में भी किसानों का ही मुद्दा सबसे बड़ा मुद्दा रहने वाला है| 

कर्जमाफी ने इन राज्यों में पलटे परिणाम 

साल 2017 में उत्तर प्रदेश चुनाव के दौरान भारतीय जनता पार्टी ने किसानों के कर्ज माफी का वादा किया था. इस चुनाव में भाजपा ने 400 में से 325 सीटों पर जीत हासिल की थी. सीएम योगी ने सरकार बनने के बाद 36 हजार करोड़ रुपए का कर्ज माफ करने का ऐलान किया था| वहीं इसके साथ हुए पंजाब विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने किसानों से कर्ज माफी का वादा किया था. कांग्रेस को 117 सीटों में 77 सीटें मिली थीं. सरकार बनने के बाद कैप्टन अमरिंदर सिंह सरकार ने 10 हजार करोड़ रुपए का कर्ज माफी का एलान भी किया था|  साल 2018 में हुए कर्नाटक विधानसभा चुनाव के दौरान जेडीएस ने कर्ज माफी का वादा किया था| इसके बाद एचडी कुमारस्वामी ने कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई. इसके साथ हुए गुजरात विधानसभा चुनाव में भाजपा ने किसानों से वादा किया था कि अगर वह सत्ता में आती है तो उनके कर्ज का ब्याज सरकार चुकाएगी|


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