छिंदवाड़ा. डेस्क रिपोर्ट
मध्य प्रदेश (MadhyPradesh) के छिंदवाड़ा (Chindwada) जिला मुख्यालय से लगभग 90 किलोमीटर दूर पांढुर्ना में हर साल आयोजित होने वाला विश्वप्रसिद्ध गोलामार मेला (Gotmaar Mela) इस बार स्थगित कर दिया गया है। कोरोना के चलते इस बार मेला सांकेतिक रूप से मनाया जाएगा।यह फैसला कलेक्टर ने स्थानीय नागरिकों के साथ बैठक कर लिया है। खबर है कि लोग ना पहुंचे इसके लिए प्रशासन 18 और 19 अगस्त को लॉकडाउन भी लगा सकता है।
दरअसल, कोरोना संकट के चलते आगामी बुधवार 19 अगस्त को होने वाले गोटमार मेले को स्थगित कर दिया गया है। कलेक्टर सौरव कुमार सुमन की अध्यक्षता में पांढुर्णा में नागरिको के साथ आयोजित हुई बैठक में प्रशासन की इस चिंता से सभी ने सहमति दर्शायी की कि यदि गोटमार मेला का आयोजन किया जाता है और उसमें कोरोना से संक्रमित एक भी व्यक्ति जांच के दौरान मिल गया तो पूरे क्षेत्र को कंटेनमेंट घोषित करना पड़ेगा व हर मेला खिलाडी को आइसोलेशन में रखना पड़ेगा।इसके चलते मेले के दौरान लगने वाले बाजार और अन्य सभी गतिविधियां स्थगित रहेगी। गोटमार मेले के आयोजन में सावरगांव स्थित कावले के मकान में झंडे का पूजन होगा और पांच लोग आपसी सहमति से इस झंडे को मंदिर में लाकर चढ़ा देंगे। यहां सीमित लोगों की उपस्थिति में पूजन और आरती के साथ गोटमार मेले का समापन हो जाएगा। फिलहाल इसके लिए सुबह दस बजे का समय तय किया गया है। लोगों को यहां आने से रोकने के लिए 18 और 19 अगस्त को लॉकडाउन लगाया जा सकता है।
300 साल पुरानी है यह परंपरा
गोटगार खेल की पंरपरा 300 वर्ष पुरानी मानी जाती है। इस दिन लोग एक दूसरे पर पत्थर बरसाते हैं, जिसके कारण इसे ‘गोटमार’ कहा जाता है।गोटमार मेले की शुरुआत 17वीं सदी से मानी जाती है। महाराष्ट्र की सीमा से लगे पांर्ढुना हर वर्ष भादो मास के कृष्ण पक्ष में अमावस्या पोला त्योहार के दूसरे दिन पांर्ढुना और सावरगांव के बीच बहने वाली जाम नदी में वृक्ष की स्थापना कर पूजा अर्चना की जाती है। नदी के दोनों ओर लोग एकत्र होते हैं और सूर्योदय से सूर्यास्त तक पत्थर मारकर एक-दूसरे को लहूलुहान कर देते हैं। इसमें अबतक कई लोगों की मौत भी हो चुकी है, लेकिन इस कोरोना को देखते हुए इस मेले को स्थगित कर दिया गया है।
यहां से हुई थी इस मेले की शुरुआत
कहा जाता है कि सालों पहले सावरगांव की एक आदिवासी लड़की ने पांढुरना के एक लड़के से चोरी छिपे प्रेम विवाह कर लिया था। इसके बाद जब लड़का लड़की को लेकर नदी से जा रहा था तब सावरगांव के लोगों को पता चला और उन्होंने लड़के व उसके साथियों पर पत्थरों से हमला शुरू किया। जानकारी मिलने पर पहुंचे पांढुरना पक्ष के लोगों ने भी जवाब में पथराव शुरू कर दी। पांढुरना पक्ष एवं सावरगांव पक्ष के बीच इस पत्थरों की बौछारों से इन दोनों प्रेमियों की मृत्यु जाम नदी के बीच ही हो गई। जिसके बाद से इस मेले का आयोजन होता है।इतना ही नही दोनों प्रेमियों की मृत्यु के बाद दोनों पक्षों के लोगों को अपनी शर्मिंदगी का एहसास हुआ। दोनों प्रेमियों के शवों को उठाकर किले पर मां चंडिका के दरबार में ले जाकर रखा और पूजा-अर्चना करने के बाद दोनों का अंतिम संस्कार कर दिया गया। इस घटना की याद में मां चंडिका की पूजा-अर्चना कर गोटमार मेले का आयोजन किया जाता है।