भोपाल, डेस्क रिपोर्ट कई दशक के इंतजार के बाद अंततः मध्यप्रदेश (mp) में पुलिस कमिश्नर प्रणाली (police commissioner system ) अमल में आ गई है। इंदौर में 2003 बैच के आईपीएस अधिकारी (IPS Officers) हरिनारायण चारी मिश्रा और भोपाल में 1997 बैच के IPS अधिकारी मकरंद देऊस्कर को पुलिस कमिश्नर बनाए गए हैं। दोनों ही अधिकारियों की जनता और प्रशासन (Administration) में बेदाग छवि है। प्रदेश उन्हें आशा भरी निगाहों से देख रहा है। प्रदेश के इन दोनों महत्वपूर्ण शहरों में कमिश्नर प्रणाली की सफलता प्रदेश में भविष्य में कमिश्नर प्रणाली के विस्तार और लाभ की एक कसौटी भी साबित होगी।
पुलिस सेवा में अपने लंबे अनुभव के आधार पर मैं यह जानता हूं कि ऐसे बहुत से कानून व्यवस्था के मामले आते हैं, जब जनहित में बहुत तेजी से फैसला लेने की जरूरत पड़ती है। तेजी से फैसला न ले पाने की स्थिति में कई बार वैसी घटनाएं घट जाती हैं जो ना घटें तो अच्छा हो। ऐसे में पुलिस कमिश्नर के पास अतिरिक्त अधिकार आ जाएंगे जो अब तक पुलिस कप्तान या डीआईजी के पास नहीं हुआ करते थे।
प्रदेश की साख महिला अत्याचारों को लेकर बहुत अच्छी नहीं रही है और यहां कि हर सरकार इस बात का प्रयास करती रही है कि महिला अत्याचारों में कमी लाई जाए। महिला अत्याचार के बहुत से मामले बड़े शहरों से ही आते हैं। ऐसे में पुलिस कमिश्नर प्रणाली यदि महिला अत्याचार को कम करने में सफल होती है तो यह इसकी बहुत बड़ी कामयाबी होगी।
दिल्ली, मुंबई और अहमदाबाद जैसे देश के बड़े शहर पहले से ही पुलिस कमिश्नर प्रणाली के तहत काम कर रहे हैं। शहरों की पुलिस कमिश्नर प्रणाली का अनुभव भी मध्यप्रदेश के दोनों प्रमुख शहरों के लिए महत्वपूर्ण नजीर की तरह काम करेगा।
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इंदौर शहर मध्य प्रदेश का सबसे बड़ा शहर है और सबसे प्रमुख वाणिज्यिक केंद्र भी है। यहां के व्यस्त बाजार, चौड़ी सड़कें और खुशमिजाज लोग निश्चित तौर पर नई प्रणाली को अपना पूरा सहयोग देंगे। भोपाल शहर का एक हिस्सा तो बहुत पुराना है, जिसे हम सिटी कहते हैं। इसके अलावा दूसरा बड़ा हिस्सा मंत्रियों, विधायकों, प्रशासनिक अधिकारियों और सरकारी कर्मचारियों से मिलकर बना है। यहां पर भी शांति व्यवस्था एक बहुत बड़ा मुद्दा रहती है। शहर का तीसरा हिस्सा कोलार रोड, इंदौर रोड, होशंगाबाद रोड के रूप में नए उपनगर के तौर पर विकसित हुआ है। शहर के इन तीनों इलाकों की सुरक्षा व्यवस्था की जरूरतें अलग-अलग तरह की हैं। हमें पूरा विश्वास है कि भोपाल के पुलिस कमिश्नर तीनों में सामंजस्य बनाकर बेहतर नतीजे देंगे।
यदि जनता की दृष्टि से बात करें तो आम आदमी यही सोचता है कि उसके बच्चे स्कूल-कॉलेज सुरक्षा की भावना के बीच में जाएं। बाजारों में कारोबार करना सहज हो, सड़क की ट्रैफिक व्यवस्था दुरुस्त हो और सार्वजनिक मार्गों और स्थानों पर अतिक्रमण न हो। जाहिर है कि पुलिस कमिश्नर प्रणाली में इन बातों को लेकर विशेष ध्यान दिया जाएगा। अगर आम आदमी पुलिस के पास तत्परता से अपनी शिकायत पहुंचा सके और उसकी शिकायतों का तेजी से निराकरण हो सके तो निश्चित तौर पर आम व्यक्ति भी पुलिस कमिश्नर प्रणाली का स्वागत ही करेगा।
पुलिस का सबसे बड़ा काम तो अपराध और अपराधियों पर लगाम कसना ही है। दोनों ही पुलिस कमिश्नर अपनी छवि के अनुसार सख्त और न्याय प्रिय स्वभाव के माने जाते हैं ऐसे में आम जनता यह उम्मीद कर सकती है कि उसकी रोजमर्रा की जिंदगी की पुलिस विभाग के दायरे में आने वाली तकलीफों पर काफी कुछ अंकुश लग जाएगा।
कुछ लोग पुलिस कमिश्नर प्रणाली को पुलिस प्रशासन और आईएएस बिरादरी में अधिकारों की लड़ाई के तौर पर देखते हैं, लेकिन मुझे लगता है कि इस तरह की दृष्टि न्याय संगत नहीं है। चाहे पुलिस अधिकारी हों या प्रशासनिक अधिकारी, अंततः वे सभी राज्य व्यवस्था का अंग हैं और सबकी अपनी अपनी जिम्मेदारियां हैं। कौन सी जिम्मेदारी किसके हिस्से में आएगी, यह राज्य ही तय करता है। ऐसे में अगर प्रशासन की कुछ जिम्मेदारियां पुलिस के पास आ रही हैं तो उन्हें बहुत ज्यादा शक की निगाह से देखने की जरूरत नहीं है।
यह एक बड़ा प्रयोग है, जिसका इंतजार मध्य प्रदेश पिछले चार दशक से कर रहा था और अब यह जब अमल में आ गया है तो इसे काम करने का पूरा मौका दिया जाना चाहिए। अगर इसे प्रशासन और पुलिस के संघर्ष के तौर पर देखा गया तो मौजूदा पुलिस कमिश्नर प्रणाली के लिए काम करने में काफी चुनौतियां आएंगी। जाहिर है, यह सब बातें राजनीतिक नेतृत्व की निगाह में भी होंगी और वह इसका कोई सुगम रास्ता निकाल ही लेगा।
फिलहाल तो यही कहना उचित होगा कि मध्य प्रदेश के नए पुलिस कमिश्नरों को उनकी नई जिम्मेदारी की बहुत-बहुत बधाई। इंदौर और भोपाल की जनता को भी नई प्रणाली की शुरुआत होने की बहुत बधाई। हम सब व्यवस्था की अच्छाइयों का स्वागत करेंगे और जहां जो कमी रह जाएगी, उसमें सुधार के लिए अपना सहयोग और परामर्श देते रहेंगे।