ग्वालियर।संजय बेचैन।
सत्ता परिवर्तन के साथ रेत के काले कारोबार पर कब्जे को लेकर चंबल(chambal) में घमासान मचा हुआ है तो अछूता ग्वालियर(gwalior) भी नहीं। क्या नेता क्या अधिकारी सभी सोना उगलती चम्बल पार्वती और सिंध नदियों(Chambal Parvati and Sindh rivers) के घाटों पर टकटकी लगाए इस कब्जे की जंग में प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से बराबर के भागीदार दिखाई दे रहे हैं। आरोपों के दाग यदि खाकी पर हैं तो बेदाग खादी भी नहीं बची। एनजीटी(NGT) के प्रावधानों को खूंटी पर टांग कर बेखौफ माफिया चंबल का सीना चीर कर पूरी दम से अवैध खनन पर उतारू है। आज भी भिण्ड (bhind) के असवार और लहार सहित अन्य क्षेत्रों में दम से अवैध रेत खनन (Illegal sand mining)चल रहा है, प्रशासन तमाईशाई बना बैठा है। प्रशासन की इतनी कार्रवाई के बाद भी रेत माफि या(Sand mafia) के हौसले पस्त नहीं हुए हैं। बताया जा रहा है कि माफि या ने मुसावली और माहिर के बीच नदी में अवैध पुल तक बना डाला। जहां से रात के समय डंपरों और ट्रकों में रेत माहिर से लाकर मुसावली में डंप किया जा रहा है।
ऊपरी इशारे पर टारगेट बने अफसर
रेत को लेकर डीआईजी और एसपी में हुई टकराहट की स्क्रिप्ट कहीं और लिखी गई। सुगबुगाहट यह है कि भिंड के हटाये गए पुलिस अधीक्षक नागेंद्र सिंह पर अवैध खनन के मामले में गिराई गई कार्रवाई की गाज एक सुनियोजित तानाबाना है अन्यथा इससे पहले कभी किसी डीआईजी स्तर के अधिकारी को इस तरह से कार्रवाई की खुली छूट शायद ही दी गई हो। जाहिर सी बात है कि बंदूक किसी और की कंधा कैसी और का ही रहा है। करीब सवा माह पूर्व ग्वालियर चंबल जोन के डीआईजी के तौर पर पदस्थ किए गए राजेश हिंगणकर अवैध रेत के मामले में कार्रवाई को लेकर सुर्खियों में हैं। जिन्होंने इस कार्यवाही में भिंड एसपी(bhind sp) को कानोकान खबर ना करके उन्हें करवाई से दूर रखा और रेत का बड़ा कारोबार यहां उजागर कर शोहरत बटोरी लेकिन उन्हें यह हरी झंडी ऊपर से मिली बताई जा रही है। इधर ग्वालियर में भी रेत का कारोबार दम से चल रहा है यहां भी सिंध और पार्वती का सीना छलनी कर रेत से रुपया बनाया जा रहा है। सिरोल में अवैध क्रेशर फि र से चल पड़े हैं, जो पूर्व मंत्री इमरती देवी की जिद पर बंद हुए थे फिर एक समझौते के बाद खोले गए थे समझौता और सांझीदारी ऐसे शब्द है जिनके अपने गहरे मायने यहां रहे हैं।
खाकी ही नहीं खादी भी शामिल
ग्वालियर भिण्ड क्षेत्र में रह रह कर बड़े नेताओं के नाम भी इस रेतीले कारोबार के सिंडिकेट में सामने आते रहे है। सरकार चाहे कांग्रेस(congress) की रही हो या फि र भाजपा(bjp) की रेत माफि याओं के हमजोली दोनों ही दलों के नेता होते रहे हैं। भिंड के हटाए गए एसपी नागेंद्र सिंह श्योपुर जिले के एक सिपाही और हवलदार द्वारा की जा रही रेत की वसूली के मामले में विवाद के केंद्र में आए हालांकि दोनों पुलिस वालों(police) सहित पांच को डीआईजी हिंगणकर(DIG Hingankar) ने सस्पेंड कर दिया। सेट पर मन की बात का ऑडियो वायरल(audio viral) होने पर भिंड के तत्कालीन एसपी(sp) और अधिक विवादित हो गए नतीजतन उन्हें हटा दिया गया, उनके साथ कलेक्टर और आईजी भी चलते बने। यहां डटे अधिकारियों को हटाने का ऊपर से चला एक राजनैतिक टॉस्क पूरा हुआ। डीआईजी राजेश हिंगणकर की बात करें तो उन्होंने शिवपुरी एसपी रहते करेरा क्षेत्र में खदानों पर छापामारी कर कार्रवाई का बड़ा ढोल पीटा था मगर वह कार्यवाही इस कदर विवादित हुई कि आज दिनांक तक चलानी करवाई करने में पुलिस को भंावरे पड़ रही हैं। अब भिण्ड में ही इतना सब होने के बाद भी चम्बल संभाग से रेत का काला कारोबार यहां बंद हो गया हो ऐसा कदापि नहीं है। रेत माफि या अब नया गठबंधन तैयार करने में जुट गया है, भागीदार बदले जा रहे हैं और फि र से रेत का कारोबार जो कि करोड़ों में है फि र से शुरू हो रहा है। भिण्ड में आज भी सब कुछ धरातल पर दम से चल रहा है। उधर ग्वालियर के क्रेशर डबरा दतिया की रेत खदानें भी राजनैतिक हस्तक्षेप का जीता जागता नमूना है। जिन पर वर्चस्व के लिए नेताओं में आपस में ही ठनाठनी के किस्से अक्सर सामने आते रहते हैं। वर्चस्व की यह न जंग थमी है और ना ही थमने की कोई सम्भावना।
सत्ता में आई तो भाजपा ने सम्हाली कमान
अब हाल ही भिंड जिले के भाजपा नेता पूर्व विधानसभा प्रत्याशी रमेश दुबे(BJP leader former assembly candidate Ramesh Dubey) ने खनिज अधिकारी भिंड आरपी भदकारिया(Mineral Officer Bhind RP Bhadkaria) को एक पत्र लिख डाला और खदानों के संबंध में तमाम सारी जानकारी मांग डाली। ऐसा उन्होंने सूचना के अधिकार के तहत नही किया बल्कि अपने लेटर हेड पर यह सब जानकारी ऐसे ही मांगी है। इनके बिंदुओं पर गौर करें तो उन्होंने पावर मेक प्रोजेक्ट लिमिटेड (Power Make Project Limited)को भिंड जिले में रेत खनन का जो ठेका मिला है उन्हें रेत निकालने के लिए प्लान प्रस्तुत करना चाहिए था मगर कोई माइनिंग प्लान प्रस्तुत नहीं किया है। इनके विरुद्ध क्या कुछ कार्रवाई की गई यह बताया जाए। भाजपा नेता ने अपनी शिकायत में यह तथ्य भी रेखांकित किया है कि डीआईजी राजेश हिंगणकर के नेतृत्व में भिंड जिले के कई स्थानों पर अवैध भंडारण जब्त किए थे ,जप्त शुदा रेत की कितनी मात्रा थी कितनी कीमत थी और इस रेत को किसके आदेश से उठाया गया यह तमाम जानकारी उन्होंने इस पत्र के माध्यम से मांगी है। इस कंपनी पर अवैध तरीके से रेत खनन के आरोप भी चौतरफ ा उछल रहे हैं। मसलन स्वीकृत एरिया कहीं है खदानों का सीमांकन कराया नहीं गया और स्वीकृत एरिया की ओट में अन्य स्थानों से रेत खनन किया जा रहा है। कुल मिला कर यहां रेत राजनीतिक मसला बनती जा रही है। चूकि सिंधिया समर्थक भाजपा नेता का पत्र है तो कार्यवाही का स्वांग तो करना होगा सो संयुक्त आयुक्त राजेन्द्र सिंह ने कलेक्टर भिण्ड को तीन दिन में रिपोर्ट देने को कह डाला। मायनिंग ने कार्यवाही दिखाने के लिए इस पत्र के बाद मटियावली में छापा मारकर 1230 घनमीटर अवैध रेत जब्त की है, एक हजार घनमीटर अवैध रेत को मिट्टी में मिलाकर नष्ट करने का प्रयास किया है। इस अवैध रेत की बाजारू कीमत 8.92 लाख रुपए आंकी जा रही है।
एसडीएम ने थाना प्रभारियों को लिखा पत्र –
इधर रेत के अवैध उत्खनन को लेकर लहार उपखंड के मजिस्ट्रेट ने लहार एसडीओपी और असवार तहसीलदार ने असवार रावतपुरा सहित राजस्व निरीक्षक व पटवारियों को अवैध रेत पर कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं। साथ ही कहा है कि रेत के अवैध भंडारण और परिवहन को रोकने के लिए लगातार छापामार कार्रवाई की जाए।
विधि के प्रावधान और पर्यावरण की परवाह किसे है
राजनीतिक और प्रशासनिक रस्साकशी के बीच इस बात में दो राय नहीं कि नदियों का जलीय जीवन खतरे में है। एनजीटी के प्रावधान कागजों में ही दफन होकर रह गए हैं उनका पालन मैदान कहीं नजर नहीं आ रहा नदियों में पनडुब्बी और पोकलेन उतारी जाकर मशीनों के मार्फत रेत खनन किया जा रहा है नकली रेत का कारोबार भी कोपरा के नाम से दम से चल रहा है वन विभाग पुलिस विभाग राजस्व और माइनिंग विभाग के तमाम सारे चेहरे इस हमाम में डूबे दिखाई दे रहे हैं। यही स्थिति पक्ष और विपक्ष के नेताओं की भी कहीं जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।
माफियाओं के पुलिस से नेक्सस से अनभिज्ञ नहीं बड़े अफसर
ग्वालियर के आईजी राजाबाबू सिंह खुद मानते हैं कि रेत माफियाओं और पुलिस के बीच एक बड़ा नेक्सस तैयार हो चुका है। इसकी बजह है ऐसे अफसर जो लम्बे समय से ग्वालियर चंबल अंचल में पदस्थ हैं।
कठघरे में कार्यवाहियां
बड़ा सवाल ये है कि जब जब रेत के इस काले कारोबार पर कार्रवाई का दम भरा जाता है तब तक मात्र कुछ डंपर कुछ ट्रॉली और दो चार मशीनों की जब्ती कर अपनी पीठ थपथपाई कर ली जाती है। लेकिन जिन कंपनियों और लोगों के नाम रेत खदानें हैं जहां से रेत का यह काला धंधा पनप रहा है उनकी लीज निरस्ती की कार्यवाही नहीं की जाती। सड़कों पर दौड़ते वाहन तो रेत खनन करते नहीं फि र परिवहन को खनन से क्यों लिंक किया जाता है। कुल मिलाकर छुटपुट कार्यवाही दिखाकर इस बड़े गोलमाल को संरक्षण देने का खेल बड़े स्तर से जारी थाए जारी है और जारी रहेगा भागीदार बदलते रहेंगे मगर कारोबार चलता रहेगा।
(वरिष्ठ पत्रकार संजय बैचेन की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट)