National handloom day 2024 : राष्ट्रीय हथकरघा दिवस पर सीएम डॉ. मोहन यादव ने दी शुभकामनाएँ, जानिए इस दिन का इतिहास, महत्व और थीम

राष्ट्रीय हथकरघा दिवस भारतीय संस्कृति और परंपरा का उत्सव है। यह दिन न केवल हमारे बुनकरों और कारीगरों के योगदान को मान्यता देता है, बल्कि हमें हमारी सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित और प्रोत्साहित करने की भी याद दिलाता है। इस दिन का उद्देश्य भारतीय हथकरघा उद्योग के महत्व को पहचानना और इसे बढ़ावा देना है, ताकि यह उद्योग अपनी पूरी क्षमता के साथ विकसित हो सके।

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National handloom day 2024 : आज राष्ट्रीय हथकरघा दिवस है। भारत की समृद्ध हथकरघा विरासत को संरक्षित करने और बढ़ावा देने के उद्देश्य से हर साल 7 अगस्त को ये दिन मनाया जाता है। ये भारतीय हथकरघा उद्योग और बुनकरों के महत्व को पहचानने और उन्हें सम्मानित करने के लिए समर्पित दिन है। सीएम डॉ. मोहन यादव ने राष्ट्रीय हथकरघा दिवस पर सभी बुनकरों और इस व्यवसाय से जुड़े कारीगरों को बधाई दी है।

इतिहास, पृष्ठभूमि और इस साल की थीम

राष्ट्रीय हथकरघा दिवस की शुरुआत 7 अगस्त 2015 को हुई थी। इसे मनाने के लिए 7 अगस्त का दिन इसलिए चुना गया क्योंकि इसी दिन 1905 में स्वदेशी आंदोलन की शुरुआत हुई थी। इस आंदोलन का उद्देश्य ब्रिटिश सरकार के खिलाफ भारतीय उत्पादों के उपयोग को बढ़ावा देना था। उसी भावना को सम्मानित करने के लिए राष्ट्रीय हथकरघा दिवस की स्थापना की गई। इस साल राष्ट्रीय हथकरघा दिवस की थीम “सस्टेनेबल हैंडलूम: हरित और समृद्ध भविष्य की ओर” है। इस थीम का उद्देश्य स्थायी और पर्यावरण-हितैषी हथकरघा उद्योग को बढ़ावा देना है।

राष्ट्रीय हथकरघा दिवस भारतीय संस्कृति और परंपरा का उत्सव है। यह दिन न केवल हमारे बुनकरों और कारीगरों के योगदान को मान्यता देता है, बल्कि हमें हमारी सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित और प्रोत्साहित करने की भी याद दिलाता है। इस दिन का उद्देश्य भारतीय हथकरघा उद्योग के महत्व को पहचानना और इसे बढ़ावा देना है, ताकि यह उद्योग अपनी पूरी क्षमता के साथ विकसित हो और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक समृद्ध विरासत छोड़ सके।

हथकरघा उद्योग का महत्व

  • आर्थिक योगदान: हथकरघा उद्योग भारतीय अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह उद्योग लाखों लोगों को रोजगार प्रदान करता है, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में। इसमें बुनकर, कारीगर और अन्य संबंधित व्यवसाय शामिल हैं।
  • संस्कृति और परंपरा: भारतीय हथकरघा वस्त्रों में हर राज्य की अपनी विशिष्टता होती है। चाहे वह बनारसी साड़ी हो, कांचीपुरम सिल्क हो, या फिर पश्मीना शॉल हो, ये सभी वस्त्र भारतीय सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक हैं।
  • पर्यावरणीय दृष्टिकोण: हथकरघा उद्योग पर्यावरण के प्रति भी ज़िम्मेदारी निभाता है। यह उद्योग प्राकृतिक रंगों और हाथ से बने उत्पादों का उपयोग करता है, जिससे पर्यावरण पर न्यूनतम प्रभाव पड़ता है।
  • नारी सशक्तिकरण: इस उद्योग में महिलाओं की महत्वपूर्ण भागीदारी होती है। कई ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में महिलाएं इस कार्य में संलग्न हैं, जिससे उन्हें आर्थिक स्वतंत्रता और सम्मान मिलता है।

चुनौतियाँ और समाधान

हथकरघा उद्योग कई चुनौतियों का सामना कर रहा है। इनमें मशीन से बने वस्त्रों की बढ़ती प्रतिस्पर्धा, कच्चे माल की ऊंची कीमतें, और विपणन की कठिनाइयाँ शामिल हैं। इन चुनौतियों का समाधान के लिए सरकार की तरफ़ से प्रयास किए जा रहे हैं। बुनकरों और कारीगरों के लिए वित्तीय सहायता, सब्सिडी, और प्रशिक्षण कार्यक्रम प्रदान करने के लिए योजनाएँ चलाई जा रही है। वहीं इस क्षेत्र में भी तकनीकी विकास की ज़रूरत है। हथकरघा उद्योग को आधुनिक तकनीकों से लैस करने की आवश्यकता है ताकि उत्पादकता और गुणवत्ता में सुधार हो सके। इसकी मार्केटिंग और ब्रांडिंग अच्छे से हो ताकि वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धा की जा सके।

 


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श्रुति कुशवाहा

श्रुति कुशवाहा

2001 में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर (M.J, Masters of Journalism)। 2001 से 2013 तक ईटीवी हैदराबाद, सहारा न्यूज दिल्ली-भोपाल, लाइव इंडिया मुंबई में कार्य अनुभव। साहित्य पठन-पाठन में विशेष रूचि।

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