प्रदेश में गहरा सकता है बिजली संकट, कोयले की कमी

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भोपाल। प्रदेश में कांग्रेस सरकार आने के बाद से ही बिजली संकट की स्थिति निर्मित हुई है। चूकि बारिश शुरू हो चुकी है, जिससे बिजली की मांग में कमी आई है। इसके बावजूद भी प्रदेश में बिजली संकट के हालात बन सकते हैं। क्योंकि प्रदेश के दो प्रमुख ताप विद्युत केंद्रों पर कोयले की कमी हो गई है। कोयला भंडार में सिर्फ कुछ ही दिनों का कोयला शेष है। जबकि भंडारों में 10 दिन का कोयला हमेशा उपलब्ध होना चाहिए।

बिजली उत्पादन में संकट खड़ा हो गया है| बिजली संयत्रों को फुल लोड पर चलाने के लिए कोयले का संकट खड़ा हो गया है। कोल सप्लाई में कई सालों से जमे अफसर इसके लिए ज्यादा जिम्मेदार बताए जा रहे हैं। ऊर्जा मंत्री प्रियव्रत सिंह ने बताया कि  कुछ संयंत्रों में कोयले की कमी पड़ गई है। इसके लिए हमने डब्ल्यूसीएल से बातचीत की है। उन्होंने रोजाना चार रैक कोयला देने का आश्वासन दिया है। इस कोयले को सारणी और सिंगाजी संयंत्र को भेजा जा रहा है। अमरकंटक और बिरसिंहपुर संयंत्रों सहित बाकी जगह के कोल प्रबंधन की रविवार को हम समीक्षा कर रहे हैं। जल्द ही कोयले की कमी को देर कर लिया जाएगा। 


60 फीसदी घट गया बिजली का उत्पादन

कोल प्रबंधन न कर पाने के कारण प्रदेश के संयंत्रों से 54 सौ की जगह मात्र 2330 मेगावॉट बिजली का उत्पादन हो रहा है। बिजली संकट झेल रहे प्रदेश में कोयले की कमी भी खड़ी हो गई है। अमरकंटक (चचाई) संयंत्र में कोयला खत्म हो गया है, जिसके लिए चिरमिरी से बिरसिंहपुर आ रहे कोयले के रैक को डायवर्ट कर चचाई भेजा गया है। संजय गांधी ताप विद्युत संयंत्र बिरसिंहपुर में भी मात्र दो दिन का कोयला बचा हुआ है।सारणी में 1,53,955 मीट्रिक टन, बिरसिंहपुर में 51,330 मीट्रिक टन और सिंगाजी खंडवा में 3,93,850 मीट्रिक टन कोयला शेष बचा है। गौरतलब है कि अमरकंटक और बिरसिंहपुर ही ऐसे संयंत्र हैं, जहां कम लागत में बिजली बनती है।


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