साध्वी प्रज्ञा ठाकुर का राहुल गांधी पर तंज, कहा- कोई लड़की नहीं करना चाहती उनसे शादी

Gaurav Sharma
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भोपाल,डेस्क रिपोर्ट। भोपाल की सांसद साध्वी प्रज्ञा ठाकुर (Bhopal MP Sadhvi Pragya Thakur) अपने बयानों (Statements) को लेकर चर्चाओं में बनी रहती हैं। एक बार फिर साध्वी प्रज्ञा ठाकुर  ( Sadhvi Pragya Thakur) ) अपने द्वारा दिए गए बयान को लेकर सुर्खियां बटोर रहीं है। सांसद साध्वी ने इस बार कांग्रेस नेता राहुल गांधी (Congress leader Rahul Gandhi) के खिलाफ बयान देते हुए चर्चाओं के गलियारों को गर्म कर दिया है। साध्वी प्रज्ञा ठाकुर ( Sadhvi Pragya Thakur) ने राहुल गांधी (Rahul Gandhi) पर जमकर निशाना साधा है। राहुल गांधी (Rahul Gandhi) पर तंज कसते हुए कहा कि यह वह लोग हैं जिनका कोई धर्म नहीं है, ना ही इनकी कोई संस्कृति है और ना ही इतिहास। इनसे कोई लड़की शादी नहीं करना चाहती हैं, बच्चा बच्चा इनका मजाक बनाता है और इनकी मां इटली में बैठकर इन्हें पीएम (PM) बनाने के सपने देख रही हैं।

दरअसल, एक सभा को संबोधित करते हुए साध्वी प्रज्ञा ठाकुर ( Sadhvi Pragya Thakur) ने कहा कि यह लोग सैनिकों को अपमानित करते हैं। कहते है कि किसान जरूरी है, हमें सीमा पर सैनिकों की आवश्यकता नहीं है। मतलब क्या है ये.. ये कैसी परिभाषा है, कुछ समझ ही नहीं आता। एक विवेक हीन व्यक्ति, जिसके पास ना कोई विवेक है, न कोई बुद्धि, जिसके पास कोई ज्ञान नहीं जिसके पास ना ही कोई गणित है ना ही कोई इतिहास, जिसकी कोई संस्कृति नहीं है, जिसका कोई धर्म ही नहीं है। ऐसा अधर्मी व्यक्ति कुछ भी बोलने लगता है। हमारा देश का बच्चा-बच्चा उस पर हंसता है।


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पत्रकारिता पेशा नहीं ज़िम्मेदारी है और जब बात ज़िम्मेदारी की होती है तब ईमानदारी और जवाबदारी से दूरी बनाना असंभव हो जाता है। एक पत्रकार की जवाबदारी समाज के लिए उतनी ही आवश्यक होती है जितनी परिवार के लिए क्यूंकि समाज का हर वर्ग हर शख्स पत्रकार पर आंख बंद कर उस तरह ही भरोसा करता है जितना एक परिवार का सदस्य करता है। पत्रकारिता मनुष्य को समाज के हर परिवेश हर घटनाक्रम से अवगत कराती है, यह इतनी व्यापक है कि जीवन का कोई भी पक्ष इससे अछूता नहीं है। यह समाज की विकृतियों का पर्दाफाश कर उन्हे नष्ट करने में हर वर्ग की मदद करती है। इसलिए पं. कमलापति त्रिपाठी ने लिखा है कि," ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और साहित्य, कला और कारीगरी, राजनीति और अर्थनीति, समाजशास्त्र और इतिहास, संघर्ष तथा क्रांति, उत्थान और पतन, निर्माण और विनाश, प्रगति और दुर्गति के छोटे-बड़े प्रवाहों को प्रतिबिंबित करने में पत्रकारिता के समान दूसरा कौन सफल हो सकता है।