सबसे बड़ी निष्‍काम कर्मयोगी हैं “मां”- प्रवीण कक्कड़

भोपाल, प्रवीण कक्कड़। महान साहित्यकार रुड्यार्ड किप्लिंग ने मां के महत्व के बारे में एक बात कही थी- “भगवान हर जगह नहीं हो सकता, इसलिए उसने मां बनाई” आज मेरी मां स्वर्गीय श्रीमती विद्यादेवी कक्कड़ की बरसी पर उस महान साहित्यकार की बात बरबस मेरे हृदय में उठती है। मां (Mother) को गए 6 साल हो गए, लेकिन कभी ऐसा लगता नहीं है कि वह मुझसे दूर हैं। शायद इसलिए कि मेरे व्यक्तित्व, स्वभाव, शिक्षा और दुनिया के ज्ञान में अगर किसी का सबसे ज्यादा असर है, तो वह मेरी मां ही हैं। मां के चले जाने के बाद भी मुझे उनका आशीर्वाद भावनात्‍मक रूप से मेरे साथ चलता है। ऐसे में मैं सोचता हूं कि सिर्फ मेरी या आपकी माता की बात नहीं, आखिर मां में ऐसा क्या है जो पूरी मानव सभ्यता पर उसका इतना असर है?

भारतीय समाज को अक्सर पितृसत्तात्मक समाज कहा जाता है और वह ऐसा है भी लेकिन क्या इस पितृसत्तात्मक समाज में माता की भूमिका कहीं भी किसी रूप में छोटी है। हम सब संयुक्त परिवारों से निकले हैं और हमने देखा है कि हमारी दादी, हमारी मां पूरे परिवार की जिम्मेदारी का निर्वहन करने के बाद ही अपने हक के बारे में सोचती हैं। भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में निष्काम कर्म योग की बात कही है, लेकिन हम अपने जीवन में देखें तो मां से बढ़कर निष्काम कर्मयोगी और कौन होता है। वह सुबह से जाग जाती है।


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Kashish Trivedi

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