इन सीटों पर मिली थी बड़ी जीत, रिकॉर्ड कायम रखना बड़ी चुनौती

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भोपाल| मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव में अपना भाग्य आजमा रहे सैकड़ों प्रत्याशियों का भविष्य 28 नवंबर को मतदाता तय करेगा| जिसका परिणाम 11 दिसम्बर को सामने आएगा| प्रदेश में सरकार किसकी बनेगी, यह अब जल्द ही पता चलेगा| वहीं पिछले चुनाव में भारी मतों से जीतकर रिकॉर्ड बनाने वाले दिग्गजों के सामने इस बार भी रिकॉर्ड कायम रखने की चुनौती है|  विधानसभा चुनाव 2013 में सबसे ज्यादा वोटों से जीतने वाले भाजपा-कांग्रेस के इन पांच-पांच उम्मीदवारों के लिए इस बार समीकरण भी बदल गए हैं|  

2013 में भाजपा की यह पांच बड़ी जीत 

इंदौर – 2 : रमेश मेंदोला 

विधानसभा चुनाव 2013 में बीजेपी की यहां प्रदेश की सबसे बड़ी जीती मिली थी| बीजेपी प्रत्याशी रमेश मेंदोला ने 91 हजार से अधिक मतों से अपने प्रतिद्वंद्वी को हराया था। इस बार स्थिति चुनौतीपूर्ण है। कांग्रेस ने मोहन सेंगर को उम्मीदवार बनाया है। सेंगर के लिए इतने बड़े अंतर को पाटना टेड़ी खीर रहेगा। वहीं, मेंदोला इस लीड को बढ़ाने के लिए प्रयास कर रहे हैं। हालांकि, इस पर खास प्रभाव नहीं होगा। मेंदोला अपनी लीड बरकरार रखने में सफल हो सकते हैं।

इंदौर – 1 : सुदर्शन गुप्ता

यहां दोनों ओर भितरघात देखने को मिल रहा है। दोनों के वाकयुद्ध से भी समीकरण प्रभावित हुए हैं। शुक्ला के गृह क्षेत्र बाणगंगा में वर्तमान विधायक गुप्ता को लेकर अनेक स्थानों पर असंतोष की स्थिति बन रही है। इसका फायदा शुक्ला को मिल सकता हैं। 2013 की लीड 54 हजार से अधिक की है। इसमें कांग्रेस उम्मीदवार के मतों को कम कर दिया जाए तो यह लीड वैसे ही 18-19 हजार के आसपास होगी। इस बार जीत के अंतर को इतना रखना मुश्किल लग रहा है।

बुदनी : शिवराज सिंह चौहान

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान बुधनी से लगातार जीत रहे हैं। पिछली बार शिवराज को 128730 वोट मिले थे। कांग्रेस उम्मीदवार महेन्द्र सिंह चौहान को 43925 वोट ही मिले थे। इस बार कांग्रेस ने पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव को उतारकर मुकाबला रोचक व टक्कर का बना दिया है। हालांकि कांग्रेस के लिए यहां मात देना आसान नहीं है|  यहां अनुसूचित जाति, आदिवासी, यादव, मीना, रघुवंशी, खाती समाज के करीब 80 हजार वोट हैं, जो अब तक एकतरफा भाजपा में थे, लेकिन यादव के आने से समीकरण बदल गए हैं। सीएम के परिजनों को भी यहां विरोध का सामना करना पड़ा है। 

गोविंदपुरा: बाबूलाल गौर 

भोपाल में भाजपा का सबसे मजबूत गढ़, जिसकी चर्चा दिल्ली तक रही| इस बार इस सीट से गौर की बहु कृष्णा गौर मैदान में हैं| इस सीट पर 40 साल से बाबूलाल गौर जीतते रहे।  यहां पिछली बार गौर 70644 वोट से जीते थे, तब कांग्रेस से गोविंद गोयल लड़े थे। इस बार कांग्रेस ने पार्षद गिरीश शर्मा को टिकट दिया है।  भाजपा नेता तपन भौमिक और महापौर आलोक शर्मा टिकट नहीं मिलने से नाराज हैं। इनसे गौर को भितरघात का खतरा है।  यहां गौर परिवार मजबूत स्थिति में हैं, लेकिन पिछली जीत के रिकार्ड को दोहराना बड़ा चुनौतीपूर्ण है।

हुजूर : रामेश्वर शर्मा 

यहां भाजपा ने रामेश्वर शर्मा को पार्टी ने दोबारा टिकट दिया है। पांच सालों में शर्मा अनेक कारणों से चर्चा में रहे|  कांग्रेस से नरेश ज्ञानचंदानी मैदान में हैं|  इस सीट पर टिकट कटने से भाजपा के पूर्व विधायक जितेंद्र डागा नाराज है, हालाँकि पार्टी ने उन्हें मना लिया था और निर्दलीय प्रत्याशी बनने के बाद नामांकन वापस ले लिया था, लेकिन भितरघात का खतरा खत्म नहीं हुआ|  पिछली जीत के रिकॉर्ड को बरकरार रखना उनके लिए भी चुनौतीपूर्ण है।

2013 में कांग्रेस की यह पांच बड़ी जीत 

राघोगढ़: जयवर्धन सिंह : 

पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के पुत्र जयवर्धन 2013 में पहली बार यहां से चुनाव लड़े थे। कांग्रेस की सबसे बड़ी जीत भी 58204 वोट से उनके नाम रही। इस बार जयवर्धन का अपनी सीट के साथ ही आस-पास की सीटों पर भी सक्रिय रहे| हालाँकि दिग्विजय उनके प्रचार से दूर रहे|  क्षेत्र में महिलाओं के बीच प्रचार की कमान पत्नी श्रजाम्यासिंह ने संभाल रखी रही हैं। भाजपा ने यहां 2008 में हारे भूपेंद्र सिंह रघुवंशी को टिकट दिया है। यहां जयवर्धन की जीत का अंतर बढऩे की संभावना है।

कुक्षी : सुरेंद्र सिंह बघेल  

कांग्रेस की दूसरी सबसे बड़ी जीत कुक्षी में हुई थी । यहां कांग्रेस प्रत्याशी सुरेंद्र सिंह हनी बघेल की 42768 वोट से जीत हुई थी। पिछली बार मुकाम सिंह किराड़े हारे थे। इस बार हनी बघेल फिर कांग्रेस से हैं तो भाजपा ने वीरेंद्र सिंह बघेल को उतारा है। यहां पर कुल 5 प्रत्याशी मैदान में हैं। इनमें भाजपा-कांग्रेस के अलावा बसपा, आप और बहुजन मुक्ति पार्टी प्रत्याशी हैं। आदिवासी बाहुल्यता वाली इस सीट पर सारा खेल आदिवासी वोट पर टिका है। जयस के कारण पहले कांग्रेस को खतरा था, लेकिन जयस अध्यक्ष हीरालाल अलावा के कांग्रेस में आने के बाद यह संकट टल गया। अब मुकाबला बघेल वर्सेस बघेल में है। कांग्रेस मजबूत स्थिति में मानी जा रही है।

सिंहावल : कमलेश्वर पटेल-

यहां पिछली बार कमलेश्वर पटेल 32,556 वोट से जीते थे। क्षेत्र में वे मजबूत स्थिति में हैं, लेकिन इस बार जीत के मार्जिन को बरकरार रखना चुनौतीपूर्ण है। हाल ही में उनके पिता पूर्व मंत्री इंद्रजीत पटेल का निधन हो गया है। इससे सहानुभूति की लहर का फायदा मिल सकता है। यहां भाजपा ने टिकट के दावेदार रहे पूर्व विधायक विश्वामित्र पाठक को दरकिनार कर शिवबहादुर सिंह चंदेल को उतारा है। विश्वामित्र अब निर्दलीय मैदान में हैं। इसका कांग्रेस को फायदा तो होगा, पर कुल वोट तीन बड़े हिस्सों में बंटते दिख रहे हैं।

– पुष्पराजगढ़ :  

कांग्रेस का गढ़ रही इस विधानसभा में भाजपा के बढ़े कद और अन्य उम्मीदवारों के दावेदारी के कारण यहां चतुष्कोणीय मुकाबला है। 35 हजार की बड़ी जीत दर्ज करने वाली कांग्रेस अब चंद आंकड़ों पर सिमटती नजर आ रही है। कांग्रेस से पुराना चेहरा फुंदेलाल सिंह मार्को जबकि भाजपा से नरेन्द्र मरावी मैदान में हैं। भाजपा के पूर्व विधायक सुदामा सिंह भी दावेदार थे। टिकट न मिलने पर बागी हुए सुदामा भी मैदान में कूदे हैं। भाजपा के अन्य कार्यकर्ता इनके साथ हैं। इससे पार्टी ने सुदामा सिंह सहित अन्य कार्यकर्ताओं को बाहर का रास्ता दिखा दिया है। ऐसे में ये खुलकर मैदान में हैं। भाजपा में बनी अंत:कलह में कांग्रेस से अपनी जीत को आसान मान रही है। गोंगपा के भी मैदान में आने से मुकाबला चतुष्कोणीय हो गया है। आदिवासियों के हितों में आगे आई गोंगपा के साथ यहां के आदिवासी नव संगठनों का अप्रत्यक्ष सहयोग दिख है। जिससे गोंगपा के मतों में बढ़ोत्तरी की संभावना बनी है।

डबरा : इमरती देवी 

यहां कांग्रेस से इमरती देवी सुमन ने भाजपा प्रत्याशी सुरेश राजे को 33278 मतों से हराया था। इस बार हार-जीत का अंतर कम हो सकता है। जातिगत समीकरण हावी है। विकास कार्य नहीं होने से भी इमरती के प्रति नाराजगी दिखती है। कुछ स्थानीय कांग्रेसी कार्यकर्ता भी इमरती का विरोध कर रहे हैं। इमरती जाटव समाज से हैं। जाटव समाज के वोटर करीब 29 हजार हैं। पिछले बार यहां मुकाबला त्रिकोणीय था। इस बार निर्दलीय सत्यप्रकाशी परसेडिया, बसपा के पीएस मंडेलिया और शिवसेना के दिनेश खटीक वोट काट सकते हैं।


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