भोपाल। पंद्रहवीं विधानसभा के गठन के लिए मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव शांतिपूर्ण संपन्न हुए। इस बार जनता ने घर से बाहर निकल कर रिकार्ड मतदान किया। प्रदेश में करीब 75 फीसदी वोटिंग का दावा चुनाव आयोग कर रहा है। सभी उम्मीदवारों की किस्मत ईवीएम में बंद हो गई है। रणभेरी बजने से लेकर चुनावी शोर थमने तक कांग्रेस ने भाजपा का दुर्ग भेदने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाया। लेकिन अब सबकि निगाहें 11 दिसंबर पर टिकी हैं। उससे पहले हम बात करेंगे प्रदेश की दस ऐसी सीटों की जिनपर पूरे देश की निगाह है। सभी इन सीटों के नतीजों का बेसर्बी से इंतजार कर रहे हैं।
बुधनी विधानसभा
इस बार कांग्रेस ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को उनके घर में घेरने की पूरी कोशिश की। यहां से सीएम के खिलाफ किसान पुत्र और पूर्व केंद्रीय मंत्री अरूण यादव को मैदान में उतारा गया। दोनों ही नर्मदा पुत्र कहे जाते हैं। लेकिन कांग्रेस शिवराज को उनके घर में रोकने पर नकाम रही सीएम प्रचार के दौरान यहां एक बार भी नहीं आए। उनकी पत्नी साधना सिंह औ बेटे कार्तिकेय चौहान ने मतदान तक मोर्चा संभाले रखा। बुधनी में इस बार 82 फीसदी मतदान हुआ है। बताया जा रहा यहां यादव कड़ी टक्कर दे सकते हैं। नतीजो भले सीएम के पक्ष में आएं लेकिन उनका जीत का अंतर घट सकता है।
होशंगाबाद में गुरू शिष्य आमने सामने
होशंगाबाद में इस बार गुरू और शिष्य के बीच मुकाबला देखने को मिला। कभी कांग्रेस की अजय सीट माने जाने वाले संसदीय क्षेत्र होशंगाबाद में भाजपा के वरिष्ठ नेता सरताज सिंह ने पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह को हराया था। लेकिन हाशिए पर धकेले गए इस कद्दावर नेता को भाजपा ने पूरी तरह से साइडलाइन करते हुए टिकट काट दिया। इससे आहत होकर उन्होंने कांग्रेस का दामन थाना और होशंगाबाद से विधानसभा अध्यक्ष सीताशरण शर्मा के खिलाफ चुनाव लड़ने की ठानी। कहा जाता है शर्मा को राजनीति के सीढ़ियां चढ़ना सरजात ने ही सिखाया है। सरताज का मालवा सिवनी समेत होशंगाबाद में वर्चस्व है। होशंगाबाद में भाजपा ब्रहामण वोट बैंक के सहारे है। शर्मा के समर्थकों को लगता है इस बार भी वह जीत हासिल करेंगे। लेकिन सरतार की एंट्री ने समीकरण बिगाड़ दिए और मतदाओं में भी टेंशन बढ़ा दी।
भोजपुर में बाहरी का विरोध
पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस नेता सुरेश पचौरी की नाम उन सियासतदांओं में गिना जाता है जो सियासत की हर नब्ज से वाकिफ हैं। वह कभी चुनाव नहीं जीते लेकिन केंद्रीय मंत्री रहे और अपने लिए हर बार हारने के बाद भी टिकट पाने में कामयाब हुए। इस बार भी उन्होंने अपनी जमीन भोजपुर विधानसभा से वर्तमान मंत्री सुरेंद्र पटवा के खिलाफ लड़ा। इस बार पटवा के खिलाफ काफी विरोधी लहर थी। स्थानीय लोग बाहरी प्रत्याशी का विरोध कर रहे थे। वहीं, विकासकार्यों के नहीं होने से भी जनता में आक्रोश था। पचौरी ने स्थानीयता का कार्ड खेल जनता को अपने ओर करने की पूरी कोशिश की है। अब देखना होगा क्या वह जनता का विश्वास जीतने में कामयाब होंगे या हार का एक और अध्याय लिखेंगे।
भोपाल उत्तर से मुस्लिम बनाम मुस्लिम प्रत्याशी
दो दशक से भोपाल की उत्तर विधानसभा पर कांंग्रेस का कब्जा है। हर बार भाजपा को इस सीट पर हार का सामना करना पड़ा। मोदी लहर भी इस सीट पर असर नहीं डाल सकी। पिछले बार की तरह इस बार भी भाजपा ने एक मुस्लिम प्रत्याशी को उतार कर मुस्लिम वोट बैंक के ध्रुविकरण की कोशिश की। कांग्रेस नेता और पूर्व मंत्री रसूल अहमद सिद्दीकी की बेटी फातिमा सिद्दीकी को भाजपा ने इस सीट से टिकट देकर पूरे देश की निगाने इस सीट पर मोड़ दी। इसकी दो बड़ा वजह थी। एक तो प्रदेश की 230 सीटों में से इकलौती सीट पर भाजपा ने मुस्लिम प्रत्याशी उतारा और दूसरा यह कि कांग्रेस के आरिफ अकील के खिलाफ उन्हें जंग में छोड़ दिया गया। हालंकि, सीएम शिवराज सिंह तक ने उनके लिए रोड शो किया। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि भाजपा किस बैचेनी से इस सीट पर जीत का रास्ता तलाश रही है।
सीएम के साले वारासिवनी से कांग्रेस के प्रत्याशी
जोड़ तोड़ की राजनीति में माहिर भाजपा को उस वक्त बड़ा झटका लगा जब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के साले संजय सिंह मसानी ने कांग्रेस का दामन थाम लिया। उन्होंने कांग्रेस ने बालाघाट जिले की वारासिवनी सीट से प्रत्याशी घोषित किया। वह भाजपा से इस सीट पर टिकट की मांग करक रहे थे लेकिन उन्हें मना कर दिया गया। उन्हें पूरे देश में जबर्दस्त प्रशंसा हासिल हुआ। वह भाजपा के योगेंद्र निरमल के खलिाफ चुनव लड़ रहे हैं। इस सीट से गौरव पंडित निर्दलीय प्रत्याशी भी मैदान में है। पंडित को पवार समुदाय का समर्थन है। वह काफी अच्छी टक्कर दे सकते हैं।
मनावर में हिरालाल अलावा कांग्रेस से मैदान में
धार जिले में आदिवासियों के हक की लड़ाई से पनपे जयस संगठन के डॉ. हीरलाल अलावा ने प्रदेश की राजनीति में तहलका मचा दिया। भाजपा और कांग्रेस दोनों खोमें में हड़कंप मच गया। धार के कुक्षी में आदिवासियों का बड़ा वोट बैंक है। अलावा कांग्रेस से टिकट लेने में कामयाब हुआ। उन्होंने पाला बदलकर चुनाव मैदान में छलांग लगा दी। हालांकि उनके इस फैसले से जयस में काफी नाराजगी देखने को मिली। वह भाजपा की कद्दावर नेत्री रंजना बघेल के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं। बगेल शिवराज सरकार में मंत्री रही हैं। लेकिन पिछले चुनाव में उनकी जीत का अंतर काफी कम था। इस बार कयास लगाए जा रहे हैं अलावा जीत सकते हैं।
ग्वालियर दक्षिण सीट पर फंसा पेंच
इस बार ग्वालियर दक्षिण सीट पर त्रिकोणीय सीट मुकाबला है। भाजपा ने इस सीट से नारायण सिंह कुशवाह को उतारा है। उन्होंने बेहद आसानी से कांग्रेस को पिछले चुनाव में हरा दिया था। लेकिन इस बार समीकरण अलग हैं। इस बार भाजपा से बागी हुईं समीक्षा गुप्ता ने पार्टी के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी हैं। वह पूर्व महापौर रही हैं। उन्हें प्रचार के दौरान काफी अच्छी समर्थन भी मिला था। कांग्रेस ने इस सीट से प्रवीण पाठक को उतारा है। भाजपा को कांग्रेस से अधिक समीक्षा गुप्ता से खतरा है।
इंदौर तीन से आकाश विजयवर्गीय मैदान में
पार्टी पर तमाम दबाव बनाने के बाद कैलाश विजयवर्गीय अपने बेटे को टिकट दिलाने में कामयाब हो गए। उनके पुत्र आकाश को भाजपा ने इंदौर तीन से टिकट दिया है। हालांकि कैलाश लगातार कहते रहे कि उनके बेटे को टिकट पार्टी ने उनके काम को देखते हुए दिया है। विजयवर्गीय इस बार खुद मैदान में नहीं है। इसलिए उनकी साख दांव पर है। देखना होगा जनता आकाश को ऊंचाइयों पर भेजती है या नहीं।
छतरपुर की राजनगर भी चर्चा में
छतरपुर जिले की राजनगर विधानसभा सीट पर इस बार त्रिकोणिय मुकाबला है। इस सीट पर भाजपा और कांग्रेस के लिए समाजवादी पार्टी से मैदान में उतरे कांग्रेस के कद्दावर नेता सत्यव्रत चतुर्वेदी के बेटे नितिन ने नींद हराम कर दी। पार्टी से मुखालिफत करने के बाद उन्होंने सपा का दामन थाम लिया। सत्यव्रत ने भी अने बेटे को जिताने के लिए पूरी ताकत झोंकी है। कांग्रेस ने यहां से विक्रम सिंह के नाती राजा को प्रत्याशी बनाया उनके खिलाफ भाजपा के अरविंद पटेरिया हैं।
भोपाल की दक्षिण पश्चिम सीट
इस सीट पर वर्तमान मंत्री उमा शंकर गुप्ता चुनाव लड़ रहे हैं। पार्टी ने उन्हें एक बार फिर मौका दिया है। कांग्रेस ने इस सीट से पीसी शर्मा को उतारा है। शर्मा इस क्षेत्र में मजबूत पकड़ रखते हैं। इस बार गुप्ता के खिलाफ माहौल है। कहा जा रहा है शर्मा इस बार जीत सकते हैं। उन्हें इस इलाके के रूरल और ब्राह्मणों का समर्थन मिल रहा है।