World Mental Health Day : आज विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस है। मानसिक स्तर पर स्वस्थ रहने की सिर्फ़ 4 कसौटियां हैं– जीवन के तनावों का सामना करने की ताकत का होना; अपनी क्षमताओं का ज्ञान होना; अच्छे से सीखने और सीखे हुए का सही इस्तेमाल; अपने समुदाय में उचित योगदान करना। लेकिन इन चार कसौटियों पर खरे उतरना लगातार मुश्किल से और मुश्किल हुआ जाता है। 1952 में अमरीका ने मानसिक समस्याओं का अपना वर्गीकरण पैमाना बनाया जिसको डीएसएम – 1 कहते हैं (अमरीका विश्व स्वास्थ्य संगठन यानि डब्लूएचओ के वर्गीकरण आईसीडी को नहीं मानता) जिसमें 128 प्रकार की मनोसमस्याओं को चिन्हांकित करते हुए उनको डायग्नोस करने के पैरामीटर्स निर्धारित किये। वर्ष 2013 में उक्त वर्गीकरण का पांचवा संस्करण आते आते मानसिक समस्याएं 541 हो गईं । यह बताता है कि पूंजीवादी व्यवस्थाओं के आधुनिकता और तरक्की के सारे शोरशराबों के बाबजूद सामान्यता का दायरा लगातार सिकुड़ रहा है और असमान्यताएं व्यापकता हासिल करती जा रही हैं ।
क्या है मानसिक स्वास्थ्य
मानसिक रोग की अनुपस्थिति भर को मानसिक स्वास्थ्य नहीं माना जा सकता बल्कि यह उससे कहीं आगे की बात है। हमारा मानसिक तौर पर स्वस्थ होना अपनी परिस्थितियों के बारे में सही समझ रखते हुए उनके प्रति उचित व्यवहार की क्षमता पर निर्भर करता है। यह एक जटिल निरंतरता है जो सभी के लिए अलग अलग होती है और सभी की अपनी सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों से निर्धारित होती है। आज भी चिकित्सा और मनोविज्ञान के जगत में मनुष्य के मन को निर्धारित करने वाले सामजिक, आर्थिक, राजनैतिक परिवेश को ज्यादा तवज्जो नहीं दी जाती बल्कि मानसिक स्वास्थ्य और मनोसमस्याओं के जैविक निर्धारकों पर ही बात होती है जो सर्वथा अनुचित है। चाहे पर्यावरण के मसले हों, राजनीति या हमारा व्यवहार, अक्सर अब लगता है दुनिया अपरिवर्तनीय क्षति की ओर बढ़ गई है और कुछ दीवाने या नासमझ हैं कि उसमें सुधार की चेष्टाओं में अब तक लगे हैं। बकौल साहिर, “बहुत मुश्किल है दुनिया का संवारना, तेरी ज़ुल्फ़ों का पेच-ओ-ख़म नहीं है” !!!
इन बातों का ध्यान रखें
ऐसे भीषण समय में जहाँ बौद्धिक और भावनात्मक बौनापन बढ़ रहा हो अपने भीतर की कोमलता और हरियाली को बनाये संवारे रखना बहुत ज़रूरी है दोस्तों जिसके लिए इन बातों पर गौर करिए –
- लोगों को सुनिए, इग्नोर न करिए उनसे बात करने की आप पहल कीजिए । जहाँ तक कर सकते हों उनकी मदद कीजिये।
- लोगों की छोटी मोटी गलतियों को उनकी बेवकूफियों और व्यावहारिक खामियों को महत्त्व मत दीजिये । लोग आपसे डरते हैं तो इसमें अभिमान नहीं बल्कि इसको अपने व्यवहार की ख़ामी मानिए ।
- अक्सर लोग एक फ़िल्मी संवाद दोहराते हैं “टेंशन लेने का नहीं, देने का” ! यह संवाद बहुत क्रूर और कर्कश है । इसकी जगह यह मानना हमेशा उचित होगा की “न टेंशन लेने का, न देने का”। हम लोगों को टेंशन देने के लिए दुनिया में नहीं आये हैं और न लेने के लिए।
- अगर हमारा समाज सद्भावपूर्ण होगा तो हमारा जीवन भी सहज होगा इसलिए हमेशा सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक सद्भावना और लैंगिक समानता के पक्ष मैं रहिये और इनको नष्ट कर अपना उल्लू सीधा करने वालों को नकारिये।
- अपनी सोच, भावनाओं और व्यवहार पर निगरानी रखिये और इनकी समस्याओं को स्वीकारते हुए उनको सुलझाने के लिए आगे आईये।
- सामुहिकता और सामाजिकता में यकीन रखिये अपने व्यक्तिवादी नज़रिए को तवज्जो देना कम करिए।
- जीवन में सादगी का कभी कोई विकल्प नहीं हो सकता अतः वस्तुओं के प्रति अनुरागी मत बनिये । ध्यान रखें कि ज़्यादातर मानसिक और शारीरिक समस्याएं जीवनशैली ठीक न होने से उपजती हैं । कोशिश करें कि अपने आपको और अपने से जुड़े लोगों को किसी कार्य में व्यस्त रखें और हमेशा सीखने का हौसला बनाये रखें।
- अपने पर्यावरण के प्रति संवेदनशील और जागरूक बनिए और इसकी बेहतरी के लिए काम करते हुए लोगों को भी प्रेरित करिए ।
- कोशिश करें कि किसी तरह के नशे की समस्या (मोबाइल या अन्य तकनीकी नशे सहित) में न फंसें और लोगों की भी इस सन्दर्भ में सहायता कीजिये।
- अच्छा साहित्य, कलाएं, यात्राएं और खेल हमारे भीतर की हिंसा और स्वार्थीपन को समाप्त करते हैं और मन और जीवन में कई तरह के रंग भरते हैं । अतः अपने जीवन में इनको पर्याप्त समय दीजिये।
- भावनात्मक समस्या महसूस होने पर नकारिये मत उसको ठीक से पहचानिए और उसके बारे में अपनों से और मानसिक स्वास्थ्यप्रदाताओं से बात करने में संकोच मत करिए।